समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
भारतभूषण जोशी-की-कहानी-
गौरदा
फाग
का महीना चल रहा था। ठण्ड अभी दिल्ली में पाँव पसारे थी। सुबह
शाम मजे की सिहरन हो जाती थी। गरम कपड़े छूटे न थे। बसंत के
आगमन की सूचना झड़ते पत्तों से मिलने लगी थी। हरीश जोशी दफ़्तर
से निकल कर सीधे आई. टी. ओ. के मुख्य बस स्टॉप पर आता है। उसकी
कलाई घड़ी शाम के पौने छः बजा रही है। उसे हौज खा़स जाना है। आज
शाम से किशोरदा के घर पर कुमाऊँनी होली की बैठक है। वो कुछ
गुनगुना रहा है। उसके चेतन में किसी गीत के बोल सुर-ताल में चल
रहे हैं। सड़क पर सुरक्षित चलने में अवचेतन में बसा पुराना
अनुभव और अभ्यास ही उसका मार्गदर्शन कर रहे हैं।
रोज़गार की तलाश में कुमाऊँ के पर्वतीय अंचलों से कई
परिवार दिल्ली आ बसे। जनता कॉलोनियों से ले कर पॉश इलाक़ों तक
में इन्होंने अपने आशियाने बना लिये। ये परिवार कुमाऊँ की अन्य
लोक-परम्पराओं के साथ दशहरे में रामलीला के मंचन की तथा फागुन
में होली की बन्दिशें गाने की अत्यन्त समृद्ध परम्परा को साथ
ले कर आये। दशहरे और फागुन के दौरान कुमाऊँनी परिवारों में
आन्चलिक रस से भरपूर...आगे-
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प्रेरणा गुप्ता की लघुकथा
वसुधैव कुटुम्बकम
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पर्व परिचय में
राजकिशन नैन का
आलेख- होली हरियाणा की
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अजयेन्द्रनाथ त्रिवेदी का
ललित निबंध- कहाँ आ गयी कोयल
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फुलवारी में बच्चों के लिये-
रंगने के लिए होली का सुंदर चित्र शिल्पकोना में, साथ
ही बना कर देखें होलिका और
प्रह्लाद काग़ज़ से
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