| घर-घर और गली मोहल्लों 
                          में यह रंगीन त्यौहार इस प्रकार मुखरित होता है कि 
                          बच्चों से लेकर बुढ्ढ़े, नर-नारियों तक होली के रंग में 
                          सराबोर हो जाते हैं - इन रंग-बिरंगे चेहरों में हमारी 
                          भारतीय संस्कृति तथा हमारा भारतीय जीवन दर्शन मुखरित 
                          होता है। रंगों की अनेकता में हमारी सांस्कृतिक और 
                          दार्शनिक एकता का स्वरूप निहित है।  होली 
                          का त्यौहार रंग-बिरंगे होली पर प्रयोग में आने 
                          वाला दूसरा रंग पीला होता है। प्राचीन काल में भारत में 
                          टेसू के फूलों से बनाया जाने वाला पीला रंग प्रचलित था। 
                          पीला रंग ज्ञान का प्रतीक है। ज्ञान हमारे मानसिक विकास 
                          का अग्रदूत है। ज्ञान हमें हमारे वास्तविक अस्तित्व का 
                          बोध कराता है और इंगित कराता है कि हमारे लिए क्या भला 
                          है और क्या बुरा? साधू और सन्यासी आज भी पीले गेरूए 
                          वस्त्र पहनते हैं जो उनके ज्ञान की रश्मियों को 
                          प्रतिबिंबित करते हैं। पीला रंग सतोगुण का सूचक है। दीपक 
                          की उँची उठती हुई लौ सामान्यत: पीले रंग की होती है - 
                          सूरज की किरणों को भी साधारणत: पीला समझा जाता है। 
                          दीपशिखा अपना आलोक बिखरते ही अंधकार को भगा देती है। 
                          सूर्योदय होते ही रात्रि का अंधकार स्वत: समाप्त हो जाता 
                          है। स्वयं जलकर अपने चारो ओर प्रकाश फैलाने की उसकी यह 
                          अभूतपूर्व भावना परोपकार की संगिनी है। ज्ञानालोकित 
                          रश्मियों के समक्ष अज्ञान का अंधकार समाप्त हो जाता है।
                           परोपकार की विशाल भावना 
                          में त्याग की इच्छा अंतरनिहित है। ज्ञान का प्रकाश अपार 
                          और अपरिमित होता है। खेतों में फूली हुई पीली सरसों 
                          हमारी समृद्धि के स्वप्न का केंद्र बिंदु है। पीला रंग 
                          पौरुष, शौर्य और निर्भीकता का भी परिचायक है। पहले 
                          केसरिया बाना (साफा) पहनकर या केसरिया पगड़ी लगाकर 
                          रणक्षेत्र में उतारा जाता था (। राजपूतों के प्रदेश 
                          राजस्थान में तो अब भी यही परंपरा है। युद्ध क्षेत्र में 
                          जाने के अवसर पर योद्धाओं को केसरिया साफा पहनाकर विदा 
                          किया जाता है - अपना अद्भुत शौर्य दिखाने और निर्भय होकर 
                          विजयी बनने अथवा बलिदान हो जाने की कामना को यह पर्व 
                          प्रकाशित करता है। अत: होली के त्यौहार का पीला रंग 
                          ज्ञान, त्याग, विकास और शौर्य का प्रतीक है। हरा रंग हमारी समृद्धि 
                          का परिचायक है। वर्षा काल में धरती पर दिखाई देने वाली 
                          हरियाली वृक्षावलियाँ प्रकृति की समृद्धि का आधार हैं। 
                          समृद्धि में ही विकास छिपा है और विकास में निहित है 
                          जीवन का अग्रगामी प्रगतिशील सोपान। शुभ और मांगलिक 
                          पर्वों पर हरे रंगों का प्रयोग हमारी अनादि संस्कृति का 
                          आधार है। घर में किसी नवजात शिशु के जन्म पर जच्चा हरी 
                          चूडियाँ पहनती हैं तथा अपनी और अपने शिशु की समृद्धि की 
                          कामना करती हैं। विवाह के अवसर पर नई नवेली दुल्हन को भी 
                          हरी चूड़ियाँ और हरी साड़ी पहनाये जाने की परंपरा है। 
                          जिसमें यह आकांक्षा और कामना गूँथी हुई है कि जीवन के 
                          अग्रिम सोपान में कदम रखते ही समृद्धि का आलिंगन करें। 
                          महिलाओं के सौभाग्य (सुहाग) के महत्वपूर्ण पर्व को 
                          हरियाली तीज अथवा हरितालिका तीज की संज्ञा जानी-पहचानी 
                          है। हरा रंग मन के लिए लुभावना और आँखों के लिये सुखद 
                          लगता है। हरियाली तीज के झूले पर झूलने के लिये आज भी 
                          महिलाएँ विशेष तौर से हरी साड़ी रंगवा कर पहनती हैं। हरी 
                          साड़ी में सुसज्जित युवतियों को झूले पर झूलती देखकर 
                          मानव प्रकृति भी हरा परिधान धारण करके हरियाली तीज की 
                          समृद्धि पर मुस्कराती सी लगती है। होली का हरा रंग 
                          समृद्धि का प्रतिनिधि माना जाता है। रंगीन गुलाल मे मिली 
                          हुई चमकती अबीर अपनी सफ़ेदी के कारण बड़ी भली लगती है। 
                          सफ़ेद रंग सतोगुण का प्रतीक है और पावन पवित्रता का 
                          द्योतक। पवित्रता का आधार है सदाचार जो जीवन को निर्मल 
                          बनाता है। निर्मलता हमें सत्कार्यों के लिए प्रेरणा देती 
                          है। सत्कार्य जीवन की विशाल उज्ज्वलता की नींव होते हैं। 
                          उज्ज्वलता हमारी महानता का सूचक हैं, महानता में ही अपार 
                          धैर्य व कर हम अपनी और अपने देश की ओर से शांति की कामना 
                          अभिव्यक्त करते हैं। शांति की इसी कामना की भूमि में 
                          सहअस्तित्व का बीजारोपण होता है, जिसमें पवित्रता, 
                          शांति, स्वच्छता, निर्मलता और सदाचार के सतोगुणी वृक्ष 
                          पुष्पपित एवं पल्लवित होते हैं। अत: हम होली के इस पावन 
                          पर्व पर रंग-बिरंगे अबीर और गुलाल उड़ाकर तथा एक - दूसरे 
                          पर रंग डालकर आपस में परस्पर प्रसन्नता, शक्ति, ज्ञान, 
                          समृद्धि व शांति की कामना करते हैं। यह होली का एक 
                          अव्यक्त दार्शनिक पक्ष है, जो हमारे इस सांस्कृतिक पर्व 
                          के अवसर पर हमारे समक्ष साकार अवतरित होता है।  |