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फ़िल्म-इल्म

फ़िल्मी गानों में होली
यूनुस ख़ान

होली भारत का ही नहीं बल्कि विश्‍व का सबसे रंगीला त्‍यौहार है। कविताओं में होली की बहुत बातें हुईं हैं। कहानियों और उपन्‍यासों में भी होली का ज़िक्र आता है और आता है हमारी‍ फ़िल्‍मों में भी। तो आइए आज ज़रा भारतीय सिनेमा के लंबे इतिहास में से उन कुछ चुनिंदा फ़िल्‍मों का ज़िक्र किया जाए जिनकी होली काफ़ी असरदार रही है।

सिनेमा में होली का ज़िक्र नाटकीयता लाने के लिए किया जाता है। अकसर होली किसी अघटित अनिष्‍ट के पहले का सुख का सजीला अहसास दिखाने के लिए रखी जाती है। जी हाँ, जब आप इस पूरे विवरण को पढ़ चुकेंगे और उन तमाम फ़िल्‍मों के बारे में सोच लेंगे जिनका यहाँ ज़िक्र आएगा तो आपको समझ में आएगा कि कुछेक फ़िल्‍में ही ऐसी रही हैं जिनमें सचमुच होली दिखाने का कोई मतलब था। वरना फ़िल्‍मकारों ने होली को नाटकीयता का एक बेहतरीन औज़ार बनाकर रख प्रस्तुत किया है।

फ़िल्‍म संसार की सबसे रोचक होली है फ़िल्‍म शोले की। शोले और मुग़ल-ए-आज़म जैसी फ़िल्‍मों के तो संवाद भी हमारी ज़िंदगी में एक मुहावरे की तरह शामिल हो गए हैं। अकसर विविध भारती की कार्यक्रम संबंधी बैठकों में विविध भारती में किसी ना किसी के मुँह से अनायास निकलता है-'कब है होली'। और फौरन ये संदर्भ शोले की होली से जोड़ दिया जाता है। जहाँ गब्‍बर पूछता है- 'कब है होली'। और अगर आपको शोले अच्‍छी तरह याद हो तो 'होली के दिन दिल खिल जाते हैं रंगों में रंग मिल जाते हैं' जैसे सुहाने गाने के बाद गब्‍बर का बर्बर हमला होता है। सिनेमा के पर्दे पर सुख और दुख का सबसे सटीक विरोधाभास सलीम-जावेद ने रचा था। सन 1975 में आई रमेश सिप्‍पी की इस फ़िल्‍म को जितनी बार देखें नई ही लगती है।

यशराज ने अपनी 'प्रेमकहानियों' के ज़रिए सिने संसार में अपनी अलग जगह बनाई है। उन्होंने फ़िल्‍म संसार को तीन यादगार होलियाँ दी हैं। सिलसिला की होली विवाहेतर संबंधों का परिदृश्‍य दिखाती थी जिसे डॉ. हरिवंश राय बच्‍चन ने एक ही पंक्ति में स्पष्ट कर दिया था—'खाये गोरी का यार बलम तरसे रंग बरसे'। यशराज ने अपनी सभी होलियों में सभी कलाकारों को सफ़ेद कपड़ों में रखा था, चाहे सिलसिला के संजीव कुमार, रेखा, जया भादुड़ी और अमिताभ बच्‍चन हों या फिर मशाल के दिलीप कुमार, वहीदा रहमान और रति अग्निहोत्री। सिलसिला की होली 1981 की थी और इसके तीन साल बाद यश चोपड़ा की फ़िल्‍म मशाल की होली आई—हृदयनाथ मंगेशकर के संगीत से सजी और जावेद अख्‍तर के सजीले बोलों पर इठलाती होली। ये झोपड़पट्टी वाला इलाका है। परिदृश्‍य उतना रोमांटिक नहीं है। दो पीढ़ियों पर फिल्‍माया गाना है ये। इसलिए सफ़ेद कपड़ों और होली के रंगों के सहारे इस गाने को लाजवाब बनाया गया है। जावेद अख्‍तर ने क्‍या खूब लिखा है इसे। दिलीप साहब प्‍यार का इज़हार याद करते हुए गाते हैं—'यही दिन था यही मौसम ज़बां जब हमने खोली थी'। और अनिल कपूर वाली पंक्ति है—'अरे क्‍या चक्‍कर है भाई देखो होली आई रे, ये लड़की है या काली माई देखो होली आई रे'। सुंदर होली दिलचस्‍प होली। यशराज प्रोडक्‍शंस की तीसरी होली थी फ़िल्‍म डर की, जिसमें शाहरूख़ ख़ान ढोल बजाता हुआ होली समारोह में बिन बुलाए चला आया है। सनी देओल और जूही चावला पति पत्‍नी हैं उनकी दुनिया में आग लगाने आया है ये साईको हीरो। इस गाने के बोल हैं –'अंग से अंग लगाना पिया हमें ऐसे रंग लगाना'। इस गाने में 'रंग बरसे' का एक टुकड़ा लगाकर यश चोपड़ा ने साबित कर दिया है कि 'सिलसिला' की होली के हैंगओवर से ना वो बाहर ना आ सके हैं और ना ही उनके चाहने वाले।

इन दिनों दो फ़िल्‍मों में अच्‍छी-सी होली नज़र आई। एक तो 'डेल्‍ही हाईट्स' की कैलाश खेर के गाने वाली होली और दूसरी 'बाग़बान' की होली। वैसे पंकज पाराशर की फ़िल्‍म 'बनारस' में भी एक होली गीत था जो ज़्‍यादा चर्चित नहीं हुआ। इसी तरह विपुल शाह की फ़िल्‍म 'वक्‍त- रेस अगेन्‍सट टाईम' का गाना था 'गिव मी अ फेवर लेट्स प्‍ले होली'। जो किशोरों ने उस साल तो गया पर आगे जाकर सबने इसे भुला दिया। हाँ बी. आर. चोपड़ा प्रो. की फ़िल्‍म बाग़बान ने अपने बैनर की परंपरा को निभाया है। इस गाने के बारे में गीतकार समीर से बात हो रही थी तो उन्‍होंने कहा कि जीवन भर की तमन्‍ना थी उनकी होली गीत लिखने की। उनके पिता गीतकार अनजान वर्षों पहले एक होली गीत लिख चुके थे जिसके बिना अब कोई होली पूरी नहीं होती। इस गाने का ज़िक्र आगे किया जाएगा। हाँ तो समीर चाहते थे कि उन्‍हें भी 'होली' का गाना लिखने का मौका दिया जाए। आख़िरकार ये मौका आया फ़िल्‍म 'बाग़बान' में। और समीर ने कहा कि कृष्‍ण की होली तो सभी ने लिखी है—होली खेले नंदलाला। लेकिन क्‍यों ना वे श्रीराम की होली लिखें। इसलिए उन्‍होंने फ़िल्‍म में अमिताभ बच्‍चन के उदात्त चरित्र को ध्‍यान में रखकर लिखा—होली खेलें रघुबीरा अवध में होरी खेरें रघुबीरा। हिल मिल गावैं लोग लुगाई उड़त गुलाल अबीरा अवध में होरी खेरें रघुबीरा।

आइए अब ज़रा गीतकार अनजान वाली होली पर एक नज़र डाली जाए। 1963 में त्रिलोक जेटली की फ़िल्‍म गोदान आई थी। कलाकार थे राजकुमार और कामिनी कौशल। गोबर की भूमिका महमूद ने की थी आपको याद हो तो। इस फ़िल्‍म में संगीत देने के लिए पंडित रविशंकर ने बनारस के आसपास के गाँवों में जाकर काफी शोध किया था। गीतकार अनजान उनके साथ ही गए थे। और तब इस फ़िल्‍म का होली गीत बना था – होली खेलत नंदलाल बिरज में। कहना ना होगा कि अपनी लय, ताल, मस्‍ती और अल्‍हड़पन में इस गीत का कोई सानी नहीं है। पंडित रविशंकर ने साबित कर दिया कि वे फ़िल्‍म संगीत की दुनिया में आ जाएँ तो सभी को चारों खाने चित्‍त कर सकते हैं।

फ़िल्‍मों में नंदलाला के होली खेलने का ज़िक्र थोक के भाव से आया है। 1956 में बी. मित्रा ने प्रदीप कुमार, अजीत, नलिनी जयवंत और बीना को लेकर फ़िल्‍म दुर्गेशनंदिनी बनाई थी। इस फ़िल्‍म में एक बढ़िया-सा होली गीत था—मत मारो श्‍याम पिचकारी। राजेंद्र कृष्‍ण ने लिखा और संगीत हेमंत कुमार का। इसी फ़िल्‍म में एक और होली गीत था—'प्‍यार के रंग में सैंया मोरी रंग दे चुनरिया'। एक फ़िल्‍म और दो होली गीत।

होली का ज़िक्र हो और महबूब ख़ान की 'मदर इंडिया' की बात ना चले ऐसा कभी नहीं हो सकता। तो ज़रा देखिए कि कितनी भव्‍य होली है ये। सुनील दत्‍त, नरगिस, राजकुमार, हीरालाल और बाकी तमाम कलाकार। और मुख्‍य आवाज़ शमशाद बेगम की, नौशाद की धुन पर उफ़ क्‍या गाया है उन्‍होंने—'होली आई रे कन्‍हाई रंग छलके सुना दे बाँसुरी'। बेहद सुरीली और प्रिय होली है ये। मेहबूब ख़ान और नौशाद की जोड़ी ने इससे पहले फ़िल्‍म आन में एक शानदार होली गीत दिया था। 1952 में आई इस फ़िल्‍म में दिलीप कुमार, निम्‍मी और प्रेमनाथ जैसे सितारे थे। और ये गाना था-'खेलो रंग हमारे संग'। नौशाद का स्‍वरबद्ध किया एक गीत और याद आता है मुझे। फ़िल्‍म थी 'कोहनूर'। सन 1960 में आई इस फ़िल्‍म में भी दिलीप कुमार थे, साथ में थीं मीना कुमारी। निर्देशक थे एस. यू. सनी। और कोहनूर की होली तो कालजयी बन पड़ी है। गाना है—'तन रंग लो जी आज मन रंग लो'। नौशाद के स्‍वरबद्ध किए तीनों होली गीत शकील बदायुँनी ने लिखे। और क्‍या खूब लिखे। कोहनूर के इस गाने में मो. रफी ने पंजाबी अंदाज़ में तन को 'तान' रंग लो गाया है।

फिर याद आती है राजश्री प्रोडक्‍शंस की फ़िल्‍म 'नदिया के पार' की होली। देवर भाभी की होली। गीत संगीत रवींद्र जैन। गाना था—जोगी जी वाह जोगी जी। 'जोगी जी कोई ढूँढे मूँगा कोई ढूँढे मोतिया, हम ढूँढे अपनी दुल्‍‍हनिया को, जोगी जी वाह'।

सुनील दत्‍त पर फ़िल्‍माया एक होली गीत दूरदर्शन के चित्रहार की वजह से हम सबको एकदम रट गया होगा। जी हाँ ये होली है फ़िल्‍म 'ज़ख्‍मी' की। किशोर कुमार अपनी बैरीटोन आवाज़ में गा रहे हैं 'ज़ख्‍मी दिलों का बदला चुकाने, आए हैं दीवाने दीवाने, दिल में होली जल रही है'। एक शानदार होली गीत है ये जिसमें थोड़ा-सा ग़म का अहसास जोड़ दिया गया है। होली में ग़म का अहसास शक्ति सामंत की सन 1970 में आई फ़िल्‍म 'कटी पतंग' के गाने में भी था। जिसमें किशोर कुमार गाते हैं 'आज ना छोड़ेंगे हमजोली खेलेंगे हम होली' और लता जी की आवाज़ में शायद आशा पारेख गाती हैं, 'अपनी अपनी किस्‍मत देखो, कोई हँसे कोई रोए'। इसी तरह फ़िल्‍म आखिर क्‍यों में भी राकेश रोशन होली खेलते नज़र आए थे—'सात रंग में खेल रही हैं दिलवालों की होली रे'।

फ़िल्‍म कामचोर की होली भी यादगार मानी जाती है। ये गाना है 'रंग दे गुलाल मोहे, आई होली आई रे'। इस गाने में भी नायिका जयाप्रदा अपने नायक राकेश रोशन से दूर हैं और विरह की पीड़ा को व्‍यक्‍त कर रही हैं। सन 1959 में आई वी शांताराम की फ़िल्‍म नवरंग में भी होली का एक शानदार गीत था। भरत व्‍यास का गीत और सी रामचंद्र की तर्ज़। गाना था- जा रे नटखट ना खोल मेरा घूंघट पलट के दूँगी तुझे गाली रे, मोह समझो ना भोली भाली रे'। होली का ज़िक्र अनगिनत फ़िल्‍मों में हुआ है। पर राजेंद्र सिंह बेदी की फ़िल्‍म फागुन को भला कोई कैसी भूल सकता है। 'पिया संग खेलूँ होली फागुन आयो रे'। जैसा कि मैंने पहले कहा कि नाटकीयता का तत्‍व लाने के लिए फ़िल्‍मों में होली का समावेश किया जाता है। इस गाने से तो फ़िल्‍म की दिशा ही बदल जाती है। धर्मेंद्र वहीदा रहमान की साड़ी क्‍या ख़राब कर देते हैं, दोनों में अलगाव पैदा हो जाता है। और पूरी फ़िल्‍म का केंद्रीय सूत्र ये होली बन जाती है।

अब फटाफट कुछ फ़िल्‍मों की होली का ज़िक्र। सन 1954 में आई हरनाम सिंह रवैल की फ़िल्‍म मस्‍ताना में मोहम्मद रफ़ी,  मुकेश और साथियों ने एक होली गीत गाया था—'नंदलाला होली खेलें बिरज में'। जहाँ तक मुझे याद पड़ता है ये महान कलाकार मोतीलाल वाली मस्‍ताना थी। फिर खोटा पैसा फ़िल्‍म का होली गीत भी याद आता है जिसके बोल बड़े दिलचस्‍प हैं—'नैनों में रंग हो, दिल में उमंग हो, सैंयां भी संग हों तो होली रे होली'। फ़िल्‍म धनवान में होली की एक अलग ही छटा थी—गाना था—'मारो भर भर के पिचकारी, होली का यही मतलब है'। धर्मेंद्र और मीना कुमारी की फ़िल्‍म 'फूल और पत्‍थर' का गीत भी याद आता है- 'लाई है हज़ारों रंग होली'। 1970 एक फ़िल्‍म आई थी 'होली आई रे'। माला सिन्‍हा इस फ़िल्‍म की नायिका थीं गाना था, होली आई रे आई रे होली आई रे।

फ़िल्‍मों में होली के ज़िक्र की कहानी इतनी लंबी है कि पूरी पोथी तैयार हो जाए। लेकिन आज हमने उन फ़िल्‍मों की होली को याद किया जो हमारी मन में रची बसी है। उम्‍मीद करता हँ कि इस बार की होली में इनमें से ही कोई गीत आपके होठों पर चढ़ जाएगा और आपको थिरकने पर मजबूर करेगा।

१७ मार्च २००८

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