अपर्णा
गुप्ता की लघुकथा- परियाँ जन्नत का दरवाजा खुला... दो परियाँ आईं, नन्हीं नफीसा को देख कर मुस्कराईं और
फूलों को उसके ऊपर डालकर उसका स्वागत किया।
अलका अस्थाना
की लघुकथा- आँगन बगल में रहती थीं रेशमी अम्मा जब देखो तब ये बनाना वो
बनाना और बस कुछ भी त्योहार हो पहले से तैयारी शुरू। बस
इसी ख़ासियत के चलते उनका आँगन बारहों महीने गुलजार रहता।
आभा खरे
की लघुकथा साझा दर्द आज न जाने क्यों ६ वर्षीय भाई माँ के हाथ से खाना खाने की जिद करने लगा। माँ ने
गुस्से और झुँझलाहट से उसे झटक दिया। माँ की ये झुँझलाहट बेवजह नहीं थी।
कविता
गुप्ता की लघुकथा घोंसला
आज
घोंसला खाली हो गया। कई दिनों से चिड़ियों के कुनबे ने अपने शोर से मेरी गर्मी
की दोपहर को आराम विहीन कर दिया था। मना रही थी कि जल्दी से बच्चों के पंख
निकलें और वो यहाँ से उड़ जाएँ।
अर्चना
गंगवार की लघुकथा- रंगत निशा गुनगुनाते हुए अपनी नवजात बिटिया की मालिश
कर रही थी। "हो ओ… मेरे घर आई एक नन्हीं परी, चाँदनी से हसीन रथ पे सवार …”
अपने तीखे नाक नक्श और...
विनोदिनी रस्तोगी की
लघुकथा मूर्तिकार
उसकी उंगलियाँ बड़ी तेजी से चल रही थीं. बड़ी लगन से वह मूर्ति को गढ़ रहा
था। मूर्ति लगभग तैयार थी। मूर्ति में मूर्तिकार ने युवक और यवती के प्रेम
की प्रगाढ़ भावना को व्यक्त किया था।
कुंती मुकर्जी की लघुकथा
अंगूर
का स्वाद एक दिन मैंने बाग में तोते को अंगूर खाते
देखा। मुझे बचपन की पढ़ी लोमड़ी और अंगूर की कहानी याद आ गयी। मैंने उससे पूछा- "कहो तोते मियाँ, अंगूर कैसे हैं?"