-
संतु ने दम भरा और चिलम हरिया के ओर बढ़ाते हुए कहा "दादा
डॉक्टर क्या कहते हैं? हरिया ने साँस खींच कर कहा-
“क्या कहेंगे वही जो कहते चले आ रहे है जब तक साँस है तब
तक आस।" - तुम भी अच्छे चक्कर में फँस गए हो दादा। मानो तो
एक सलाह दूँ? छोटे भाई की बात सुन हरिया ने थके हुए चेहरे
से मौन स्वीकृत दी।
- मैंने सुना है कोरट भी इसमें सज़ा न देती, तुम क्यों न
उसकी दवा -दारू बंद कर कुछ ऐसा करवा दो कि अभागिन अपने
कर्मों से छुटकारा पा जाये... देखो तो पूरा शरीर रबर की
नलियों का जाल बना पड़ा है। खाना-पानी नाक से मल-मूत्र सब
छी, छी! वो तो तुम हो जो सब कर रहे हो, तुम्हारा कष्ट न
देखा जाता, सारा दिन खटते हो तो कह रहा हूँ अपनी रोटी पानी
का भी फिर से इंतज़ाम कर लो वंश भी तो चलना है, कुछ
भावनायें रह गई हैं तुम्हारी बाप-दादा के प्रति या सब भूल
गए हो?
हरिया ने चिलम रख उठते हुए कहा “संतु
भावनायें ही तो है जो ये सब न करने देंगी मुझे... तुम भूल
गये हो उसके हाथों की रोटी का स्वाद... पर मुझे अभी तक
उसकी रोटी का स्वाद और साथी की छुअन के सुख का एहसास है और
साथ ही याद है बाप-दादा का सिखाया इंसानियत का पाठ..."
हरिया उठ कर लम्बी गहरी नींद में सोई अपनी घरवाली के पास
बैठ उसके माथे की बिंदिया ठीक करने लगा और अचेत निद्रा में
लेटी हुई ज़िंदगी भी जीवन की चमक से दमक उठी।
१ सितंबर २०१८ |