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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
डॉ. आशा सिंह
की लघुकथा- क्रेडिट कार्ड के सपने और सत्य


"ले लो जी... सपनों की सौगात, रंगबिरंगे सपने अब होंगे आपके अपने। आइये आइये धनवर्षा में भागीदार बन जाइये।"

- कैसे जमूरे, क्यों बेच रहा है ऐसे सपने, जो नहीं होते अपने?

"साहिबान, कदरदान, बैंको ने खोल दिये है अपने द्वार।
क्रेडिट कार्ड लीजिये। चाँद सितारों की सैर कीजिये। मतलब है जो दिल चाहे कीजिये।"

- क्यों चकरी खिला रहे जमूरे? पैसा है जनाब उधारी चुकाएँगे आप। ब्याज पर ब्याज। ऐसे कोई पैसे नहीं देता जनाब।

"क्यों धंधा बंद करवा रहे हो आप। जमूरे का वचन क्यों करते खराब। पेट पर लात क्यों मार रहे हो आप। हम जैसे बेरोजगारों को रोजगार मिल जाता है।"

- क्यों ऐसे सपने दिखाते हो छल से फँसाते हो। किस्तों के भरने के डिप्रेशन में गोते खिलवाते हो। लोगों को लालच में फँसाते हो?

"ऐसा नहीं है जनाब, इनसे मिला धन कभी-कभी आता है बड़े काम।
ये जमूरा देता है जब अपने काम को अंजाम, समझा देता सारा सरंजाम। क्रेडिट कार्ड इस्तेमाल करो जब आप को
आये धन का जरूरी काम।चुका दो समय से पैसा न झेलना पड़े ब्याज पर ब्याज का अंजाम। धरती पर रहो लेकर इसे, पूरे करो जरूरी काम। चाँद सितारों का न करो तामझाम।"

- वाह जमूरे, तेरे हौसले को सलाम सलाम।

१ सितंबर २०१८

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