रेड-
लाइट पर गाड़ी रुकते ही माँगने और बेचने वालों की भीड़
भिनभिनाते हुए इधर-उधर फैलकर अपना-अपना हुनर भुनाने में लग
गई। मधु की गाड़ी भी तरफ भी एक छोटा सा बालक गाड़ी को साफ
करने के लिए अभी हाथ बढ़ाने ही वाला था कि उसके पति हिमेश
ने उसे रोक दिया।
'अरे मेरी गाड़ी नहीं छूना '
अपने आप मे बडबडाता हुआ, साफ तो क्या करेगा, उल्टा गन्दे
कपड़े से पोंछ कर और गंदा कर देगा।
बालक ठिठक गया और निरीह सा उसकी ओर देखता हुआ आगे बढ़ने ही
वाला था कि मधु ने बुलाकर उसे दस रुपये का नोट देना चाहा-
- चलो ए लेलो।
परन्तु उसने रूपया लेने से मना कर दिया।
- मैंने तो कुछ किया ही नहीं तो किस बात का पैसा! मै मेहनत
का पैसा लेता हूँ, मैडम जी।
इस मध्य ग्रीन लाइट जल चुकी थी। गाडियाँ धीरे-धीरे सरकने
लगी थीं। गाड़ी जैसे-जैसे गति पकड़ती जा रही थी, उसका मन
बालक के प्रति श्रद्धानत होता जा रहा था। लोग इससे क्यों
नहीं सीखते, कैसे इतनी बेईमानी और घूसखोरी करके डकार जाते
हैं। अभी यह एक साफ- सुथरा अच्छे चरित्र का बच्चा है।
हम-सबको इसे चोर-उच्चका या भिखारी बनने से रोकना होगा।
अन्तः में संकल्प किये जा रही थी, आगे से ऐसा नहीं होने
दूँगी।
हिमेश को निर्देश देते हुए बोली थी- "भविष्य में सोच समझ
कर निर्णय लिया करो, हमारा प्रयास देश को अच्छे और कर्मठ
नागरिक देना है।"
१ सितंबर २०१८ |