मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
अलका अस्थाना
की लघुकथा- आँगन


बगल में रहती थीं रेशमी अम्मा जब देखो तब ये बनाना वो बनाना और बस कुछ भी त्योहार हो पहले से तैयारी शुरू। बस इसी ख़ासियत के चलते उनका आँगन बारहों महीने गुलजार रहता।

अचारों के मामले में तो भईया गोभी, आलू, सेम, कटहल, बैंगन, आम, बंद गोभी, मटर, करेला, खरबूजा मिर्च आँवला न जाने कौन-कौन से अचार बना डालती थीं फिर लोगों को बुला-बुलाकर अचार चखवाती थी। लोग आते और चख कर चले जाते। बड़े से आँगन में बैठ कर वो अचार सुखाती, धूप दिखाती और फिर जायकेदार पेशकश साल भर जारी रहती। जैसे कोई अचार का कारखाना खुला हो।

पर अब तो ... आँगन छोड़ो दालान भी नहीं।
वे पिछले पाँच सालों से अपने बेटे के पास मुंबई एक छोटे से फ्लैट में रहती हैं, गाँव से तो अब नाता भी छूट गया है।

१ सितंबर २०१८

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।