बगल में रहती थीं रेशमी
अम्मा जब देखो तब ये बनाना वो बनाना और बस कुछ भी त्योहार
हो पहले से तैयारी शुरू। बस इसी ख़ासियत के चलते उनका आँगन
बारहों महीने गुलजार रहता।
अचारों के मामले में तो
भईया गोभी, आलू, सेम, कटहल, बैंगन, आम, बंद गोभी, मटर,
करेला, खरबूजा मिर्च आँवला न जाने कौन-कौन से अचार बना
डालती थीं फिर लोगों को बुला-बुलाकर अचार चखवाती थी। लोग
आते और चख कर चले जाते। बड़े से आँगन में बैठ कर वो अचार
सुखाती, धूप दिखाती और फिर जायकेदार पेशकश साल भर जारी
रहती। जैसे कोई अचार का कारखाना खुला हो।
पर अब तो ... आँगन छोड़ो दालान भी नहीं।
वे पिछले पाँच सालों से अपने बेटे के पास मुंबई एक छोटे से
फ्लैट में रहती हैं, गाँव से तो अब नाता भी छूट गया है।
१ सितंबर २०१८ |