आज
घोंसला खाली हो गया। कई दिनों से चिड़ियों के कुनबे ने अपने
शोर से मेरी गर्मी की दोपहर को आराम विहीन कर दिया था। मना
रही थी कि जल्दी से चिड़िया के बच्चों के पंख निकलें और वो
यहाँ से उड़ जाएँ।
आज वो शुभ घड़ी आ गई जब वे तीन नन्हें चिरोंटे अपने
नवनिर्मित पंख पसार कर उड़ चले विशाल आकाश की ओर। माँ
चिड़िया ने भी तिनके समेटे और संतुष्ट भाव से उसने भी राह
ली। मैं भी चली अपनी चैन की नींद सोने।
पर चैन कहाँ था, मन भी प्रसन्न नहीं था। आँगन का सूनापन
चिड़ियों के शोर से ज्यादा भला नहीं लग रहा था।
और अब मुझे इंतजार है कि फिर कोई चिड़िया आए और फिर एक
घोंसला बनाए।
१ सितंबर २०१८ |