सुबह
सुबह सिया और कामवाली की बहस सुन कर नींद खुल गयी सचिन
की...किचन में पहुँचा तो देखा ताराबाई के पीछे से एक सहमा
हुआ सा, गुड़िया जैसा चेहरा उसकी धोती पकडे झाँक रहा था।
ताराबाई के अपने तीन बच्चे थे जो स्कूल भी जाते थे। बहुत
कठिनाई से खर्चा चलता था। फिर अब वो इस बच्ची को भी स्कूल
भेजना चाहती थी।
उच्चपदस्थ सचिन और सिया पिछले बारह वर्षों से खुशहाल
ज़िन्दगी जी रहे थे। सिया को कभी कभी औलाद का न होना खटकता
था, पर सचिन को कोई भी फ़िक्र छू तक नहीं गयी थी। उसके
विचार से किसी दूसरे के खून को अपना कैसे कह पायेगा, वो
ऐसा नहीं कर सकता। ताराबाई बहुत ही समझदार महिला थी, जो
स्कूल का नहीं ज़िन्दगी का सबक पढ़े हुए थी। ताराबाई ने कहा-
"मेमसाब! मैं पूरा दिन यहीं काम करती है, अब पइसा माँगने
कहाँ जाऊँ, नूरी को स्कूल भेजना जरुरी है।"
सचिन सर पर हाथ फेरते हुए बोला- "तारा! तू भी कौन सी
मुसीबत मोल ले रही है, कहाँ के झगड़े में पड़ गयी" ताराबाई
बोली- "मुस्कान का रिश्ता था मेरा नूरी की अम्मी अमीना के
साथ, जब मैं काम पर आती थी तो वो हँस कर देखती थी, मैं भी
हँस देती थी साहेब, आज दो दिन हुए रात में किसी ने दारू
पीकर गाड़ी फुटपाथ पर चढ़ा दी, पूरा परिवार खत्म हो गया।
नूरी तो लघुशंका के लिए गयी थी, तो ऊपरवाले ने बचाया
उसको... "अब मेरे सिवा कौन है इसका"- ताराबाई ने कहा।
सचिन अवाक् सिया की आँखों में झाँक रहा था और सिया ने
प्यार से नूरी को गोद में उठाया तो उसने नन्हीं बाहें माला
की तरह पहना दीं सिया को... (सबकी आँखों में सैकड़ों
इन्द्रधनुष निकल आये थे।)
१ सितंबर २०१८ |