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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
अर्चना गंगवार
की लघुकथा- रंगत


निशा गुनगुनाते हुए अपनी नवजात बिटिया की मालिश कर रही थी।
"हो ओ… मेरे घर आई एक नन्हीं परी, चाँदनी से हसीन रथ पे सवार …”

अपने तीखे नाक नक्श और साँवले सलोने चेहरे की पूरी छाप, निशा को अतीत में ले गई। निशा का विवाह दहेज की लंबी चौड़ी माँगों के साथ पक्का हो चुका था कि अचानक वर पक्ष की ओर से सन्देश आया कि-
‘लड़की का रंग काला है विवाह नहीं करेंगे।’
पर निशा के ताऊ जी भी दुनियादार थे, ऐसे कहाँ हार मानने वाले थे, इंजीनियर लड़का हाथ से निकलने देते भला, तुरंत ही दहेज की रकम पन्द्रह से सत्रह लाख कर दी और बात बन गई. निशा दुल्हन बन कर आ गई।
सासु माँ की आवाज़ कानो में टकराई, तो ध्यान टूटा-
"बहू, बिटिया के नाक नक्श तो अच्छे हैं पर रंगत तुम्हारी तरह है रोने की परवाह मत किया कर! दूध चिरोंजी से बिटिया की मालिश जरूर किया कर। नहीं तो शादी में परेशानी होगी।"

सासु माँ ने कटाक्ष भरे स्वर में कहा तो जैसे निशा की बरसों की पीड़ा को आज आँच मिल गई थी. सारी पीड़ा लफ़्ज़ों में गल गई। लफ़्ज़ों की तासीर जितनी गर्म थी स्वर को उतना ही नरम करते हुए बोली-
"माँ जी चिंता की क्या बात है? दहेज में चार पाँच लाख बढ़ा देगें।”
अब सासु माँ के सारे शब्द बर्फ हो गए।

१ सितंबर २०१८

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