मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
विनोदिनी रस्तोगी
की लघुकथा- मूर्तिकार


उसकी उंगलियाँ बड़ी तेजी से चल रही थीं. बड़ी लगन से वह मूर्ति को गढ़ रहा था। मूर्ति लगभग तैयार थी. बड़ी तन्मयता से माधवी मूर्ति को बनते देख रही थी। मूर्ति में मूर्तिकार ने युवक और यवती के प्रेम की प्रगाढ़ भावना को व्यक्त किया था। मूर्ति देखकर माधवी मूर्तिकार की सात्विक प्रेम भावना का अंदाजा लगा रही थी पर तभी घर के अंदर से १०-१२ साल का बालक आया बोला, बप्पा ५ रुपये दे दो हमें समोसा लाना है।

पहले तो शिल्पकार ने मना किया. तू बहुत इधर उधर की चीजें खाता है, सीथे साधे खाना खाया कर।
पर बालक के जिद करने पर उसने रुपये निकालकर दे दिये। तभी अंदर से ६ साल की बालिका और उसकी माँ पीछे पीछे आ गयीं। बालिका ने भी सहमी आवाज में उससे रुपये माँगे बप्पा हमें भी ५ का सिक्का दो तुमने दादा को दिये हैं न। पीछे से उसकी माँ उसे मना कर रही थी, किंतु मूर्ति कार को गुस्सा आ चुका था। पैसे रुपये क्या पेड़ में लगते हैं... पत्नी की तरफ देखकर- कितनी बार कहा लड़की को दाब कर रख। पर इसकी समझ में कहाँ आता है। कहाँ ठिकाने लगाऊँगा और इस औरत के दिमाग में तो भूसा भरा है।

किंतु स्त्री ने पुनः साहस कर बालिका का पक्ष लेते हुए रुपये देने के लिये मिन्नत की।
५ रुपये ही माँगे हैं बड़ी रकम तो नहीं यह भी तो बच्ची है।
अब शिल्पकार की क्रोध की सीमा ही पार कर बैठा, उठ खड़ा हुआ और पास पड़ी एक संटी से पीटने लगा। ज़बान चलाती है...? मूर्ति कार को क्रोधित देखकर माधवी दूर हो गयी और सोच रही थी, क्या यही है सात्विक प्रेम भावना जिसे कितने ही भावुक हृदय मूर्ति के माध्यम से अपने हृदय में उतारेंगे...।

माधवी का मुँह कसैला हो चुका था।

१ सितंबर २०१८

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।