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24. 9. 2007

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हास्य व्यंग्य

इस सप्ताह
समकालीन कहानियों में
भारत से ज़ाकिर अली रजनीश की विज्ञान-कथा ज़रूरत
कंप्यूटरीकृत हॉल-नुमा प्रयोगशाला के एक कोने में दो जोड़ी आँखें लगातार एक स्क्रीन पर जमी हुई थीं। उस सुपर कंप्यूटर की अंतर्निहित शक्ति अपने बगल में स्थित एक सतरंगे ग्लोब-नुमा मशीन की जाँच करने में व्यस्त थी। ''देखा विजय, हम जीत गए।'' अगले ही क्षण प्रोफ़ेसर यासीन ने हाल की निस्तब्धता तार–तार कर दी, ''समय की अबाध गति पर हमारे 'समय-यान' ने विजय हासिल कर ली। अब हम समय की सीमा को चीरकर किसी भी काल, किसी भी समय में बड़ी आसानी से जा सकते हैं।'' वर्षों की शरीर झुलसा देने वाली कठिन तपस्या के फल को प्राप्त होने से प्रोफ़ेसर के सूख चुके शरीर में चमक आ गई थी।

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हास्य-व्यंग्य में
राजेंद्र त्‍यागी के शब्दों में राजनीति, इज़्ज़त और कीचड़

राजनीति का अपना एक संसार है, जिसमें इज़्ज़त होती है, कीचड़ होती है। कीचड़ और इज़्ज़त जब उछलती हैं, तो राजनीति में गतिशीलता के दर्शन होते हैं। वरन राजनीति कीचड़ भरे नाले के समान प्रवाहहीन-सी दिखलाई पड़ती है। नाले की कीचड़ उछल कर जब सड़क पर आती है, तब पूर्व में कीचड़ के नीचे जारी मंद-मंद प्रवाह गति पकड़ लेता है और उसकी गति व दिशा दोनों स्पष्ट होने लगती हैं। यही स्थिति राजनीति की। कीचड़ राजनीति का स्थाई भाव है। राजनीति है जहाँ, कीचड़ है वहाँ! इज़्ज़त राजनीति का स्वाभाविक अंग है, क्योंकि इज़्ज़त मनुष्य के साथ सदैव से चिपकी है। मनुष्य है, तो इज़्ज़त होगी ही।

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संस्मरण में महेशचंद्र द्विवेदी की उलझन-
आप तो न जाने कैसे आई. पी. एस में आ गए
''द्विवेदी जी! आप तो न जाने कैसे आई. पी. एस. में आ गए? आप तो बिल्कुल पुलिस वाले लगते ही नहीं हैं।'' जब से मैंने आई. पी. एस. ज्वाइन की है अनेक बार यह बात लोगों न मुझसे कही है और अब जब मैं रिटायर हो चुका हूँ, तब भी कभी-कभी कोई-कोई मुझसे कह ही देता है। लोगों को शक है कि जाने 'किस चुग़द ने तुम्हें आई. पी. एस. में ले लिया? बच्चू खूब नकल टीपी होगी, नहीं तो तुममें योग्यता तो मूँगफली बेचने भर की भी नहीं है?', और 'आप तो पुलिस वाले लगते ही नहीं हैं` सुनकर मुझे लगता है कि चूँकि मैं मोटा-ताज़ा, बड़ी मूँछों और रोबीले चेहरे वाला नहीं दिखता अत: उसे मेरे प्रभावशाली पुलिसवाला होने के विषय में चिंताजनक संदेह है।

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विज्ञानवार्ता में डॉ. गुरुदयाल प्रदीप का आलेख-
हमारी अपनी सुरक्षा प्रणाली और उसके जुझारू सैनिक भाग-1
प्रकृति ने हमें एक मज़बूत सुरक्षा प्रणाली प्रदान कर रखी है। यह प्रणाली तमाम प्रकार के रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं से लगातार हमारी रक्षा करने का प्रयास करती रहती है और अक्सर सफल भी रहती है। यह सुरक्षा प्रणाली, जिसे प्रतिरोधक तंत्र के नाम से जाना जाता है, सदैव सक्रिय रहती है और अपना काम इतने चुपचाप तरीक़े से करती रहती है कि हमें इसका भान भी नहीं होता है। इस प्रतिरोधक तंत्र में अर्धसैनिक- बल से ले कर तरह-तरह के हथियारों से लैस, लड़ाई में दक्ष सैनिकों के दस्ते, नाना प्रकार के रासायनिक हथियारों को स्वयं ही बनाने एवं उनका उपयोग करने की क्षमता से लैस उच्च कोटि के तकनीकी सैनिक-बल भी शामिल हैं।
 

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प्रौद्योगिकी में
जगदीश भाटिया का आविष्कार हिंदी टूलबार

हिंदी टूलबार इंटरनेट पर हिंदी में लिखने और पढ़ने वालों के लिये बहुत ही काम का टूल है। इसमें हिंदी की सभी साइट्स के लिंक तो हैं ही चिट्ठासर्च, हिंदी लिखने में सहायता, एक क्लिक पर नारद, परिचर्चा और चिट्ठाचर्चा, सभी हिंदी पत्रिकाओं के लिंक, सभी हिंदी के लिंक, एग्रीगेटरों के लिंक, क्रिकेट का स्कोरकार्ड, ऑनलाइन रेडियो, पॉप अप ब्लॉकर, ईमेल नोटिफायर, गूगल समाचार,  नारद के आर एस एस लाइव फीड, गूगल पेज रेंक, बुक-मार्क, चिट्ठों के लिंक, आपके शहर का मौसम और लाइव टीवी भी शामिल हैं। इस टूलबार की एक हजार से भी अधिक प्रतियां डाउनलोड हो चुकी हैं। आइए इस टूलबार के बारे में विस्तार से जानते हैं।

 

रजनी भार्गव,
अनिला कुमार,
यदु जोशी 'गढ़देशी', राजेन्द्र अविरल और अजंता शर्मा की
नई रचनाएँ

पिछले सप्ताह
16 सितंबर 2007 के अंक में
*

समकालीन कहानियों में
यू.के. से महावीर शर्मा की कहानी
एक पत्र बेटी के नाम

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हास्य-व्यंग्य में
डॉ नरेन्द्र कोहली का
हाहाकार

*

हिंदी दिवस पर विशेष

देश-विदेश में हिंदी-

चुटीले-व्यंग्य-

भावभीने संस्मरण-

मर्मस्पर्शी कहानी-

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अन्य पुराने अंक

सप्ताह का विचार
हँसमुख व्यक्ति वह फुहार है जिसके छींटे सबके मन को ठंडा करते हैं।
--अज्ञात

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

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