ज़्यादातर भारतवासी कंप्यूटर के
बारे में क्यों कुछ नहीं जानते हैं क्यों कि एक हमारा ही देश
अनोखा है जहाँ तकनीक की पहुँच आम आदमी तक नहीं है क्यों कि
इसे (भारत में अन्य उच्च शिक्षा की तरह) अंग्रेज़ी के फंदे
में बाँध दिया गया है। उच्च शिक्षा प्राप्त दो प्रतिशत
भारतीयों में से कुछ ही लोग इसका नियमित प्रयोग कर रहे हैं।
बचे हुए लोग कंप्यूटर की शिक्षा के हकदार इसलिए नहीं हैं
क्यों कि हिंदी या भारतीय भाषाओं में काम करने वाले कंप्यूटर
उपलब्ध नहीं हैं। कितने शर्म की बात है!
चीन, कोरिया, जापान इत्यादि
देशों में कंप्यूटर तो आया लेकिन ऐसा कंप्यूटर जो कि अपनी
भाषा में काम करने में सक्षम हो। इससे समस्त देशवासियों को
समान रूप से लाभ पहुँचा। हमारे देश में उल्टी गंगा चलती है।
यहाँ यदि आप कुछ नई चीज़ सीखना चाहें तो पहले आपको अंग्रेज़ी
सीखने की आवश्यकता पड़ेगी। कितनी विडंबना है कि हमें हर नई
चीज़ सीखने के लिए अंग्रेज़ी पर निर्भर करना पड़ता है।
भारतीय आदमी पढ़ता लिखता है तो उसकी बात करने की भाषा पहले
बदलती है। हम भारतीयों की मानसिकता ऐसी क्यों है?
स्वतंत्रता के बाद हमारे
नीति निर्णायकों, अभिजात्य एवं पढ़े लिखे वर्ग के लोगों ने
अंग्रेज़ी को हर मुख्य विभाग की कार्यकारी भाषा बना दिया
जबकि सच यह है कि हिंदी ज़्यादा भारतीय लोगों तक पहुँचती है
और समझी जाती है। कुछ हद तक इसकी ज़िम्मेदार हमारे देश की
क्षेत्रीय व राष्ट्रीय राजनीति है। यदि हमारे देश के आम आदमी
को कंप्यूटर में उनकी ज़रूरत के मुताबिक दक्षता हासिल करनी
है तो सूचना प्रौद्योगिकी का प्रसार हिंदी और अन्य भाषाओं
में होना ज़रूरी है। इससे एक तो लोगों का अंग्रेज़ी में दक्ष
होने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी दूसरे यह भारतीय भाषाओं के
साहित्यिक एवं रचनात्मक विकास में भी सहायक होगी।
इसका असली फायदा यह होगा कि
कंप्यूटर का ज्ञान हर व्यक्ति के लिए सुलभ हो जाएगा। हर
व्यक्ति इंटरनेट के ज़रिए विभिन्न तरह की जानकारियाँ प्राप्त
कर सकेगा और वह समस्त विश्व के साथ जुड़ जाएगा। कंप्यूटर
अनभिज्ञ वर्ग समाज का एक बहुत बड़ा अंग है और सबको अंग्रेज़ी
सिखाते-सिखाते दसों साल लग जाएँगे। हमारे सामने जीता जागता
प्रमाण है कि आज़ादी के 55 साल बाद भी हम अंग्रेज़ी के चलते
शत प्रतिशत साक्षर नहीं हो पाए हैं। इसलिए अंग्रेज़ी के
ज़रिए भारतवासियों को साक्षर करना असंभव-सा प्रतीत होता है।
सूचना प्रौद्योगिकी का
भारतीय भाषाओं में प्रसारण भारतीय जनमानस को साक्षर एवं
जाग्रत बनाने के लिये एक बहुत अच्छा रास्ता हो सकता है। इसका
सीधा सा उदाहरण बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा हिंदी में
विज्ञापन प्रसारित करना है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों का मकसद
इसके पीछे हिंदी का प्रेम नहीं बल्कि आम आदमी तक अपने
उत्पादों को पहुँचाना है। एक और उदाहरण बॉलीवुड का है। आज
बॉलीवुड का इतना व्यापार इसलिए है क्यों कि वहाँ हिंदी
फ़िल्में बनती हैं न कि अंग्रेज़ी। पर हमारे लोग यह सब जानकर
भी अपनी भाषाओं के प्रति अनजान बने हुए हैं और भारतीय भाषाओं
के पूर्ण पतन का रास्ता साफ़ कर रहे हैं।
अगर हमको यह सब कुछ साकार
करना है तो हम सबको ख़ासतौर पर पढ़े लिखे एवं बुद्धिजीवी लोग
जैसे कि इंजीनियर, वैज्ञानिक, शिक्षाविद, सरकारी एवं राजकीय
कार्यकर्मी व उद्योगपतियों को आगे आना होगा। इसमें बहुत सारे
परिश्रम, दृढ़ निश्चय, एक दूसरे का साथ देने की व सामाजिक
उत्तरदायित्व की भावना, तकनीक एवं पैसे की आवश्यकता है।
यह काम एक रात में नहीं हो
सकता है लेकिन यदि निश्चय के साथ किया जाय तो कुछ ही वर्षों
में इसके परिणाम साकार हो सकते हैं। हम एक ऐसे भारत की
कल्पना कर सकते हैं जहाँ प्रत्येक व्यक्ति शिक्षित व जाग्रत
हो। हर छोटी-सी चीज़ के लिए सरकार पर आश्रित न हो जिसको
हमारे भ्रष्ट राजनीतिज्ञ बरगला न सकें और जो अपनी भाषा का
सम्मान करे और उसके माध्यम हो सबकुछ पाने में सक्षम हो।
सूचना प्रौद्योगिकी के
भारतीय भाषाओं में प्रसारण के लिए उचित साधनों (सॉफ्टवेयर,
हार्डवेयर, व शिक्षक) का होना बहुत ज़रूरी है जो कि भारतीय
भाषाओं में सुचारु रूप से कार्य कर सकें। यह काम दुनिया के
कई देशों में किया जा चुका है जैसे कि जापान, कोरिया, लगभग
सारे यूरोपीय देश एवं हमारा पड़ोसी चीन जहाँ सबकुछ मैंडेरिन
में सुचारु तरह से चल रहा है। जब यह काम वहाँ हो सकता है तो
हमारे यहाँ क्यों नहीं हो सकता है।
इस काम में बिल्कुल भी
मुश्किलें नहीं आनी चाहिए यदि हम सचमुच में सूचना
प्रौद्योगिकी की महाशक्ति हैं और हमारे सॉफ्टवेयर एवं
हार्डवेयर इंजीनियर सचमुच में होशियार हैं। इस काम में
भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों जैसे कि इन्फोसिस एवं विप्रो व
भारतीय शिक्षा एवं शोध संस्थानों जैसे कि भारतीय विज्ञान
संस्थान, बंगलौर सभी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों व अन्य
इंजीनियरिंग संस्थानों सी डेक इत्यादि को आगे आकर इस चुनौती
को स्वीकार करके कार्यरत होना होगा।
क्यों हम भारतीय भाषा में काम करने वाले माइक्रोसॉफ्ट वर्ड
एक्सेल पावरपाइंट इत्यादि जैसे सॉफ्टवेयर नहीं बना सकते हैं?
क्यों हमारे पास भारतीय भाषाओं में ईमेल वाला सॉफ्टवेयर नहीं
हो सकता? इस समय उपलब्ध अंग्रेज़ी के सॉफ्टवेयरों पर यह कर
पाना संभव है लेकिन यह सब बिना उचित फॉन्ट के करना संभव नहीं
है। साथ में दूसरी तरफ़ के व्यक्ति के पास भी उचित फॉन्ट का
होना आवश्यक है। कोरिया जापान इत्यादि देशों में पूरा का
पूरा कंप्यूटर तंत्र उनकी भाषाओं में काम कर सकता है लेकिन
अभी तक भारतीय भाषाओं में यह करना संभव नहीं है।
इसका कारण हमारी असमर्थता
या अज्ञान नहीं है बल्कि हमारी इच्छाशक्ति का कमज़ोर होना
है। हम लोगों ने कभी भी इन सब चीज़ों को भारतीय भाषाओं में
काम करने लायक समझा ही नहीं है क्यों कि हम अपनी भाषाओं को
पिछड़ा हुआ समझते हैं। भाषा पिछड़ी हुई नहीं होती बल्कि आदमी
की सोच पिछड़ी हुई होती है और ठीक यही हम भारतीयों के साथ
है। दुर्भाग्यवश हमने अपने पिछड़ेपन का दोष भाषा के माथे मढ़
दिया। हमने यह नहीं समझा कि भाषा एक समाज का आइना होती है,
उसके लोगों की पहचान होती है, संस्कृति का सूचक होती है।
ज़रूरत यह है कि हम
अंग्रेज़ी व अंग्रेज़ी बोलने वालों को ऊँचा समझना बंद करें व
इसे केवल एक विदेशी भाषा की तरह सीखें व उतना ही सम्मान दें।
राष्ट्रभाषा न बनाएँ। ज़रूरत है हिंदुस्तानियों को आपस में
हिंदी या किसी और भारतीय भाषा में बात करने की वरना हमें पता
भी नहीं लगेगा और हम अपनी मातृभाषा अनजाने में भूल जाएँगे।
कहते हैं जिस चीज़ का अभ्यास जितना करो वो उतनी ही मज़बूत
होगी और जिसका जितना कम वो चीज़ उतनी ही कमज़ोर होगी। ये
कहावत भाषा के साथ भी लागू होती है।
सूचना प्रौद्योगिकी के रूप
में आज हमारे पास ऐसी शक्ति है जिसके माध्यम से हम अपनी
पुरानी ग़लतियों को सुधार सकते हैं। हम भारतीय भाषाओं को
उनका यथेष्ट सम्मान दे सकते हैं। कुछ संस्थानों ने आशा की
किरण जगाई है उनमें से प्रमुख हैं- बंगलौर स्थित भारतीय
विज्ञान संस्थान जहाँ पर सिंप्यूटर (इसके माध्यम से लोग
मौसम, शेयर, फसल इत्यादि की जानकारी भारतीय भाषाओं में
प्राप्त कर सकते हैं) का जन्म हुआ, सी डेक व कानपुर एवं
चेन्नै स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जहाँ भारतीय
भाषाओं में काम करने वाले सॉफ्टवेयर बन रहे हैं।
अंत में आज हमारी जो भी
पहचान है वह भारत व भारतीय भाषाओं के माध्यम से है। हमारा यह
धर्म है कि हम भारतीय भाषाओं को बढ़ावा दें व उनके विकास में
यथासंभव प्रयत्न करें। |