संयुक्त अरब इमारात
में हिंदी आम भाषा की तरह बोली जाती है। दुबई और
शारजाह में धनी, यूरोपीय और शासक वर्ग के अरबी लोगों
को छोड़ दें तो लगभग हर व्यक्ति हिंदी बोलता और समझता
है।
दैनिक ज़रूरतों के काम करने वाले लोग जैसे घरों में
काम करने वाली महिलाएँ, टैक्सी ड्राइवर, घर की सफाई का
काम करने वाले लोग, सब्जी बेचने वाले, सुपर मार्केट के
कर्मचारी और सोने या कपड़े की दूकानवाले सब हिंदी
समझते और बोलते हैं। यह सच है कि इसमें से ज्यादातर
भारतीय हैं लेकिन जो लोग भारतीय नहीं हैं या जो भारतीय
है पर जिनकी मातृभाषा हिंदी नहीं है वे भी यहाँ हिंदी
का ही प्रयोग करते हैं। उदाहरण के लिए श्रीलंका की
महिलाएँ जो घर की सफाई का काम करती हैं उनमें से
निन्यानवे प्रतिशत हिंदी बोलती हैं। टैक्सी ड्राइवर
भले ही अरबी हो पर वह हिंदी बोलना और समझना जानता है।
अपने दस साल के प्रवास में मुझे शायद कभी एक टैक्सी
ड्राइवर मिला होगा जो हिंदी नहीं जानता होगा। यही नहीं
पुलिस, अस्पताल, हवाई अड्डे और डाक-खाने जैसे सभी
सरकारी कार्यालयों में लगभग सभी अरबी मूल के लोग हिंदी
बोलते हैं।
इस सबके बावजूद हिंदी का विकास यहाँ एक बोली के रूप
में हो रहा है । ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, संस्कृति और
कला की समृद्ध भाषा के रूप में जो सम्मान उसको मिलना
चाहिए था वह नहीं मिला है। वह प्रतिष्ठित लोगों की
भाषा नहीं बन सकी है। हिंदी के नाटक, कवि सम्मेलन और
फ़िल्मों को देखने जो आभिजात्य भीड़ उमड़ती है वह आपस
में बातचीत के लिए भारतीयों की तरह अंग्रेजियत पर ही
उतर आती है। इसका एक बहुत बड़ा कारण यह है कि स्वयं
भारत के भीतर हम हिंदी को वह सम्मान नहीं दे सके हैं
जो उसको मिलना चाहिए। इसी कारण भारतीय दूतावास भी या
तो हिंदी के विकास का काम करते ही नहीं या बहुत ही
ढीला-ढाला करते हैं ।
इसकी तुलना में अगर हम विदेशी दूतावासों को देखें तो
पता चलेगा कि वे अपनी भाषा के विकास के लिए कितना
ज्यादा काम करते हैं। अगर आज विश्व में अँग्रेज़ी और
फ्रेंच भाषाओं की इज्ज़त है तो वह इसलिए कि उस देश के
लोग अपनी भाषा के विकास में जो जी-जान लगा रहे हैं
उसके पीछे उन देशों की सरकारों का प्रबल सहयोग है। अगर
हमें हिंदी के प्रेमी खाड़ी देशों में अपनी भाषा के
विकास का काम करना है तो विदेशी दूतावासों से सबक लेना
जरूरी है।
ब्रिटेन तथा यूनाइटेड स्टेट्स की तरह खाड़ी क़े देशों
में अरबी-हिंदी के संयुक्त प्रयासों को बढ़ाने की
जरूरत है। भारत के अनेक विश्वविद्यालयों में अरबी की
स्नातक या स्नातकोत्तर पढ़ाई की व्यवस्था है। लेकिन
संयुक्त अरब इमारात (यू. ए. ई.) के किसी भी
विश्वविद्यालय में हिंदी स्नातक या परास्नातक कक्षाओं
में नहीं पढ़ाई जाती है। अगर यहाँ इसी प्रकार हिंदी की
व्यवस्था हो जाए तो हिंदी और अरबी के समकालीन साहित्य
के तुलनात्मक अध्ययन की व्यवस्था हो सकती है। इस
प्रकार की व्यवस्था दोनों देशों के साहित्यिक और
सांस्कृतिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
मैं बहुत सी ऐसी विदेशी महिलाओं से मिली हूँ जो
गृहणियाँ है। वे खाली समय में हिंदी लिखना, पढ़ना या
बोलना सीखना चाहती हैं। अनेक यूरोपीय व अमरीकी
छात्र-छात्राएँ भारत-पर्यटन के लिए सामान्य हिंदी
बोलने व लिखने-पढ़ने की इच्छा रखते हैं। कपड़ों के
उद्योग तथा अन्य कार्यों में लगी अनेक महिलाएँ (पुरुष
भी) हिंदी सीखना चाहते हैं ताकि वे अपने सहकर्मियों
(जो अधिकतर हिंदी में बात करते हैं) के साथ हिंदी
बोलने का मज़ा उठा सकें। हम इन सबके लिए विभिन्न स्तरों
की हिंदी पढ़ाए जाने की व्यवस्था कर सकते हैं। यह
व्यवस्था दूतावास की ओर से हो सकती है या हिंदी
संस्थाओं की ओर से या फिर शिक्षा संस्थाओं की ओर से।
जिस प्रकार ब्रिटिश और फ्रेंच दूतावास अँग्रेज़ी और
फ्रेंच कक्षाएँ चलाते हैं और उनका धुआंधार विज्ञापन
करते हैं ऐसी व्यवस्था भारतीय दूतावास से हिंदी के लिए
होनी चाहिए।
विदेशी दूतावासों में अपनी अपनी भाषा के अति संपन्न
पुस्तकालय होते हैं। ब्रिटिश लायब्रेरी तो अँग्रेज़ी
की श्रेष्ठतम पुस्तकों के लिए हर जगह प्रसिद्ध होती
है। इसी के समकक्ष भारतीय दूतावास में एक
अंतर्राष्ट्रीय स्तर का हिंदी पुस्तकालय होना चाहिए,
जो अन्य पुस्तकालयों से कंप्यूटर द्वारा जुड़ा हो और
अगर कोई पुस्तक पुस्तकालय में उपलब्ध न हो तो उसको एक
हफ़्ते के अंदर मँगा कर दिया जा सके। इसके अतिरिक्त
यहाँ किताबों की दूकान चलाने वाले लोगों को हिंदी
पुस्तकें व पत्रिकाएँ बेचने के लिए प्रेरित किया जा
सकता है।
इतनी शिकायतें करने का मतलब यह नहीं है कि यहाँ हिंदी
के विकास के लिए कुछ नहीं हो रहा है. प्रवासी भारतीय
परदेस जाकर हिंदी तथा भारत का महत्व अधिक गहराई से
महसूस करता है। जब तक वह भारत में रहता है तो हिंदी
तथा भारतीय संस्कृति उसके लिए घर की मुर्गी दाल बराबर
होती है। विदेश में जाकर वहां की चकाचौंध के पीछे छिपी
वास्तविकता को देखने के बाद, उसे हिंदी तथा हिंदी में
अभिव्यक्त होने वाली भारतीय संस्कृति की याद आती है।
इस समय वह हिंदी के विकास और जुड़ाव में लगता है।
प्रवासी भारतीयों में ऐसे हज़ारों लोग खाड़ी के देशों
में भी हिंदी के विकास में संलग्न हैं।
यू. ए. ई. में हिंदी कार्यक्रमों का आयोजन करने वाली
कई संस्थाएं हैं। जो विशेष रूप से कवि सम्मेलन आयोजित
करने का काम करती हैं। प्रतिबिंब और थियेटर वाला ने
कुछ साहित्यिक नाटकों का मंचन करने का काम यदा कदा
किया लेकिन वे लंबा नहीं चल सकीं। कुछ वेब पत्रिकाएँ
और ब्लाग हैं जो अनियतकालीन रूपसे प्रकाशित होते रहे
हैं। लेकिन नियमित रूप से साहित्यिक काम या भाषा के
लिये काम करने वाले लोग या संस्थाएँ नहीं हैं। आबूधाबी
में कृष्ण बिहारी जो स्वयं एक लेखक भी हैं अपने स्तर
पर दूतावास के साथ मिलकर हिंदी दिवस के अवसर पर कुछ
नियमित कार्यक्रम करते रहे हैं। इसके साथ ही वे निकट
नाम से एक त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका का प्रकाशन
भी करते हैं। इसके अतिरिक्त मेरी अपनी वेब पत्रिकाएँ
अभिव्यक्ति व अनुभूति वर्ष २००० से नियमित प्रकाशित हो
रही है। वर्तमान में ये दोनो साप्ताहिक रूप से हर
सोमवार को प्रकाशित की जाती हैं। इसके पुराने अंकों को पुरालेखों में इस प्रकार
व्यवस्थित किया गया है कि वे आज वेब पर हिंदी का सबसे
बड़ा साहित्य कोश बन गए हैं।
यू. ए. ई. में एफ. एम. के कम से कम तीन ऐसे चैनल हैं
जिन पर चौबीसों घंटे हिंदी गाने समाचार और अन्य
कार्यक्रम सुने जा सकते हैं। दिन भर इन पर
अंतर्राष्ट्रीय उत्पादों के विज्ञापन सुने जा सकते
हैं। यह इस बात का सबूत है कि हिंदी खूब लोकप्रिय है
और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियाँ अपने माल बेचने के लिए
हिंदी के महत्व को गंभीरता से महसूस करती हैं। व्यापार
में इस प्रकार हिंदी की अंतर्राष्ट्रीय जरूरत को हिंदी
की ताकत समझा जाना चाहिए।
यू. ए. ई. में हिंदी लेखन के क्षेत्र में श्री कृष्ण
बिहारी ने बहुत महत्वपूर्ण काम किया है. उन्होंने अरबी
परिवेश को चित्रित करने वाली सौ से अधिक कहानियाँ लिखी
हैं जो हंस से लेकर दैनिक जागरण तक लगभग हर पत्र
पत्रिका में प्रकाशित हुई हैं। अनुवाद के क्षेत्र में
कांता भाटिया ने डा मोती प्रकाश के संस्मरणों के हिंदी
अनुवाद का महत्वपूर्ण काम किया है। इसके अतिरिक्त
यदाकदा लिखने वाले और प्रकाशित होने वाले लेखक और कवि
भी कई है जिनकी रचनाएँ समय समय पर अभिव्यक्ति और
अनुभूति की शोभा बढ़ाती हैं।
कुल मिला कर कहा जाए तो संभावनाएँ बहुत है पर जिस
शक्ति और श्रम के साथ काम करने की जरूरत है वह हम पूरी
तरह जुटा नहीं पाए हैं। |