'हिंदी महासागर
की कांपती प्रत्यंचा' मॉरिशस में हिंदी लेखन की समृद्ध
परंपरा रही है। भारत के बाहर कई देशों में हिंदी में
साहित्य सृजन हो रहा है, परंतु सर्जनात्मक साहित्य की
जो प्राणवत्ता और जीवंतता मॉरिशस के हिंदी साहित्य में
है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। मॉरिशस को 'हिंद महासागर का
मोती' कहा जाता है। अलेक्सांद्र जुमा ने अपनी
औपन्यासिक कृति जॉर्ज में मॉरिशस को 'भारत-भूमि की
पुत्री' कहा है। मणिलाल डाक्टर ने इसे 'छोटा भारत' कहा
है। मॉरिशस को इस स्थिति में लाने में और हिंदी
अप्रवासियों ने जो बेइंतहा जुल्म और दमन सहन किया है,
उसका गूँगा इतिहास मॉरिशस के हिंदी साहित्य में सजीव
अंकित है।
रामचरित मानस के
माध्यम से मॉरिशस में हिंदी भाषा का बिरवा रोपा गया।
कौन जानता था कि अनजाने में ही जो बिरवा रोपा गया था,
वह भविष्य में विशाल वटवृक्ष बनेगा।
सम्प्रति मॉरिशस में
हिंदी साहित्य की प्राय: सभी विधाओं में साहित्य सृजन
हो रहा है। २,०४० वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले
इंद्रधनुषी सपनों के देश मॉरिशस में हिंदी कविता की एक
सशक्त परंपरा है। मॉरिशस के प्रसिद्ध हिंदी कवि और
समीक्षक मुनीश्वरलाल चिंतामणि ने मॉरिशस की हिंदी
कविता को दो भागों में विभाजित किया है :
मॉरिशस में हिंदी पत्रकारिता की शुरूआत मणिलाल डाक्टर
के हिंदुस्तानी पत्र से हुई। २ मार्च १९१३ को इस पत्र
में 'होली' शीर्षक कविता छपी। 'होली' कविता को मॉरिशस
की प्रथम हिंदी कविता होने का श्रेय प्राप्य है। कविता
के रचनाकार का नाम अज्ञात है। लक्ष्मीनारायण चतुर्वेदी
'रसपुंज' को मॉरिशस का प्रथम हिंदी कवि माना जाता है।
१९२३ ई. में 'रसपुंज कुंडलियाँ' का प्रकाशन हुआ। इस
काव्य संग्रह में एक सौ ग्यारह कुंडलियाँ हैं। इनकी
कुंडलियों की भाषा पर ब्रज, भोजपुरी और अवधी का प्रभाव
परिलक्षित होता है। एक उदाहरण द्रष्टव्य है:
भैया जो सुख चहहू मिलिए सब सो नेह।
रोगी हीन दरिद्र पै अरपन करिए देह।। रसपुंज की दूसरी रचना 'शताब्दी सरोज' के नाम से
१९३५
ई. में प्रकाशित हुई। यह काव्यकृति भारतीय अप्रवासियों
के आगमन के सौ वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में लिखी गई
थी। मॉरिशस के पहले प्रमुख कवि ब्रजेन्द्र कुमार भगत
'मधुकर' हैं। २ सितंबर १९१६ को मोताई लांग में जन्मे
'मधुकर' मॉरिशस के राष्ट्रकवि हैं। मधुकर जी की तीस से
अधिक काव्य कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। इनकी प्रथम
काव्य कृति 'मधुपर्क' का प्रकाशन १९४२ ई. में हुआ।
इनकी प्रमुख काव्य कृतियां हैं - मधुबन, मधुकरी,
मधुकलश, मधुमास, गुंजन, रसवंती, हमारा देश, इत्यादि।
मॉरिशस के राष्ट्रपिता शिवसागर रामगुलाम के साथ मॉरिशस
के स्वतंत्रता संग्राम के शिरकत करने के कारण इनकी
कविताओं में स्वतंत्रता आंदोलन की झलक दिखाई पड़ती है।
'मधुकर' जी की कविता का एक उदाहरण द्रष्टव्य है:
रे साथी कदम बढ़ाता चल
देश-देश में गूँज उठा है स्वतंत्रता का नारा।
बहती है मानव के मानस अविरल अमृत धारा,
आज गुलामी के बंधन को तोड़-फोड़ के चल।।
'मधुकर' की कविताओं में हिंदी और भारतीय संस्कृति के
प्रति अनन्य प्रेम दिखाई देता है। हिंदी की प्रशस्ति
में उन्होंने 'हिंदी गान' शीर्षक काव्य कृति का प्रणयन
किया है। मॉरिशस की आजादी के पूर्व 'कवि सम्मेलन', विष्णु दयाल
कृत 'कविता कली', पंडित हरिप्रसाद रिसाल मिश्र कृत 'छंदवाटिका',
जयरूद्ध दोसिया कृत 'सुधा कलश' एवं सोमदत्त बखोरी कृत
'मुझे कुछ कहना है' जैसी काव्य कृतियों का प्रकाशन
हुआ।
१२ मार्च १९६८ को मॉरिशस ब्रिटिश आधिपत्य से मुक्त हुआ।
स्वाधीन राष्ट्र के नागरिकों के दिलों में नवोल्लास
फूटा। आजादी के बाद मॉरिशस की हिंदी कविता में एक नया
मोड़ आया। आज़ादी के पाने का उल्लास हरिनारायण सीता
कृत 'प्रभात', जनार्दन कालीचरण कृत 'प्रथम रश्मि' और
रामरतन रिसाल मिश्र कृत 'बिखरे सुमन' प्रभृति रचनाओं
में परिलक्षित होता है। मॉरिशस की स्वातंत्र्योत्तर
हिंदी कविता पर विचार करते हुए मुनीश्वरलाल चिंतामणि
लिखते हैं:
'सन् १९६८ से मॉरिशस की हिंदी कविता स्वतंत्रता के
वातावरण में फल-फूल रही है। स्वतंत्रता अपने साथ
बेकारी और निर्धनता की समस्याएँ लाई। आर्थिक और
सामाजिक स्वाधीनता के लिए कविता की संघर्ष चेतना को
काव्य में स्थान मिला।' मॉरिशस में हिंदी में कविता लिखने वालों की संख्या
शताधिक है। प्रमुख हिंदी कवियों की रचनाओं के आधार पर
हम मॉरिशस की हिंदी कविता के स्वरूप को उद्घाटित करना
चाहेंगे।
सोमदत्त बखोरी
मॉरिशस की हिंदी कविता के अत्यंत सशक्त
हस्ताक्षर हैं। उनका जन्म मॉरिशस के मोताई लांग नामक
गांव में १९२१ ई. में हुआ था। भारत सरकार द्वारा 'विश्व
हिंदी पुरस्कार' से सम्मानित बखोरी के चार काव्य
संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। प्रकाशित काव्य कृतियां
हैं: मुझे कुछ कहना है, बीच में बहती धारा, नशे की
खोज, सांप भी सँपेरा भी।
सोमदत्त बखोरी की कविताओं में वैविध्य के स्वर हैं।
एक तरफ वह मॉरिशस की इंद्रधनुषी छटा पर मुग्ध होते हैं
तो दूसरी ओर मॉरिशस की जिंदगी की विसंगतियों पर
मर्मांतक व्यंग्य करते हैं। अपनी कविता 'शक्कर की
रोटी' में बखोरी जिंदगी की विसंगतियों पर व्यंग्य करते
हुए कहते हैं :
पर मैंने कुछ और ही देखा
देखा कि धरती मां की लाज बचाने को
खून-पसीने के ताने-बाने से
हरी साड़ी की बुनाई हो रही है।
कवि को युगद्रष्टा कहा जाता है।
बखोरी के अंदर का
द्रष्टा तृतीय विश्वयुद्ध के आसन्न संकट को देख लेता
है। कवि का हृदय चीत्कार कर उठता है :
तीसरे महायुद्ध के हैं तीन मोर्चे
गरीबी, बीमारी, अज्ञानता
लड़ते हैं इसमें सिपाही
कदम-कदम पर हवलदार से
मारे जाते हैं इसमें आदमी
अव्यवस्था की तलवार से।
मुनीश्वरलाल चिंतामणि मुक्त छंद की कविता के जनक माने
जाते हैं। उनकी काव्यकृति शांति निकेतन की ओर १९६९ में
प्रकाशित हुई।
उनकी कविताओं में क्रांति और संघर्ष के तत्व
परिलक्षित होते हैं। औद्योगिक संस्कृति की विकृतियों
पर करारा प्रहार करते हुए चिंतामणि जी लिखते हैं :
इंसान यहां खुद को भूलकर
रफ्ता-रफ्ता
पत्थर बनता जा रहा है,
लोहा बनता जा रहा है।
अभिमन्यु अनत शबनम
जिस रचनाकार ने हिंदी कविता को एक नया आयाम दिया है
तथा जिसकी कविताएँ भारत के हिंदी साहित्य में भी
महत्वपूर्ण स्थान पाने की हकदार हैं, वह हैं मॉरिशस के
महान कथा-शिल्पी अभिमन्यु अनत। अभिमन्यु अनत का जन्म ९
अगस्त १९३७ ई. को त्रिओले में हुआ था। अब तक अनत के चार
कविता संकलन प्रकाशित हो चुके हैं : 'कैक्टस के दांत',
'नागफनी में उलझी सांसें', 'एक डायरी बयान' तथा
'गुलमोहर खौल उठा'। अभिमन्यु अनत अपने देश की नैसर्गिक
सुषमा से भाव विभोर नहीं होते, बल्कि मानसिक त्रासदी
से उद्वेलित होते हैं। अपनी कविता में वह अपने समाज पर
होने वाले अत्याचार और शोषण के खिलाफ प्रश्नावाचक
मुद्रा में खड़े हो जाते हैं। अभिमन्यु अनत की
कविताओं में शोषण, दमन और अत्याचार के खिलाफ आवाज
बुलंद की गई है। बेरोजगारी की समस्या पर भी अनत की
दृष्टि गई है। समसामायिक व्यवस्था पर कवि का भावुक
हृदय चीत्कार कर उठता है :
जिस दिन सूरज को
मज़दूरों की ओर से गवाही देनी थी
उस दिन सुबह नहीं हुई
सुना गया कि
मालिक के यहां की पार्टी में
सूरज ने ज्यादा पी ली थी।
अनंत की कविताओं में मॉरिशस के श्रमजीवियों की वेदना
उभरती है। 'लक्ष्मी का प्रश्न' शीर्षक कविता में अनत
प्रश्नवाचक मुद्रा में खड़े हो जाते हैं :
अनपढ़ लक्ष्मी पर इतना जरूर पूछती रही
पसीने की कीमत जब इतनी महंगी होती है
तो मजदूर उसे इतने सस्ते क्यों बेच देता है।
अनत द्वारा संपादित कविता संकलन हैं : मॉरिशस की हिंदी
कविता, तथा मॉरिशस के नौ हिंदी कवि।
हरिनारायण सीता
(जन्म १९३४) अपनी महत्वपूर्ण कृति
'प्रभात' के लिए जाने जाते हैं। उनकी कविताएँ 'प्रवासी
स्वर', 'मॉरिशस की हिंदी कविता' तथा 'मॉरिशस के नौ हिंदी
कवि' प्रभृति संपादित संकलनों में भी संकलित हैं। उनकी
कविताओं में परंपरा और आधुनिकता का विलक्षण समन्वय
है। उनकी 'चक्रव्यूह' कविता में महाभारत के कथानक को
आधुनिक संदर्भ में देखने का प्रयास किया गया है।
'इतिहास क्या साक्षी है' कविता में अप्रवासी भारतीयों
की वेदना का गूँगा इतिहास छिपा हुआ है।
पूजानंद नेमा
का जन्म २४ नवंबर १९४३ को मॉरिशस के
दक्षिण प्रांत के लाफ्लोरा गांव में हुआ था। उनका
कविता संग्रह 'चुप्पी की आवाज' १९९५ में नटराज
प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुआ। उन्होंने
'आकाशगंगा' नामक काव्य संग्रह का संपादन भी किया है।
उनकी कविताएँ अपनी एक अलग पहचान का अहसास देती हुई
प्रतीत होती हैं। बड़ी कठिनाई से आजादी मिली हैं।
आजादी कोई वस्तु नहीं हैं बल्कि संवेदना है। 'जो
गैरहाजिर है' कविता में आजादी के अस्तित्व के प्रति
कवि का चिंतन द्रष्टव्य है :
आजादी चेहरों का तबादला नहीं
गुलामों की एजेंसी भी नहीं
वायदे नहीं, नारे नहीं
आजादी चंद दिलों की सुहागरात भी नहीं
जिसे वेश्या भी मना लेती है।
हेमराज सुंदर
मॉरिशस की हिंदी कविता के सर्वाधिक समर्थ
युवा स्वर हैं। उनकी कविता यात्रा की शुरूआत 'आक्रोश'
से हुई। 'चेतना' और 'चुनौती' उनके प्रकाशित कविता
संकलन हैं। उनकी कविताओं में युवाओं की कुंठा,
निराशा और बेबसी के स्वर भी मिलते हैं। कविता में
आस्थावादी स्वर भी बुलंद के साथ मुखरित होता है :
मेरे शरीर की नदी में
अभी बाढ़ की संभावना है
बदलेगी हवा - सच कहता हूँ।
अपनी कविता 'प्रजा' में हेमराज ने प्रजातंत्र का जीवंत
रूपक खींचा है। आकाश विधानसभा है, समय संविधान है।
चमकता तारा उम्मीदवार है। जीतकर जमने वाला नेता है और
जो खंडित हुआ वह प्रजा है। अपनी 'दो दो की दास्तान'
कविता में हेमराज ने लुप्तप्राय पक्षी डोडो को याद
करने के बहाने औपनिवेशिक शोषण पर मर्मांतक व्यंग्य
किया है।
मुकेश जीबोध
मॉरिशस के कवियों पर भारत के साहित्यकारों का प्रभाव
सहज रूप से पड़ा है। मुकेश जीबोध उन युवा रचनाकारों
में हैं जिनकी कविताओं पर भारत के नए कवियों का
प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। मुकेश जीबोध
को मॉरिशस में हिंदी गज़ल का प्रवर्तक माना जा सकता है।
उनकी ग़ज़लों का तेवर दुष्यंत कुमार की याद दिला देता
है। उनकी गज़ल की चंद पंक्तियाँ द्रष्टव्य हैं :
क्या सोच के मैंने शीशे का मकान बनाया
बंधु हर आदमी ने है हाथ में पत्थर उठाया
लोगों ने मिलकर हमारे खिलाफ की है साजिश
इन दिनों फ़ासलों से चलता है अपना साया। इंद्रदेव भोला 'इंद्रनाथ', महेश राम जियावन, वीरसेन
जागासिंह और नारायणपत दसोई की कविताओं में संभावनाओं
के नए क्षितिज की तलाश है। इंद्रदेव भोला का कविता
संकलन 'वरदान' १९७२ में प्रकाशित हुआ। उनकी
कविताओं
में प्रवासी भारतीय मज़दूरों की पीड़ा का दर्दनाक
इतिहास अंकित है। गिरजानन रंगू अपनी रचना 'मॉरिशस के
बाद' के लिए याद किए जाते हैं। ठाकुरप्रसाद मिश्र के
खंडकाव्य 'दीपावली' का प्रकाशन १९६२ में हुआ था। ठाकुरदत्त पांडे मॉरिशस के हिंदी में काव्य साहित्य
के
प्रवर्तक माने जाते हैं। 'निशा' और 'पुष्पांजलि' उनके
कविता संग्रह हैं। कृष्णलाल बिहारी 'लेखवर' कृत ' मैं
हूँ कलियुगी भगवान' तथा परमेश्वर बिहारी कृत 'अभिशाप'
अन्य उल्लेखनीय रचनाएँ हैं। मॉरिशस में हिंदी में अब तक शताधिक कविता संग्रह
प्रकाशित हो चुके हैं। मॉरिशस की हिंदी कविता औपनिवेशिक
दासता से मुक्त होकर अपने पथ पर अग्रसर है। मॉरिशस में
हिंदी प्रकाशन के अभाव के बावजूद वहां के रचनाकार अपनी
दुर्दम्य जिजीविषा से काव्य सृजन में रत हैं।अभिमन्यु
अनत द्वारा संपादित त्रैमासिक पत्रिका 'वसंत' में
हिंदी कवियों को प्रमुख स्थान मिल रहा है। प्रह्लाद
रामशरण द्वारा संपादित 'इंद्रधनुष' तथा अजामिल माताबदल
द्वारा संपादित 'पंकज' पत्रिकाओं में भी
कविताएँ
प्रकाशित हो रही हैं। 'मॉरिशस ब्रोडकास्टिंग
कॉरपोरेशन' भी युवा कवियों को प्रोत्साहित कर रहा है।
मॉरिशस में हिंदी कविता का भविष्य उज्ज्वल है और एक दिन
हिंद महासागर के खूबसूरत द्वीप मॉरिशस की हिंदी कविता
को भारत के हिंदी साहित्य के इतिहास में सम्मानजनक
स्थान अवश्य मिलेगा।
|