इस
सप्ताह
14
सितंबर हिंदी दिवस के अवसर पर-
समकालीन कहानियों में
यू.के. से महावीर शर्मा की कहानी
एक
पत्र बेटी के नाम
मेरे इस पत्र की तिथि देख कर
तुम सोचती होगी कि इससे दो दिन पहले ही तो फ़ोन पर बात हुई थी,
फिर यह पत्र क्यों? बेटी, इस पत्र में जो कुछ लिख रहा हूँ, वह
फ़ोन पर संभव नहीं था। इस पत्र की प्रेरणा मुझे दो बातों से
मिली। सुबह सड़क पर गिरे कुछ काग़ज़ मिले जिन में किसी पिता के
मर्मस्पर्शी उद्गार भरे थे। ऐसा लगा जैसे कि उसकी आत्मा
उन्हीं काग़ज़ों के पुलिंदे के इर्द-गिर्द भटक रही हो। दूसरे,
स्व. पं. नरेंद्र शर्मा की इन पंक्तियों को पढ़ कर ह्रदय
विह्वल हो उठा,
'सत्य हो यदि, कल्प की भी कल्पना कर, धीर बाँधूँ,
किंतु कैसे व्यर्थ की आशा लिए, यह योग साधूँ!
जानता हूँ, अब न हम तुम मिल सकेंगे!
आज के बिछड़े न जाने कब मिलेंगे?
*
हास्य-व्यंग्य में
डॉ नरेन्द्र कोहली का हाहाकार
वे
हिंदी की प्रसिद्ध लेखिका हैं। पिछले दिनों एक शिष्टमंडल ले कर प्रधान
मंत्री से मिली थीं और हिंदी के लिए ही नहीं, उसकी बोलियों के लिए भी,
कुछ करने का आग्रह और अनुरोध कर के आई थीं। आज गोष्ठी की अध्यक्षता वे ही
कर रही थीं। हिंदी के भविष्य को ले कर वे आज भी बहुत चिंतित थीं। उन के
भाषण का मूल विचार ही यही था। अगली पीढ़ी यदि हिंदी का बहिष्कार कर देगी
तो हिंदी कैसे बचेगी। हमारे साहित्य का भविष्य क्या होगा? पुस्तकें
बिकेंगी नहीं। पत्रिकाएँ कोई ख़रीदेगा नहीं। अंतत: दुखी हो कर वे बड़े
आवेश में बोलीं, ''मेरे तो अपने बच्चे ही हिंदी की कोई पुस्तक पढ़ने को
तैयार नहीं हैं।''
*
पुराने अंकों से हिंदी दिवस पर विशेष
विदेश में हिंदी-
चुटीले-व्यंग्य-
भावभीने संस्मरण-
मर्मस्पर्शी
कहानी-
देश में हिंदी-
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नए संकलन मातृभाषा के प्रति में हिंदी के नए
पुराने कवियों की 20
नई रचनाएँ |
पिछले सप्ताह
9
सितंबर 2007 के अंक में
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समकालीन कहानियों में
यू.के. से उषा वर्मा की कहानी
फ़ायदे का सौदा
*
हास्य-व्यंग्य में
अविनाश वाचस्पति दे रहे हैं
बैटरी चार्ज करने को दिल उधार
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घर परिवार में
अर्बुदा ओहरी ढूँढ रही हैं
चैन की नींद
सत्यानाश हो मशीनीकरण का, औद्योगीकरण का, लाइट बल्ब का, जिनकी वजह से
हमारी नींद कोसों दूर भागती जा रही है। जितना हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी
आसान हो रही है हमारी नींद में कटौती भी उसी दर से हो रही है। काम का बोझ,
ऑफ़िस में अपनी पोज़ीशन बनाए रखने के लिए मेहनत और इन सभी से ज़्यादा हाय बस
आज नींद ठीक से आ जाय इस चिंता ने हमारी ज़िंदगी उलझा दी है। वैसे भी नींद
बिना चैन कहाँ रे। अमेरिका में हुए एक सर्वे के अनुसार 38 प्रतिशत वयस्क
जितना सुकून से पाँच साल पहले सो पाते थे अब नहीं सोते।
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रसोईघर में
शाकाहारी मुग़लई के अंतर्गत
नवरतन
क़ोरमा
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फुलवारी में
बच्चों के लिए
भावना कुँअर की
पद्य-कथा चूहे
भाई
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अन्य
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