|
रवीन्द्र कालिया का नवीनतम व अप्रकाशित लघु उपन्यास ए बी सी डी धारावाहिक (दूसरी किस्त) शील ने आंखें खोलीं और यह जान कर राहत की सांस ली कि वह यथार्थ नहीं था, एक दु:स्वप्न था। उसे अपने संसार में लौटने में देर न लगी। एक टीस की तरह उसे याद आया कि शीनी डेट पर गयी हुई है। वह पलंग पर उकडूं बैठ कर फिर बिसूरने लगी। नेहा भाग कर पानी का गिलास ले आयी, "अब क्या हुआ मॉम। शीनी डेट पर गयी है, हमेशा के लिए ससुराल नहीं चली गयी।'' "यह लडकी मेरी मौत बन कर पैदा हुई है।'' नेहा ने तुरंत मां के मुंह पर पानी का गिलास लगा कर उसकी जुबान बंद कर दी। °°°
|
कहानियों में "आंखें बंद करो।" मां ने झपटतीसी आवाज़ में धीरे से कहा। सब के सब आंखें बंद करके बैठ गए। काला घना अंधेरा था। सन्नाटा ऐसा कि अपनी सांसें भी कानों में तेजी से बज रही थीं। झिल्ली की झनकार और झींगुरों की चिकचिकाहट जंगल में शोर लग रही थी। हम सब जीनेमरने के सवाल से जूझ रहे हैं, यह बात मैं तब तक समझ ही नहीं पाई थी। बंद आंखों के भीतर अंधेरा और भी काला लग रहा था, जिसमें मेरा मन घबरा उठा था। मगर मां की वह बात बारबार मन में घूम रही थी कि रोशनी पड़ने पर चमक उठने वाली हमारी आंखें ही हमारी सबसे बड़ी दुश्मन हैं। °
परिक्रमा
में °
पर्यटन
में
°
° °
कृष्ण बिहारी की
आत्मकथा
उत्साही
मनुष्य कठिन से कठिन काम
वाल्मीकि |
° पिछले अंकों से° कहानियों
में
दिल्ली दरबार के अंतर्गत बृजेश कुमार |
आज सिरहाने।आभार।उपहार।कहानियां।कला दीर्घा।कविताएं।गौरवगाथा।घरपरिवार |
|
|
प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना
परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन सहयोग : दीपिका जोशी
तकनीकी
सहयोग :प्रबुद्ध कालिया
साहित्य संयोजन :बृजेश कुमार
शुक्ला