२४ मई
२००३, यह तारीख़ अन्ना मरिया थॉमस को कभी नहीं भूलेगी।
भूले भी तो क्यों? इसी दिन तो उसकी पहली बोर्ड परीक्षा
का नतीजा घोषित हुआ और उसे खुशी के झूले में डाल गया।
“अन्ना... तुम्हारा रिज़ल्ट आ गया पता है...?”
प्रधानाचार्य श्री वी. के. कौल ने अन्ना को सबसे पहले
सूचना दी तो उसने ज़वाब में कहा, “नो सर।”
“तुमने स्कूल के बीस साल के रिकॉर्ड को तोड़ा है। मीडिया के अनुसार तुम गल्फ़ टॉपर हो।
”
“ये नहीं हो सकता सर...मुझे यक़ीन नहीं आ रहा। ”
“लेकिन सच यही है, स्कूल को तुम पर गर्व है, मेरी ओर से और स्कूल की ओर से बधाई स्वीकार
करो। ”
और, तबसे अन्ना मरिया थॉमस को मिलने वाली बधाइयों का
सिलसिला अभी थमा नहीं है। सी.बी.एस. ई. बोर्ड की
दसवीं की परीक्षा में उसे ९७.२ प्रतिशत अंक मिले हैं।
अन्ना मरिया थॉमस को सचमुच यक़ीन नहीं हुआ था जब
अबूधाबी इण्डियन स्कूल के प्रधानाचार्य ने उसे उक्त
जानकारी दी लेकिन हकीकत पर यक़ीन करना पड़ता है।
२५ मई की सुबह आठ बजे के समाचारों में पता चला कि जिस
छात्रा ने सी.बी.एस.ई. बोर्ड की परीक्षा में
सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है उसे ९७.६ प्रतिशत अंक
मिले हैं। यानी कि सिर्फ. २ अंकों से अन्ना को प्रथम
स्थान से वंचित रहना पड़ा. लेकिन उसे इस बात से कतई
अफसोस नहीं है बल्कि खुशी इस बात की है कि उसने जो
पाया है उसके बारे में सोचा तक नहीं था। वह ईश्वर के
प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहती है,
“इस सफलता के पीछे माता–पिता का आशीर्वाद, शिक्षिकाओं
का मार्गदर्शन और ईश्वर की कृपा शामिल है।”
उसका कहना है, “ जीवन का हर दिन एक परीक्षा है। हर
परीक्षा में शांतचित्त और मानसिक तैयारी के साथ उतरना
चाहिए। अपना काम ईमानदारी से करते हुए अपने
उत्तरदायित्व को निभाना अपने हाथ में है। फल देना तो
ईश्वर के हाथ में है। ”
गणित अन्ना का सबसे प्रिय विषय है। वह इंजीनियर बनना
चाहती है। यह उसका सपना है।
अन्ना मरिया थॉमस... आज चर्चा में है... मैंने उसके
बारे में विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री कौल,
मुख्याध्यापिका श्रीमती रशीदा ख़ातून, उसकी
कक्षाध्यापिका श्रीमती सूसन पोथन, उसकी सबसे अच्छी
मित्र अनीता मेरी जॉन के अलावा उसकी मां से बात की।
अन्ना की मां जो अबूधाबी इण्डियन स्कूल में ही
अध्यापिका भी हैं। उनके उद्गार...
“मैं बहुत खुश हूँ। अन्ना मेरी संतानों में सबसे
बड़ी है। मैं मानती हूँ कि बेटियां परिवार में
सौभाग्य लाती हैं। खुशहाली लाती हैं। बेटी अगर ईश्वर
की भक्ति है तो बेटे वरदान हैं। बिना भक्ति के
वरदान नहीं मिलता। अन्ना ने परिवार के सम्मान को
पहले भी गौरवान्वित किया है। यू.ए.ई. में भारत के
राजदूत महामहिम श्री के. सी. सिंह के निर्देशन में
भारतीय गणतंत्र की स्वर्ण जयंती के उपलक्ष्य में
संपन्न हुई ‘हिन्दी निबंध प्रतियोगिता’ में भी वह
विजेताओं में से एक थी और उसे तत्कालीन गृहमंत्री,
भारत सरकार और वर्तमान में उप–प्रधानमंत्री श्री एल.के. अडवानी के हाथों दुबई में पुरस्कार मिला था। वह ज़रा–सा भी दिखावा नहीं करती। अपना काम करती है। उसकी इस उपलब्धि पर मुझे ही नहीं... सभी को
आश्चर्य है... लेकिन गर्व भी है। ”
उसकी कक्षाध्यापिका श्रीमती सूसन पोथन का कहना है , “
मैंने उसे कक्षा पांच से पढ़ाया है। वह एक शालीन
छात्रा है। स्कूल में होने वाली अन्य सांस्कृतिक
गतिविधियों में वह बढ़–चढ़कर हिस्सा लेती है। फिर भी
कोई उसके इस तरह उद्भाषित होने की कल्पना नहीं करता
था। वह एक ऐसी लड़की है जो हंगामा–पसंद नहीं है। ”
लेकिन अन्ना की सबसे प्रिय मित्र अनीता मेरी जॉन का
कहना है , “ अन्ना... अत्यधिक विनम्र ज़रूर है।मगर... वह मौज मस्ती पसंद करती है। वह किताबी कीड़ा
नहीं है। जैसा कि लोग समझते हैं। इण्टरनेट पर
एक घण्टे बैठना उसका शौक है।वह पाठ्यक्रम को रटने के
बजाय उसे समझना ज़्यादा ज़रूरी समझती है और, जो
सबसे बड़ी बात है वह यह कि वह स्वभाव से दयालु है।”
विद्यालय की मुख्याध्यापिका श्रीमती रशीदा ख़ातून के
शब्दों में, “अन्ना बहुत ही अन्तर्मुखी है। इस
परीक्षा–परिणाम से पहले कोई भी यह भविष्यवाणी नहीं कर
सकता था कि उसे गल्फ टॉपर होने का सौभाग्य मिलेगा। लेकिन अब जबकि नतीजा आ चुका है, .तो... कोई यह
भी नहीं कह सकता कि यह... अप्रत्याशित है... वह
इसके योग्य है। हम सबको उसकी इस उपलब्धि पर गर्व
है। ”
प्रधानाचार्य श्री वी .के . कौल ने अन्ना के बारे में
मुझे बताया, “ तीन–चार बार मैंने उसे देखा है। वह
निहायत शांत प्रवृत्ति की छात्रा है। उसके
परीक्षा–परिणाम से स्कूल की गरिमा बढ़ी है। मैंने ही
सबसे पहले उसे सूचना भी दी। हमारे विद्यालय के बच्चों
ने इससे पहले भी खाड़ी में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने
के रिकॉर्ड बनाए हैं। लेकिन अन्ना ने पिछले बीस साल
के कीर्तिमान को तोड़ा है। निश्चित ही वह बधाई की
पात्र है। एक प्रधानाचार्य की हैसियत से मैं अपनी ओर
से तथा पूरे स्कूल की ओर से उसे बधाई देता हूँ। ”
प्रधानाचार्य श्री कौल ने आगे कहा, “एक व्यक्ति के रूप
में मैं संतुष्ट नहीं हूँ। प्रतियोगिता का यह
युग विद्रूप होता जा रहा है। इससे बच्चों के
माता–पिता तनावग्रस्त हो रहे हैं। बच्चों पर भी
भार बढ़ रहा है। जीवन को सामान्य होना चाहिए... सामान्य ज़िन्दगी में ही जीवन का सच्चा आनन्द है। फिर
भी, अन्ना के व्यक्तित्व को देखते हुए मैं सभी
विद्यार्थियों को यही संदेश दूंगा कि उससे प्रेरणा लें
और बिना किसी तनाव के जीवन की हर परीक्षा को सहज भाव
से लें।”
और आख़िर में अन्ना मरिया थॉमस का यह वाक्य, “मैं खुश
तो बहुत हूँ मगर... गुरूर नहीं है। आज गल्फ़ टॉपर हूँ। कल कोई दूसरा भी होगा।”
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