'इंद्रदेव
क्रोध करत धड़धड़ बादल गरजत
तड़तड़ बिजली चमकत बरसत है मूसलाधार
सखियां सब भीगत जात'
मछली सी दो नन्हीं तीखी आंखें काजल के घेरों से लपकलपक
सुरों और साज के बादलों पर चढ़ी थिरक रही थीं। गति
आवेग और बिजली की कड़क नाम सुमिता शर्मा और
सारा परिसर रागरंग में डूब गया। भावों के
नन्हेंनन्हें छींटें तबले की गरजती किड़कित धरांग धारिता के
साथ चारों तरफ उड़ने लगे। सरोद के गूंजते सुर नूपुरों की
छनकार में गुंथे मादक सा नशा और जादू बुन रहे थे। अपनी
ही ज़िद पे मचले नूपुर और एक के बाद एक द्रवित व मार्मिक
प्रसंगों का चित्रण। रंगमंच का परदा उठा चुका था और
हावभाव पिघलपिघल, बहबहकर नएनए रूप लिए जा रहे
थे।
अति कोमल हावभाव से गंभीर
और भारी भरकम गणपति का सुन्दर और सजीव आभास व चित्रण,
गणपति वंदना में ही कह गया कि शाम कलात्मक और
प्रभावशाली संभावनाओं से भरपूर है। तुलसी के गरिमामय
दोहें और महादेवी की कोमल संवेदना। कल्पना मूर्त हो मंच
पर उतर आई। ' मैं नीर भरी दुख की बदली परिचय इतना
इतिहास यही उमड़ कल थी मिट आज चली ' भीगे जा
रहे थे सब और फिर अचानक सब शान्त। कार्यक्रम पराकाष्ठा के सम
पर आ गया।
तुलसी के दोहे और जटायु वध
का दृष्य। 'तुम सम पुरूष ना मो सम नारी' शूर्पणखा की
सुलगती वासना और दंभी, कपटी रावण, भयभीत और पश्चाताप
करती सीता और किंकर्तव्य विमूढ़ लक्ष्मण सभी जीवित वह
भी एक ही कलाकार के अंदर। एक कुशल नृत्यांगना ही नहीं, सफल
अभिनेत्री भी हैं वह शब्दम् और वर्णम् का सहज व सुगम
संगम ही नहीं, तिल्लाना के चपल और मनोहारी हावभाव
और गति व घुमाव भी। तीन ताल और झपताल पे थिरकता कत्थक
नृत्य अब राजदरबारों के मनोरंजन से निकल भरत
नाट्यम की भांति मंदिर में नाचती देवदासियों की गरिमा
से जुड़ चुका था।
और अंत में बेहद प्रभावशाली
चित्रण मरते और अपने असफल प्रयास पर छटपटाते लाचार
अंगभंग जटायु का। वही एक बार फिर आस्था और धूर्तता की
पुरानी लड़ाई। थिरकन की गति मर्म और भेद से गुजरकर
करूणामय हो चली। संवेदना उस लकड़ी की पट्टियों के मंच में
रिसरिस गई तड़फड़ाते आखिरी सांस लेते जटायु के साथ।
मन ही नहीं पूरा हॉल द्रवित था। तालियों की गड़गड़ाहट के
साथ कुर्सियों को छोड़ सब कब खड़े हो गए पता ही नहीं
चला। शाम भावभीनी और महादेवी वर्मा के मधुरमधुर
दीप सी ही दीप्त और लौमय थी।
भारत के एक छोटे से शहर
जमशेदपुर से आई नृत्यांगना सुमिता शर्मा न सिर्फ एक अच्छी
कलाकार है अपितु अपने साथ अच्छा गायन और वादन का दल भी
लेकर आई थीं। दल के सभी सदस्य भूरिभूरि प्रशंसा और
बधाई के पात्र हैं। नृत्य के जयपुर घराने से जुड़ी और
नारायण प्रसाद की कुशल और तन्मय शिष्या सुमिता शर्मा ने
पूरे परिसर को भावभीना और प्रभावित कर दिया था। सभी की
संतुष्ट और तृप्त मुस्कान कह रही थीं कि आयोजन सफल और
आंखें कह रहीं थी कि हम आभारी हैं स्थानीय दूतावास के, कृति
यूके के, हिन्दी समिति और स्थानीय आर्य समाज के
जिनके कुशल और सफल संयोजन और अथक प्रयास ने हम
बरमिंघम वासियों को एक ऐसी मनोहारी और सुहानी शाम
दी।
बर्मिंघम ब्रिटेन में लंदन के
बाद दूसरा बड़ा और मुख्य शहर हैं। अभी तक एक औद्योगिक शहर
की तरह ही मशहूर यह शहर शायद पिछले पांच सौ साल से ही
कला और संस्कृति के लिए भी मशहूर होना चाहिए था क्योंकि
अंग्रेजी साहित्य को आज भी हम सर्वोपरि यहां के
साहित्यसम्राट शेक्सपियर से ही जोड़ते हैं और शेक्सपियर
का जन्म इसी क्षेत्र में हुआ था।
बर्मिंघम से मात्र पच्चीसतीस
मील की दूरी पर स्थित स्टै्रटफर्ड अपौन एवन आज भी पर्यटकों का
तीर्थस्थल है और हर कलाप्रेमी या पर्यटक की यही कोशिश रहती
है कि अपनी घूमने की जगहों की सूचि में इसे अवश्य
सम्मिलित कर पाएं। टयूडर कला में बनी कालीसफेद पट्टियों
से घिरे मकानों से बना यह शहर आज भी उतना ही नाटकीय
और प्रभावशाली लगता है जितना कि उस समय लगता होगा
जब वह कवि व नाटयसम्राट अपने हैमलेट और रोमियो
जूलियट से यहां की जनता का खुले आकाश के नीचे मनोरंजन
करता था। एवौन नदी के किनारे रौयल शेक्सपियर थियेटर आज
भी वैसे ही खड़ा है और अपने आलीशान कलात्मक नाटकों के
प्रदर्शन के लिए आज भी उतना ही प्रसिद्ध है और न सिर्फ यहां
ब्रिटेन में वरन पूरे विश्व में चर्चा व ईर्ष्या का विषय
बना रहता है। शहर में घुसते ही यहां के रंगबिरंगे फूलों
का उत्सव पर्यटकों का मन मोह लेता है। और नदी के किनारे
पहुंचतेपहुंचते तो नदी में तैरते गरिमामय श्वेत हंस पूरी
तरह से मंत्रमुग्ध कर चुके होते हैं। यही नहीं शेक्सपियर के
जन्म स्थान के आसपास एक सफल और प्रभावशाली पर्यटक
व्यापारिक केन्द्र स्थापित हो चुका है, जहां पर ब्रिटेन की सभी
मशहूर और सफल चीजें खरीदीं जा सकती है। जिनजिन सुन्दर
कलात्मक वस्तुओं के लिए ब्रिटेन मशहूर हैं वह सभी यहां
आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं, फिर वे चाहें ब्रिटेन के
कलात्मक स्फटिक हों, चाइना के बर्तन हों या फिगरीन और
डिजाइनर कपड़ें। बड़ेबड़े फैशन हाउस और छोटेछोटे
आउटलेट सभी ने यहां पर अपनी दुकानें खोल रखी हैं।
मुख्यतः कार और शस्त्रों के साथ
इन सभी चीजों का उत्पादन भी यहीं इसी क्षेत्र में होता है।
सभी बड़े और मशहूर नामकी कम्पनियां यहीं पर हैं क्या
वेजवुड़, डैनबी और क्या वूस्टर, रौयल या ब्रायली या
वॉटफर्ड क्रिस्टल। शायद यही वजह है कि ब्रिटेन के इस
भौगोलिक मध्य क्षेत्र को राष्ट्र का दिल या धड़कन भी कहा जाता
है। इसमें एक अच्छा सहयोग दिया है चन्द दशक पहले बने
अंतरराष्ट्रीय कौन्फ्रेंस सेन्टर ने जो कि आईसीसी के
नाम से भी जाना जाता है और बरमिंघम शहर की मुख्य
गतिविधियों का केन्द्र बनता जा रहा है। अन्य कई मुख्य
आयोजनों के साथसाथ जी सेवन का आयोजन भी यही
हुआ था। यही नहीं, पीछे बहती नहर और उसमें तैरते
छोटेछोटे नावों में बने रेस्टोरैंट व किनारे पर नियौन
लाइट में चमकती दुकानें व पब। बारहों महीने एक उत्सव का
माहौल जिन्दा रखते हैं ये। यही नहीं, आस पास कई अन्य भव्य
और कलात्मक इमारतें हैं जैसे कि सिफनी व ऑपेरा हाउस,
बर्मिंघम रैपिटरी थियेटर, शहर का मुख्य संग्रहालय,
लाइब्रेरी, चैम्बरलिन स्क्वैयर और सामने कई भव्य और
अंतरराष्ट्रीय स्तर के होटल और पर्यटक स्थल, क्लब व रेस्टोरैंट
अर्थात बर्मिंघम यदि ब्रिटेन का दिल है तो निश्चित ही
यह हिस्सा बर्मिंघम का दिल है जहां पर स्थित कई कसिनों और
क्लब रात में इस भाग को आवारा और बेपरवाह मस्ती भी दे
देते हैं।
तीसरा आयाम देता है अंतरराष्ट्रीय
एग्जीबीशन सेंटर जो आज ब्रिटेन में विश्व व्यापार का शो
केस बन चुका है।
बढ़ती एशियन आबादी और
एशियन बाज़ारों ने बर्मिंघम को एक और जबरदस्त एशियन
पहचान दे दी है और इसे करी कैपिटल भी कहा जाने लगा है। अगर
आप सोहो रोड पर घूम रहे हों तो भूल जाएंगे कि आप
ब्रिटेन के किसी शहर में हैं या भारत के अमृतसर में। घुसते
ही बड़ा और प्रभावशाली गुरूद्वारा और फिर हमारे जनजीवन
के लिए जरूरी हर चीजों की क्रमबद्ध दुकानें। जी हां, सब्जी
अचार से लेकर हीरे जेवरात, संगीत कैसेट, चौके की झाडू
सभी कुछ खरीदा जा सकता है यहां पर। लाल पीली सैटिन की
सलवारें और किरन लगे दुपट्टों के साथसाथ भारत के (विशेषतः
पंजाब के) आधुनिकतम फैशन के कपड़े वगैरह सभी कुछ मिल
जाएंगे आपको यहां पर। भांगड़ा रैप और बाली सग्गू का
रिमिक्स वाला संगीत आन्दोलन भी इसी सोहो रोड के एक
छोटे से कोने से ही शुरू हुआ था। ढोल और झांझ ने आज
आधुनिकतम सिंथैसाइजर्स से मिलकर पूरे विश्व में बसे
संगीत प्रेमी भारतीयों के मन में हलचल और धूम मचा दी
है और यही नहीं बाम्बे और दिल्ली के आधुनिकतम पांचतारा
होटेल्स के डिसकथैक में इन धुनों पर थिरकते युगलों को हर
शाम देखा जा सकता है। बिडू और नैशनल स्टीरिओ जैसे कई
ग्रूप आज भारत की मुख्य फिल्मी संगीतधारा में घुलमिल चुके
हैं और फिरोज खां से लेकर कई अन्य मुख्य प्रोड्यूसर इन
संगीतकारों की मदद अपनी फिल्मों में ले चुके हैं। हंसराज
हंस, बाली सग्गू, मलकीत सिंह आदि कुछ ऐसे नाम हैं जो
आज बच्चे बच्चे की जुबान पर हैं। आलीशा चिनॉय और
नाज़िया हसन से भला कौन नहीं परिचित है और आजकल
सबके ऊपर छाई शाजिया मंसूर को कौन भूल सकता है। इन
सभी ने मुख्यतः यहां ब्रितानिया से ही अपनी संगीत यात्रा
शुरू की थी।
जैगुअर कार, रोल्स रौयस का
इंजन, कैडबरीज चौकलेट और वेवरली स्काट की मशहूर
रिवौल्वर इस छोटे से शहर को उत्पादन और प्रतिभा आज
भी बहुमुखी और बहुआयामी ही है। और हां, अन्त में आप सभी
ने हवाई जहाज में घूमते या किसी अच्छे होटल और रेस्टौरंट
में बैठे मशहूर वूस्टर सौस तो चखा ही होगा कभी
टोमैटो जूस में तो कभी बर्गर के ऊपर। यह वूस्टर सौस भी
यहीं मिडलैंड में ही बनता है। कहते हैं करीब सौ साल पहले
जब यहां के बादशाह जॉर्ज भारत गए तो वहां से इमली की
बनी कोई चटनी उपहार में लाए थे जिसे उनका खानसामा
भंडारे में रखकर भूल गए थे और पुरानी पड़ जाने की वज़ह
से इसमें तलखी और चारकोली स्वाद आ गया था। और फिर जब
कई महीने बाद बादशाह ने उसे चखा था तो वे वह स्वाद कभी
नहीं भूल पाए थे और वहीं से जन्म हुआ था इस आधुनिक
वूस्टर सौस का। अब तो हम सभी को मानना पड़ेगा कि यह
ब्रिटेन और भारत का प्यार और नफरत का मिला जुला रिश्ता
कितना रंगबिरंगाचटपटा और बरसों पुराना है वरना यहां
के मशहूर और सफल निर्देशक एंड्रू लौयड वेवर अपने
म्यूजिकल में संगीत निर्देशन का जिम्मा अपने
एआररहमान को न दे पाते और ब्रिटेन में बसे हम
भारतीयों की पहचान व प्रतिभा दिनप्रतिदिन न निखरती और
प्रखरती न चली जाती। आज व्यापार, कला, राजनीति और समाज
के हर क्षेत्र में न हम एशियन मूल के लोग अपनी उपस्थिति दर्ज
करा रहे हैं वरन ब्रिटेन को एक सफल और प्रभावशाली समाज
बनाने में अच्छा योगदान भी दे रहे हैं और किसी भी देश या
समाज के लिए यह कोई कम गर्व की बात नहीं।
जून 2003
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