|  |  आइए, मुझे 
					तो उम्मीद थी कि खबर पाकर यहाँ पहुँचने वालों में आप पहले आदमी 
					होंगे। जीते–जागते उस आदमी को तस्वीर बने चार दिन हो गए और आप 
					आज आ रहे हैं? हमारे यहाँ तो किसी के न रहने की खबर हवाओं में 
					घुल जाती है और खबर पाते ही सबका सब कुछ जैसे मर जाता है कुछ 
					समय के लिए। कौन आया और कौन नहीं आया यह बात तो मरने वाला 
					हमारे यहाँ भी नहीं जान पाता, और न ही इसका हिसाब हमारे यहाँ 
					जीते रहने वाले ही रखते हैं... साथी होने का मतलब क्या होता 
					है? 
 आप शायद तस्वीर बन गए आदमी की याद में अंदर पहुँच कर आँसू 
					बहाने की जल्दी में हैं। जरा देर यहीं मेरे पास बैठिए, अभी 
					अंदर बड़ी भीड़ है। आप कब आए और कब गए, कोई जान भी नहीं 
					पाएगा...ऐसे में क्या फायदा? आप लोगों के यहाँ तो फायदा तोलने 
					वाले बटखरे खूब चलते हैं। तस्वीर बन गए आदमी ने मेरी माँ और 
					मेरे तमाम खानदान वालों को जिस फायदे के लिए मार गिराया था, वह 
					तो मैं अपनी आँखों से घर के अंदर बड़े कमरे में देख आई हूँ। 
					मुझे जिंदा रखने के पीछे भी शायद अपनी शान बढ़ने का फायदा ही 
					देखा होगा इसने।
 
 वैसे तो मुझसे बातें करने में आपका क्या फायदा होनेवाला है। 
					लेकिन बहुत नागवार न गुजरे तो जरा देर मेरे पास बैठ जाइए, आपका 
					यह एक तरह का उपकार ही होगा।
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