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कहानियां  

समकालीन हिन्दी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है यू के से पद्मेश गुप्त की कहानी— डेड एण्ड

ब्राइटन के समुंदर की लहरों में खेलती मिनी को दूर आकाश से सागर में मिलती लकीर उस दूरी का आभास दिला रही है जिससे उसका परिचय शीघ्र होने वाला है, दूरी अपने पिता से, दूरी अपने घर से, दूरी अपने देश से। तीन सप्ताह में वह स्विट्ज़रलैंड के बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने जा रही है जहां उसके नए साथी तो होंगे परन्तु पिता नहीं। दूर छोटी सी एक नाव समन्दर के उस पार जाती हुई मिनी की नन्हीं आंखों से ओझल हो रही है और वह स्वयं को दूर और दूर जाता हुआ महसूस कर रही है। मिनी भी उस नाव की तरह अकेली होने वाली है, इन जानी पहचानी सड़कों, गलियों, पार्क से दूर नई वादियों में।

पल भर में उसने पलट कर अपनी निगाह चन्द फर्लांग पर लाल और नीली पट्टीदार छतरी के नीचे बैठे हर्ष पर टिका दी जो किसी उपन्यास में डूबे हुए थे। चारो ओर अगस्त की फैली धूप, मेज पर रखी बियर और आंखों पर काला चश्मा लगाए बहुत अकेले दिख रहे हैं मिनी को उसके पिता।

"नहीं, मुझसे ज्यादा तो मेरे डैड अकेले हो जाएंगे।" अपने आप से कहते हुए मिनी के कदम पिता की ओर बढ़ गए।

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