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होली
विशेषांक समग्र
कहानियाँ-
हास्य व्यंग्य-
लेख-
और... |
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अनुभूति में-
इसाक अश्क, राजेंद्र पासवान
घायल, हर्ष कुमार, सरिता नेमानी और नरेश सक्सेना की रचनाएँ |
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कलम
गही नहिं हाथ
सुबह सुबह ताज़े अख़बार के साथ
के नए सुडोकु को भरने के लिए पेंसिल उठाई तो उसे नोकीला करने की ज़रूरत
महसूस हुई। शार्पनर देखकर याद आया कि हमारे बचपन में ऐसे ढक्कन वाले शार्पनर नहीं होते थे, जिसमें पेंसिल की छीलन जमा
हो जाए और बाद में इसे सुविधानुसार फेंका जा सके।
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शायद तीसरे दर्जे की बात है १९६२-६३ का समय, कक्षा में पेंसिल छीलनी
हो तो कोने में रखी रद्दी काग़ज़ की टोकरी तक जाने का नियम था। उस
अवसर का इंतज़ार कमाल का होता था और उससे मिलने की खुशी का ठिकाना
नहीं। कोई और विद्यार्थी पहले से वहाँ हो फिर तो कहना ही क्या! एक दो
बातें भी हो जाती थीं और इस सबसे जो स्फूर्ति मिलती थी उसकी कोई
सीमा न थी। यह सब याद आते ही चेहरे पर मुस्कान छा गई। आजकल के बच्चे
उस खुशी के बारे में नहीं जानते हैं। उनके जीवन में बहुत सी नई
खुशियाँ आ मिली हैं।
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जानना चाहेंगे आज के सुडोकु का क्या
अंत हुआ? आज का सुडोकु था चौथे नंबर का दुष्ट यानी डायबोलिक। बड़ा ही संभलकर
खेला, धीरे धीरे कदम बढ़ाए, एक पूरा घंटा सूली पर चढ़ा दिया, पर... फँस ही गई अंतिम पंक्ति में, फिर
हिम्मत छोड़ दी, सोचा ज़रूरी कामों को पूरा किया जाए। दुआ करें कि कल आने
वाले सुडोकु में इतनी मारामारी ना हो।
-पूर्णिमा वर्मन (टीम अभिव्यक्ति)
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क्या
आप जानते हैं?
विश्व के इतिहास में 21 मार्च 2008 एक ऐसा दिन था जब हिंदुओं की
होली, ईसाइयों का गुड फ्राइडे, मुसलमानों का ईद-ए-मीलाद, पारसियों का
नौरोज़ और यहूदियों का पर्व प्यूरिम एक ही दिन मनाए गए। |
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सप्ताह का विचार
अपनी भूल अपने ही हाथों से सुधर
जाए तो यह उससे कहीं अच्छा है कि कोई
दूसरा उसे सुधारे। -प्रेमचंद |
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