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पर्व पंचांग २४. ३. २००८

इस सप्ताह-
समकालीन कहानी के अंतर्गत यू.के. से
उषा राजे की कहानी मेरा अपराध क्या था
मुझे पापा के सामने जाने की सख़्त मनाही थी। मैं अपना बिस्तर उन दिनों दुछत्ती में लगा लेती। स्कूल से आते ही मैं रसोई के वर्क-टाप पर रखे सैंडविच का पैकेट और पानी की बोतल उठा चूहे की तरह ख़ामोश, लटकने वाली सीढियाँ चढ़ दुछत्ती में पहुँच, ट्रैप-डोर बंद कर लेती। दुछत्ती में रहना मुझे कोई बुरा नहीं लगता था। वह मेरे अकेलेपन को रास आता। उन दिनों मैं वहाँ अपनी एक अलग दुनिया बसा लेती। एटिक में दुनिया भर के अजूबे और ग़ैर-ज़रूरी पुराने सामान ठुसे हुए थे। इन सामानों से खेलना, और उन्हें इधर-उधर सजा-सँवार कर रखना मुझे अच्छा लगता था।

*

मनोहर पुरी हास्य व्यंग्य के साथ करवा रहे हैं
पुस्तक मेले में लोकार्पण

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प्रकृति और पर्यावरण में महेश परिमल का आलेख
पानी रे पानी

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कलादीर्घा में
होली पारंपरिक कलाकृतियों में

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देश विदेश के साहित्य समाचारों में
* जगदीप सिंह दांगी पुरस्कृत, डॉ. रमा द्विवेदी और शरद तैलंग सम्मानित,
* भारतीय उच्‍चायोग, लंदन द्वारा सम्‍मान घोषित तथा मध्य-प्रदेश लेखक संघ द्वारा विभिन्न सम्मानों के लिए प्रस्ताव आहूत,
* साहित्य अकादमी, दिल्ली के कथा-संधि कार्यक्रम में एस आर हरनोट का कहानी पाठ और 'क्षण के घेरे में घिरा नहीं' का लोकार्पण
*

 

होली विशेषांक समग्र

कहानियाँ-
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आसमान से गिरा- राजीव तनेजा

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अलग अलग तीलियाँ- प्रभु जोशी

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एक बार फिर होली- तेजेंद्र शर्मा

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राजा हरदौल- प्रेमचंद

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हो ली- स्वदेश राणा

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होली का मज़ाक- यशपाल

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होली मंगलमय हो- ओमप्रकाश अवस्थी

हास्य व्यंग्य-
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शेयरों की लगी वाट...  अविनाश वाचस्पति

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कट्टरता- डा नरेंद्र कोहली

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काव्य कामना कामदेव की- अशोक चक्रधर

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चुटकी गुलाल की- शैल अग्रवाल

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निरख सखी फिर- तोताराम चमोली

लेख-

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फ़िल्मी गानों में होली

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लोकगीतों में देवी-देवताओं की होली

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माधव और माधव

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अल्पना क्या है

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देश विदेश की होली

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बृज में हरि होली मचाई

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मन बहलाव वसंत के

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मादक छंद वसंत के

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रंगों से बदलें दुनिया

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लला फिर आईयो खेलन होली

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लोकगीतों में देवी-देवताओं की होली

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वसंतोत्सव

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सुनिए रंगों के संदेश

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होली और गीत संगीत

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होली खेलें रघुवीरा

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होली-पुराने दौर के समाचार-पत्रों मे

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यह पगध्वनि

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रंग बोलते हैं

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लेकिन मुझको फागुन चाहिए

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आँगन में उतरा इंद्रधनुष

और...

 

अनुभूति में-
इसाक अश्क, राजेंद्र पासवान घायल, हर्ष कुमार, सरिता नेमानी और नरेश सक्सेना की रचनाएँ

कलम गही नहिं हाथ
सुबह सुबह ताज़े अख़बार के साथ के नए सुडोकु को भरने के लिए पेंसिल उठाई तो उसे नोकीला करने की ज़रूरत महसूस हुई। शार्पनर देखकर याद आया कि हमारे बचपन में ऐसे ढक्कन वाले शार्पनर नहीं होते थे, जिसमें पेंसिल की छीलन जमा हो जाए और बाद में इसे सुविधानुसार फेंका जा सके।
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शायद तीसरे दर्जे की बात है १९६२-६३ का समय, कक्षा में पेंसिल छीलनी हो तो कोने में रखी रद्दी काग़ज़ की टोकरी तक जाने का नियम था। उस अवसर का इंतज़ार कमाल का होता था और उससे मिलने की खुशी का ठिकाना नहीं। कोई और विद्यार्थी पहले से वहाँ हो फिर तो कहना ही क्या! एक दो बातें भी हो जाती थीं और इस सबसे जो स्फूर्ति मिलती थी उसकी कोई सीमा न थी। यह सब याद आते ही चेहरे पर मुस्कान छा गई। आजकल के बच्चे उस खुशी के बारे में नहीं जानते हैं। उनके जीवन में बहुत सी नई खुशियाँ आ मिली हैं।
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जानना चाहेंगे आज के सुडोकु का क्या अंत हुआ? आज का सुडोकु था चौथे नंबर का दुष्ट यानी डायबोलिक। बड़ा ही संभलकर खेला,  धीरे धीरे कदम बढ़ाए, एक पूरा घंटा सूली पर चढ़ा दिया, पर... फँस ही गई अंतिम पंक्ति में, फिर हिम्मत छोड़ दी, सोचा ज़रूरी कामों को पूरा किया जाए। दुआ करें कि कल आने वाले सुडोकु में इतनी मारामारी ना हो।
-पूर्णिमा वर्मन (टीम अभिव्यक्ति)

क्या आप जानते हैं?
विश्व के इतिहास में 21 मार्च 2008 एक ऐसा दिन था जब हिंदुओं की होली, ईसाइयों का गुड फ्राइडे, मुसलमानों का ईद-ए-मीलाद, पारसियों का नौरोज़ और यहूदियों का पर्व प्यूरिम एक ही दिन मनाए गए।

सप्ताह का विचार
अपनी भूल अपने ही हाथों से सुधर
जाए तो यह उससे कहीं अच्छा है कि कोई
दूसरा उसे सुधारे। -प्रेमचंद

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

 

 

 

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