"नववर्ष की बहुत बहुत बधाई।"
उन्होंने चकित हो कर मुझे देखा, "कौन सा नववर्ष? नया साल तो पहली जनवरी को आरंभ
होता है।"
"वह ईसा का नववर्ष होता है।"
वे भौंचक से मेरा चेहरा देखते रह गए जैसे मैंने कोई बहुत अशिष्ट बात कह दी हो। फिर
बोले, "हम लोग इतने कट्टर नहीं हैं।"
मैं मानता आया हूँ कि यदि ईमानदारी से कोई काम
करना हो तो उसके नियम विधान का कट्टरता से पालन करना चाहिए। ढुलमुल रह कर संसार में
कोई काम ढंग से नहीं होता। यदि हम कट्टर न हुए होते और उनके समान उदार बने रहते तो
न कभी मुगलों का राज्य समाप्त होता न अंग्रेज़ों का। किंतु मैं यह भी समझ रहा था कि
उन्होंने अपने विषय में कुछ नहीं कहा था, जो कुछ कहा था, वह मेरे विषय में था। शब्द
कुछ भी रहे हों, कहा उन्होंने यही था कि मैं कट्टरपंथी हूँ और कहीं कोष्ठकों में यह भी ध्वनित हो रहा था
कि कट्टरपंथी होना अच्छी बात नहीं है।
"ईसवी संवत को ईसा का संवत कहना क्या कट्टरता है?"
"और क्या? नववर्ष नववर्ष होता है, ईसा का क्या और किसी और का क्या?" वे पूर्णत:
निश्चित, निश्चिंत और आश्वस्त थे।
"विक्रम संवत को विक्रम संवत कहना, हिजरी संवत को हिजरी संवत कहना, पारसी नौरोज़ को
पारसी नौरोज़ कहना कट्टरता है?"
"वह सब हम नहीं जानते। हम तो केवल इतना जानते हैं कि यह नववर्ष है। सारी दुनिया
मनाती है।"
"ठीक कह रहे हैं आप।" मैंने कहा, "शायद आपको मालूम भी नहीं होगा कि यह पंचांग केवल
पंचांग नहीं है, 'ईसवी पंचांग है।"
"पंचांग क्या?" वे बोले, "वह जो पंडितों के पास होता है।"
"पंचांग हम कैलेंडर को कहते हैं।" मैंने कहा, "पंडितों के पास भी होता है और साधारण
जन के पास भी होता है।"
"मैं वह सब नहीं जानता।" वे बोले।
"आपके न जानने से न तथ्य बदलते हैं न सत्य।" मैं बोला, "कबूतर आँखें बंद कर ले तो
बिल्ली का अस्तित्व समाप्त नहीं हो जाता।"
"क्या बुराई है ईसा के नववर्ष में?" वे कुछ आक्रामक हो उठे।
"मैंने बुराई की बात कही ही नहीं है।" मैंने कहा, "मैंने तो इतना ही कहा है कि यह
नववर्ष, ईसाइयों के पंचांग के अनुसार है।"
"पर काम तो हम इसी के अनुसार करते हैं।"
"मुगलों के राज्यकाल में हमें हिजरी संवत के अनुसार काम करना पड़ता था।" मैंने कहा,
"वह हमारी मजबूरी थी।
हमने कभी उसे अपना उत्सव तो नहीं बनाया। वही बात ईसवी संवत के
लिए भी सत्य है। अंग्रेज़ी साम्राज्य ने उसे हम पर थोपा। आज भी किन्हीं ग़ल़त
नीतियों के अनुसार काम करने के कारण ईसा का वर्ष हमारी मजबूरी हो सकती है, हमारा
उत्सव तो नहीं हो सकता। किसी की दासता, उसको बधाई देने का कारण नहीं हो सकती।"
"किसी को याद भी है, अपना देसी कैलेंडर?" वे चहक कर बोले।
"जिन्हें अपनी अस्मिता से प्रेम है, उन्हें याद है।" मैंने कहा, "सरकार से कहिए
भारतीय पंचांग से वेतन देना आरंभ करे, हम सबको अपने आप भारतीय पंचांग याद आ जाएगा।"
"इस देश पर हिंदू कैलेंडर थोपना चाहते हो।" उन्होंने गर्जना की, "इस देश में
मुसलमान और ईसाई भी रहते हैं।"
"मैं क्या करना चाहता हूँ उसे जाने दीजिए।" मैं बोला, "आप इस देश पर ईसाई पंचांग
थोपते हुए भूल गए कि इस देश में हिंदू भी रहते हैं। ईसाई कितने प्रतिशत है इस देश
में? और आपने उनका कैलेंडर सारे देश पर थोपा रखा है।
और उसपर आप न केवल यह चाहते
हैं कि हम उसे उत्सव के समान मनाएँ यह भी भूल जाएँ कि हमारा अपना एक पंचांग है, जो
इससे कहीं पुराना है। जो हमारी ऋतुओं, पर्व त्यौहारों तथा हमारे इतिहास से जुड़ा
है।"
"वह हिंदू कैलेंडर है।" वे चिल्लाए।
"यदि संसार में आपका मान्य पंचांग, एक धर्म से जुड़ा है तो दूसरा पंचांग भी धार्मिक
हो सकता है।"
मैंने कहा, "उसमें क्या बुराई है? किंतु हम जिस पंचांग की बात कर रहे हैं, वह
भारतीय है। राष्ट्रीय है। आप बातों को धर्म से जोड़ते हैं, हम तो राष्ट्र की दृष्टि
से सोचते हैं। ईसवीं और हिजरी संवत धार्मिक है क्यों कि वे एक धर्म- एक पंथ- के
प्रणेता के जीवन पर आधारित हैं। विक्रम संवत अथवा युगब्ध का किसी पंथ अथवा
पंथप्रणेता से कोई संबंध नहीं हैं। वह शुद्ध कालगणना है। इसलिए वह उस अर्थ में एकदम
धार्मिक नहीं है, जिस अर्थ में आप उसे धार्मिक कह कर उसकी भर्त्सना करना चाह रहे
हैं।"
"मुझे धार्मिक बातों में सांप्रदायिकता की बू आती हैं।"
"तो आपको अपने ही तर्क के आधार पर ईसवीं संवत को एकदम भूल जाना चाहिए। वह तो चलता
ही एक पंथ विशेष के आधार पर है।"
"दुखी कर दिया यार तुमने।" वे बोले, "तुमसे तो बात करना ही पाप है। अब विक्रमी,
ईसवीं, हिजरी और जाने कितने संवत होंगे। मैं किसको मनाऊँ?"
"इतना संभ्रम अच्छा नहीं है।" मैंने कहा, "संसार में इतने पुरुष देखकर उनमें से
अपने पिता को ही न पहचान सको, तो कोई तुम्हें समझदार नहीं मानेगा।"
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