कहानियाँ |
समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है भारत से
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'हाँ आ जाओ बाहर... कोई डर
नहीं है अब...चले गए हैं सब के सब।'
डर के मारे बुरा हाल था। सब
ज्यों का त्यों मेरी आँखों के सामने सीन-दर-सीन आता जा रहा था।
मानों किसी फ़िल्म का फ्लैशबैक चल रहा हो। बीवी बिना रुके
चिल्लाती चली जा रही थी... |