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बुंदेलखंड में ओरछा पुराना
राज्य है। इसके राजा बुंदेले हैं। इन बुंदेलों ने पहाड़ों की
घाटियों में अपना जीवन बिताया है।
एक समय ओरछे के राजा जुझारसिंह थे। ये बड़े साहसी और
बुद्धिमान थे। शाहजहाँ उस समय दिल्ली के बादशाह थे। जब
शाहजहाँ लोदी ने बलवा किया और वह शाही मुल्क को लूटता-पाटता
ओरछे की ओर आ निकला, तब राजा जुझारसिंह ने उससे मोरचा लिया।
राजा के इस काम से गुणग्राही शाहजहाँ बहुत प्रसन्न हुए।
उन्होंने तुरंत ही राजा को दक्खिन का शासन-भार सौंपा। उस दिन
ओरछे में बड़ा आनंद मनाया गया। शाही दूत खिलअत और सनद ले कर
राजा के पास आया। जुझारसिंह को बड़े-बड़े काम करने का अवसर
मिला।
सफ़र की तैयारियाँ होने
लगीं, तब राजा ने अपने छोटे भाई हरदौलसिंह को बुला कर कहा,
"भैया, मैं तो जाता हूँ। अब यह राज-पाट तुम्हारे सुपुर्द है।
तुम भी इसे जी से प्यार करना! न्याय ही राजा का सबसे बड़ा
सहायक है। न्याय की गढ़ी में कोई शत्रु नहीं घुस सकता, चाहे
वह रावण की सेना या इंद्र का बल लेकर आए, पर न्याय वही सच्चा
है, जिसे प्रजा भी न्याय समझे। तुम्हारा काम केवल न्याय ही
करना न होगा, बल्कि प्रजा को अपने न्याय का विश्वास भी
दिलाना होगा और मैं तुम्हें क्या समझाऊँ, तुम स्वयं समझदार
हो।"
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