हास्य व्यंग्य

शेयरों की लगी वाट और क्रिकेटरों के हो गए ठाठ
—अविनाश वाचस्पति


साल दर साल यही सुनने में आता है कि‍ होली आ गई, पर दोस्‍तों इस बार का चि‍त्र वि‍चि‍त्र है। इस दफा होली से पहले ही ऐसे-ऐसे कारनामे हुए हैं कि‍ बस्‍स. . . अरे नहीं होली के आने से पहले ही वातावरण काफ़ी रंगीन हो चुका है। क्रिकेट खिलाड़ियों की बोली लगने से ऊँची कीमत लगे क्रिकेटरों की बोली की रंगत के रंग देखे जा सकते हैं।

इधर क्रिकेटरों की विज्ञापनों से होने वाली गोरी कमाई पर पाबंदी लग रही थी या जितनी चाह रहे थे उतनी आउटपुट नहीं मिल रही थी और फ़िक्सिंग की काली कमाई पर संकट छाया हुआ था तो ऐसे में रास्‍ते खुल गए बोली के। क्रिकेटरों को मज़ा आ गया होली में बिना चोली के। खूब कमा रहे हैं। इस होली पर क्रिकेटरों के सितारे जगमगा रहे हैं। लगाने वाले बोली लगा रहे हैं और खिलाड़ी बोली के नोट इस होली में पा रहे हैं। सच है क्रिकेटरों के सितारे बुलंदी के आसमान में जगमगा रहे हैं जो होली से पहले आ गए थे सारे ज़मीं पर अब हाल है तारे ज़मीं पर।

धनोबल एक ऐसी प्राकृतिक वस्‍तु है कि इसके प्रभाव से कोई न कभी अछूता रहा है और न ही रह सकता है। जब किसी के धनोबल में वृद्धि होती दिखाई दे तो मान लेना चाहिए कि उसके मनोबल में रिकार्ड तोड़ बढ़ोतरी हो गई। जिसका चतुर्दिक प्रभाव प्रभावित व्‍यक्तित्‍व के मुख मंडल पर बहुरंगी में आभा बिखेरने लगता है। मुख मंडल खिला खिला कमल हो जाता है। सारे कार्य बनने लगते हैं। धन की ताकत इस सृष्टि पर ऐसी महाबलशाली न दिखाई देने वाली चीज है जो बिना दिखाई दिए अपना प्रभाव दिखलाती चलती है। इसकी शक्ति से ओत प्रोत धोनी धुला-धुला सा नहीं, धोने वाला बन सिकंदर बन जाता है। इसकी शक्ति जब धूमिल हो तो बना बनाया खेल तक चौपट हो जाता है। युवराज जो बना रहा सरताज बेताज हो जाता है। कोई होता है मस्‍त कलंदर और कोई कंगारू, देख रहे हैं आप मिलते हैं बंदर भी। लगता है क्रिकेट जानवरों से अटा पड़ा है जिन्‍हें ये सब आपस में ही धीरे-धीरे चीन्‍हते जा रहे हैं। पर इतना सब होने पर भी सब्र इसलिए है कि न यहाँ पर कोई गधा है, न उल्‍लू है पर देश को बना रहे लल्‍लू हैं।

देश बन भी रहा है। देश इसलिए क्‍योंकि देश देशवासियों से बनता सजता है इसलिए ज़्यादा मुँह खोलने की ज़रूरत मुझे नहीं है। आपके कानों से खुद ही खुद सच्‍चाई की ज़ोरदार आवाज़ें आ रही होंगी। इधर आप शेयर बाज़ार का खस्‍ता हाल देख ही रहे हैं यहाँ पर भी निवेशकों को लल्‍लू बनाने वालों की ज़ोरदार मुहिम चल नहीं दौड़ रही है। वैसे जानबूझकर भी और बातों में आकर, अफ़वाहों में फँसकर कोई लल्‍लू बने तो उसे कोई कैसे बचाएगा।

इस बार, क्रि‍केट खि‍लाड़ि‍यों को बेच दि‍या है सरेबाज़ार। ये सब भी तो बिकने के लिए हैं तैयार। इसे कोई क्‍यों नहीं देता अवैध व्‍यापार करार। आखिर न जाने किस-किस का हित सध रहा है इससे। अब नीलामी और बोली का कोई और अर्थ भी नि‍कलता हुआ हमें तो दि‍खाई नहीं देता। होली से पहले ही क्रि‍केट खि‍लाड़ि‍यों की लग गई है बोली। अब सब मि‍लकर खेलो सच्‍ची होली। पहले होती रही है फ़िक्सिंग, इस बार लग गई है बोली।

क्रिकेट और शेयर बाज़ार का व्‍यापक प्रभाव आज पूरी सृष्टि पर नज़र आ रहा है। बाज़ार कहीं का भी गिरे, अर्थव्‍यवस्‍था कहीं की भी ढीली हो, उसकी चाल कहीं भी सुस्‍त हो - आप देखते हैं कि उसके कीटाणु दुनिया के बाकी बाज़ारों पर भी अपने मनहूसियत के रंग दिखलाने लगते हैं। बाज़ार में गिरावट आने से जीने का जज़्बा तक विलुप्‍त होने लगता है। भूख प्‍यास नहीं लगती, गले में सूखा-सूखा-सा लगने लगता है। यही गला जब बाज़ार बढ़ रहा होता है तो सुख से लबालब होता है। जब क्रिकेट खिलाड़ी चौके छक्‍के मार कर रन की बरसात कर रहे होते हैं तो वो दृश्‍य शेयरों की क़ीमतों में बढ़ती ऊँचाई को दिखलाता है। लगता है दोनों एक दूसरे पर आश्रित हैं। हम बने तुम बने एक दूजे के लिए की तर्ज़ पर। जिस तरह चौके छक्‍के लगने पर मनोबल और धनोबल में तिगुनी छगुनी सब मिलाकर शगुनी वृद्धि होती है उसी प्रकार शेयर के मूल्य दनादन ऊपर जाने पर सेंसेक्‍स का सेक्‍स उफान पर होता है। तब धनोबल के बढ़ने से मनोबल इतना हाई-फाई होता है कि सूखे गले की मात्रा घूमकर सुख से ओत प्रोत हो जाती है और हो भी क्‍यों न, जब खाली ख़ज़ाने भरने लगते हैं। इसे देखकर नए-नए निवेशक उसमें घुसने लगते हैं बिल्‍कुल उसी तरह जिस तरह चैनलों पर क्रिकेट देख-देखकर गलियों, मोहल्‍लों, पार्कों और खाली पड़े मैदानों में चहल पहल हो जाती है। कहीं ईटों की, कहीं जूते रखकर विकेटों का आभास पैदा किया जाता है और वहाँ पर आने वाले क्रिकेट धुरंधरों का निर्माण होने लगता है। कुछ वहाँ से निकल कर क्षेत्रीय, राष्‍ट्रीय और अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर चमकने लगते हैं और बाकी पिटे हुए शेयरों के माफिक नये निवेशकों को तिगुनी का नाच नचा रहे होते हैं। यहीं पर आकर सारा दृश्‍य स्‍पष्‍ट हो जाता है। ऐसे परिणाम देखकर धनोबल और मनोबल की महिमा का गुणगान करने की ज‍़रूरत नहीं पड़ती वो तो स्वयमेव बंद आँखों से भी मन के रास्‍ते मानस में उतर जाता है।

आज पूरा देश सेंसेक्‍स में गिरावट से जूझ रहा है और दिग्‍गज शेयरों पर हार के फूल चढ़ रहे हैं इतने भारी कि इनका सांस लेना भी दूभर हो रहा है। 500 या 1000 अंक सेंसेक्‍स गिरना कोई बड़ी या अप्रत्‍याशित घटना नहीं रह गई है। अप्रत्‍याश‍ित तो उस दिन लगने लगी है जिस दिन सेंसेक्‍स घूम फिर कर अपने पिछले स्‍तर के आसपास ही मँडराता रहता है। इसी के चलते 22 हज़ारी 16 हज़ारी होने को विवश है और जो अटकलें सुनाई पड़ रही हैं कि सेंसेक्‍स जल्‍दी ही 12 हज़ारी होगा। अगर ऐसा ही चलता रहा तो मुझे 2 हज़ारी होने में भी कोई शक नहीं है। निवेशक को चूना बड़े जतन से लगाया जाता है तो अब जो चूना लगाया जा रहा है वो सिर्फ़ निवेशक को ही नहीं, देश को भी लग रहा है और इस प्रक्रिया में जो मालदार हो रहे हैं उनके बारे में बतलाने की ज़रूरत मुझे नहीं लग रही है। आप यह भी सोच रहे होंगे कि जब मालूम ही नहीं होगा कि चूना कौन लगा रहा है तो ज़रूरत हो तो भी बतलाना संभव नहीं है। हमारी आपकी तो इसमें चूना लगवाने तक ही भागीदारी है और वो ज़िम्‍मेदारी हम पूरी शिद्दत से निबाह भी रहे हैं।

मुझे तो ऐसा कहना समीचीन जान पड़ता है कि क्रिकेट और शेयर बाज़ार का चोली दामन का साथ हो गया है। अब ये तू डाल-डाल और मैं पात-पात की धमक के साथ इस होली पर अपने अपने रंग जमा रहे हैं। वे फीके पड़ने लगें, चेहरे सबके दिखने लगें, मैं अपना चेहरा छिपाता हूँ,  नहीं तो कोई गुलाल के बहाने चेहरे पर पेंट न पोतने में कामयाब हो जाए और गाता फिरे इस होली पर - हम हुए कामयाब इस होली पर।

१७ मार्च २००८