चैन की नींद
—अर्बुदा ओहरी
सत्यानाश हो मशीनीकरण का,
औद्योगीकरण का, लाइट बल्ब का, जिनकी वजह से हमारी नींद
कोसों दूर भागती जा रही है। जितना हमारी रोज़मर्रा की
ज़िंदगी आसान हो रही है हमारी नींद में कटौती भी उसी दर से
हो रही है। काम का बोझ, ऑफ़िस में अपनी स्तर बनाए रखने के
लिए मेहनत और इन सभी से ज़्यादा हाय बस आज नींद ठीक से आ
जाय इस चिंता ने हमारी ज़िंदगी उलझा दी है। सही बात है
नींद बिना चैन कहाँ रे।
अमेरिका
में हुए एक सर्वे के अनुसार ३८ प्रतिशत वयस्क जितना सुकून से पाँच साल पहले
सो पाते थे अब नहीं सोते। यहाँ तक कि कुछ प्रतिशत लोग
सप्ताह में इक्का दुक्का रात ही ठीक से सो पाते हैं। यह
समस्या अमेरिका के नौजवानों की ही नहीं बल्कि हम सभी की
परेशानी बन चुकी है। अमेरिका में प्रति वर्ष ५६७,००० कार
एक्सीडेंट होते हैं जिनमें से ९८० जानलेवा होते हैं और
इसका कारण नींद में कमी माना गया है। दिन में हमारे शरीर
की चुस्ती स्फूर्ति इस पर निर्भर करती है कि हम रात में
कितनी देर और कैसे नींद लेते हैं। रात नींद ठीक से नहीं आ
पाती इसके कारण हमारे शरीर का तंत्रिका तंत्र ठीक से कार्य
नहीं कर पाता। इसका हमारी एकाग्रता पर तो असर होता ही है
साथ ही साथ शरीर भी थका-थका रहता है। हम ठीक से काम नहीं
कर पाते तो एक तरह का तनाव मन में रहता है। अब यों कह लें
कि तनाव की वजह से नींद नहीं आती या नींद की वजह से तनाव
होता है, बात तो एक ही है। नींद ठीक से नहीं आ पाना कोई
बीमारी नहीं है बल्कि यह एक समस्या कई बीमारियों की जड़
है। इसलिए स्वस्थ रहने के लिए इस समस्या से निजात पाना
बहुत ज़रूरी है। बहुत बार ऐसा होता है कि आपके पास ढेर
सारे काम होते हैं और आप नींद को प्राथमिकता नहीं दे पाते,
पर असल में नींद को नज़रंदाज़ करना बहुत महँगा भी पड़ जाता
है। यह एक अच्छी आदत नहीं है।
रात के समय जब हम सोते
हैं तब ना सिर्फ़ हमारा शरीर स्थिर होता है बल्कि हमारे
दिमाग़ को भी आराम मिलता है। दिन में हमारे शरीर की कोई
अंदरूनी चोट तथा तंत्रिका तंत्र की महत्वपूर्ण इकाई, जिसे
न्युरॉन कहा जाता है, की मरम्मत का कार्य भी तभी होता है
जब हम गहरी नींद में होते हैं। इसलिए हमारी भली प्रकार
नींद नहीं लेने से शरीर को नुकसान तो होता ही है साथ ही
साथ इसका विपरीत असर दिमाग़ पर भी पड़ता है। और अगर ऐसा कई
दिनों तक चलता रहा तो यह डिप्रेशन या विषाद का एक प्रमुख
कारण भी बन सकता है।
नींद अच्छे से आए इसके
लिए आप अपने साथ कुछ प्रयोग भी कर सकते हैं। रात के समय आप
अपने शरीर को सक्रिय ना बनाएँ। सोने से पहले जिम जाना, देर
रात तक टीवी देखना आपकी रात की नींद उड़ा सकता है। इसलिए
यदि आपकी ऐसी कोई आदत है तो उसमें बदलाव लाने के बारे में
ज़रूर सोचिए।
व्यायाम करने से शरीर में
रक्त का प्रवाह तेज़ हो जाता है और शरीर की माँसपेशियाँ भी
उत्तेजित हो जाती हैं। इसे सामान्य होने में क़रीब दो घंटे
का समय लग जाता है। आप ऐसा न सोचिए कि इसके कारण आपका शरीर
थक जाएगा और आपको बेहतर नींद आ जाएगी बल्कि आप उसके बाद
अपने आपको तरोताज़ा महसूस करने लगेंगे। और रात को नींद की
फिर हो जाएगी छुट्टी। इससे बचने के लिए आप व्यायाम करने के
लिए सुबह का समय निर्धारित कर सकते हैं।
रात को कभी भी गरिष्ठ
भोजन न करें। सोने से क़रीब २ घंटे पहले भोजन करना शरीर के
लिए अच्छा माना जाता है। काफी व चाय उत्तेजक माने जाते हैं
और इनका सेवन नींद को भगा सकता है। इसलिए रात को चाय, काफी
का सेवन यथासंभव ना करें। कुछ शोध के अनुसार यदि रात को
सोने से पहले कैल्शियम तथा मैग्नीशियम लिया जाए तो बेहतर
नींद आ सकती है। यह तो विदित है ही कि कैल्शियम व
मैग्नीशियम मांसपेशियों को शिथिल करते हैं। हाँ, रात को
सोने से पहले गरम दूध पीने की आदत डालना भी अपने साथ एक
अच्छा प्रयोग हो सकता है। दूध और केले में सिरेटोनिन होता
है जो कि हमारे तंत्रिका तंत्र को शांत करता है।
यदि आपको कोई मानसिक
परेशानी है, कोई चिंता आपको सोने नहीं दे रही तो केला खाना
या गरम दूध पीना आपके लिए संजीवनी बूटी की तरह ही होगा।
बेवजह नींद की गोलियों पर निर्भर न हों। ऐसी गोलियाँ बिना
डाक्टर की सलाह के कभी भी ना लें। अगर गोलियाँ लेना किसी
इलाज का हिस्सा है तो ठीक है अन्यथा इनसे होने वाले साइड
इफेक्ट आपको नुकसान पहुँचा सकते हैं। इसलिए नींद की
परेशानी से छुटकारा पाने के लिए ऐसी दवाओं को अपनी आदत में
शुमार न करें।
लवेंडर व
केमोमाइल की गंध से भी शरीर की थकान दूर होती है और नींद
अच्छी आती है इसलिए एरोमा थेरेपी को मानने वाले इनके तेल,
क्रीम को उपयोग करने की सलाह देते हैं। हाँ, रात को आप
लवेंडर की गंध वाले साबुन से नहा कर भी अपनी थकान दूर कर
सकते हैं। क्या आपको पता है हम रात को नींद में क़रीब ४० से
६० बार
हिलते हैं तथा करवट बदलते हैं। और यही नहीं अधिकतर तो ऐसा
तब होता है जब हमारे साथ सोने वाला करवट लेता है या हिलता
है, इसलिए अच्छे गद्दे का इस्तेमाल नींद में आने वाली ऐसी
रुकावट को कम करता है।
जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है,
नींद स्वतः ही कम होने लगती है। ऐसा नहीं है कि बुजुर्गों
को कम नींद की आवश्यकता होती है बल्कि असल बात तो यह होती
है कि उनको नींद ज़्यादा आ ही नहीं पाती। जब बच्चा पैदा
होता है तब कुछ दिनों तक बाईस से तेईस घंटे तक सोता रहता
है। बच्चे के विकास के लिए उसे ज़्यादा नींद लेना आवश्यक
होता है। धीरे-धीरे नींद का यह समय कम होने लगता है। क़रीब
तीन साल तक के बच्चे बारह घंटे तक सोते हैं।
वयस्कों को दिन भर में
कितनी देर सोना चाहिए, इस बात पर कई सारी भ्रांति है।
हमारी उम्र का एक तिहाई भाग सोते हुए बीतता है। नेशनल
इंस्टीट्यूट के अनुसार यदि स्वस्थ वयस्क को अपनी मर्ज़ी के
मुताबिक़ सोने दिया जाए तो वह क़रीब आठ से साढ़े आठ घंटे
तक सोता है। वैसे यह शरीर की ज़रूरत के अनुसार व्यक्ति
व्यक्ति पर निर्भर करता है। कई लोग रात छः घंटे सोकर भी
दिन भर उसी ऊर्जा के साथ काम कर सकते हैं जितना कि कोई आठ
घंटे सोकर करता है। इसलिए बेहतर तो यही होता है कि आप अपने
शरीर की नींद की आवश्यकता को जान कर उसी हिसाब से नींद
लें।
ज़्यादा सोना भी हमारी
याददाश्त पर विपरीत असर डाल सकता है। कई बार हम यह सोचते
हैं कि सप्ताह के ५ या ६ दिन हम भागदौड़ में लगे रहते हैं
और नींद पूरी नहीं कर पाते तो हमें छुट्टी के दिन आराम से
उठना चाहिए, परंतु यह भी एक प्रकार की भ्रांति ही माननी
चाहिए क्यों कि विशेषज्ञों की मानें तो ऐसा करना ठीक है
परंतु यह कतई स्वस्थ नहीं माना जा सकता। ऐसा करने से शरीर
और दिमाग़ के बीच तालमेल पर बुरा असर पड़ता है। नेशनल
सेंटर आन "स्लीप डिसआर्डर एट
नेशनल हार्ट, ब्लड एन्ड लंग्स इंस्टिट्यूट"
के डायरेक्टर डाक्टर माइकल ट्वइरी के अनुसार यदि हम बहुत
दिनों तक सात घंटे से कम नींद लेते हैं तो हमें मधुमेह,
मोटापा तथा ह्रदय की बीमारी का ख़तरा बढ़ सकता है। सोते
समय यदि खर्राटों की आवाज़ तेज होती है तो यह भी उच्च
रक्तचाप तथा ह्रदय की बीमारी का एक लक्षण माना जाता है।
सुबह आँख खुलते ही दिन का
स्वागत करना भी अपने आप में एक सकारात्मक शुरुआत होती है।
इसलिए रात को कितनी देर सोये इसे गिनने की बजाय आप दिन का
स्वागत कीजिए और देखिए कि सिर्फ़ एक सकारात्मक विचार ही
आपको कितनी ऊर्जा से भर देता है। कोई भी व्यक्ति यदि दिन
में पाँच से सात घंटे की आदत बहुत आसानी से डाल सकता है।
यदि आप दिन में कुल आठ घंटे बिस्तर पर सोते हुए बिताते हैं
तो यकीन मानिए कि आप गहरी नींद का मज़ा नहीं ले पा रहे।
दिन में होने वाली हल्की थकान या सुस्ती का दोष आप अपनी
नींद को मत दीजिए क्यों कि इस सुस्ती के पीछे का कारण आपकी
बोरियत होता है।
इस वर्ष के शुरू में नींद
को लेकर हुए एक अध्ययन के अनुसार कार्यशील व्यक्ति दिन में
भोजन के बाद यदि 1० मिनट या फिर २ घंटे तक सोते हैं उनमें
हार्ट अटैक का खतरा ६४ प्रतिशत तक कम हो जाता है। असल में
कई वैज्ञानिक तो यह मानते हैं कि हमारा शरीर दिन में दो
बार नींद लेने के हिसाब से ही बनाया गया है, जिसमें एक बार
तो हम रात को सोते ही हैं और एक बार कुछ देर के लिए हमें
दिन में भोजन के बाद भी सोना चाहिए, यह सेहत के लिए अच्छा
है।
प्रकृति का
यह सोने उठने का नियम तो तभी से चला आ रहा है जब से धरती,
आकाश बने हैं। दिन के बाद रात आनी ही होती है। हमारी जैविक
घड़ी भी उसी के अनुसार काम करती है। शरीर के लिए रात को
आराम करना बहुत ज़रूरी होता है। इसलिए इस जैविक घड़ी में
कोई खलल मत डालिए, सभी काम छोड़ कर रात को आराम से सो
जाइए। |