|  | इस शहर में आए हुए मुझे यही कोई 
                    चार-पाँच महीने हुए थे। अभी इस शहर के रास्ते मेरे लिए अपरिचित 
                    ही थे। सुबह उठ कर घूमने जाने के दोहरे फ़ायदे को सोचते हुए 
                    मुझे लगा कि एक रास्ते पर बार-बार न जा कर अक्सर नए-नए रास्ते 
                    देख कर जाने में अच्छा रहेगा, इससे आसपास की जगहों से और 
                    रास्तों से मेरा परिचय हो जाएगा। इस तरह आते जाते कई लोगों से 
                    मुलाक़ात होती। जिनसे कभी केवल मुस्कानों का आदान-प्रदान ही 
                    होता, कभी मॉर्निंग कभी सीधी सादी हैलो हो जाती किंतु नौबत कभी 
                    बातचीत करने तक नहीं आती। कई हफ़्ते बीत चुके थे कि 
                    अचानक एक सुबह घर से निकलते ही कुत्ते के साथ घूमने वाली एक 
                    महिला ने हैलो कहते ही मुझसे पूछा, ''क्या इस शहर में नई आई 
                    हो।'' मैंने मुस्कराते हुए कहा, ''जी हाँ, अभी यही कोई चार 
                    महीने हुए होंगे।। रोज़ घूमने जाने के बहाने ज़रा शहर के गली 
                    कूचों से पहचान हो जाती है, और फिर यह मौसम भी तो बहुत दिन 
                    नहीं रहेगा, इसीलिए तो रोज़ निकलती हूँ, मेरा नाम अंजू है। इधर 
                    ही मेरा घर है नंबर आठ आप आइए न।'' ''हाँ मैं ज़रूर आऊँगी, मेरा 
                    नाम शर्ली है, मेरा घर यहाँ से चार मील उधर गाँव में है, आप भी 
                    आइए।'' ऐसी ही औपचारिक बातें करते हुए हम फिर अपनी-अपनी दिशा 
                    में बढ़ गए। 
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