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हास्य व्यंग्य

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बैटरी चार्ज करने को दिल उधार
अविनाश वाचस्पति
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वैज्ञानिकों की मानें तो अब दिल सिर्फ़ दिल ही नहीं, बिजली हाउस के रूप में भी उपयोगी होने वाला है। ये बिजली बनाएगा और करंट भी मारेगा। इस पर मेरे एक मित्र की प्रतिक्रिया थी कि इस में नई बात क्या है, दिल तो खून को पंप करके जीवन को पहले से ही चार्ज कर रहा है। खून में करंट की शक्ति जीवन में जीने की ताक़त का संचार कर रही है। प्रेमी प्रेमिका दिल की ताक़त के बलबूते ज़माने भर से लड़ जाते हैं। इसके कारनामों ने न जाने कितने गीगा बाईट का स्पेस कब्ज़ाया हुआ है। दिल तो आख़िर दिल है ना?

आज सबसे अधिक ज़रूरत मोबाइल चार्जर की होती है और दिल उसी को चार्ज करेगा। अब कार, ट्रेन, जहाज़ में मोबाइल चार्जर लेकर घूमने के दिल लद गए। लदने वाले हैं वे भी दिन जब चार्जर माँगते मोबाइल फ़ोन धारक सर्वत्र नज़र आया करते हैं। आपके पास चार्जर है, बैटरी ख़त्म हो गई है? अब दिल की धड़कन मोबाइल बैटरी को चार्ज करेगी और दिल के मरीज़ों की पेसमेकर की बैटरी को भी। संभावनाएँ अभी और भी हैं यानी बैटरी कोई भी हो चार्ज दिल से ही हुआ करेगी।

दिल जो बेकाबू हो जाता था अब बैटरियों को बिजली देकर काबू में रखेगा पर खुद बेकाबू ही रहेगा। अब तो यह सोचना होगा कि किस समय दिल से कौन-सी बैटरी चार्ज करना मुफ़ीद रहेगा। इसका टाइम टेबल भी बनाना पड़ सकता है।

जिनके मित्रों में खूबसूरत और जवान हसीनाएँ होंगी जब उनके दिल से बैटरी चार्ज की जाएगी तो वो ज़्यादा अवधि तक चलेगी और बुढ़ापे के दिल से पूरा चार्ज बैटरी एक घंटी बजने पर ही ख़त्म हो जाया करेगी, बात करने का भी मौका नहीं देगी। मित्र को कौन समझाता कि हसीनाएँ तो खूबसूरत और जवान ही होती हैं।

मित्र पूरी चार्ज बैटरी की तरह कहे जा रहे थे ज़िंदगी ज़िंदा दिली का नाम है, मुरदा दिल क्या ख़ाक जिया करते हैं। मुरदा दिलों से तो बैटरी चार्जिंग में समय भी ज़्यादा लगता है। वो चार्जिंग होना दिखाती तो रहती हैं परंतु सिर्फ़ दिखाती ही हैं, बैटरी में बिजली भरती नहीं हैं। जाँच करने पर ज़रूर दिल में दोष का पता चल सकेगा।

दिल की धड़कनों के कमाल की फ़ेहरिस्त अब और बढ़ने वाली है। कोई अचंभा नहीं कि किसी व्यंग्य के विचार ने दिल को झिंझोड़ा और दिल हो गया चालू। व्यंग्य तैयार हुआ और मेल भी चली गई। सब आटोमैटिक। अख़बार पढ़ते गए, टी.वी. देखते रहे, समाज की समस्याओं पर चिंतन करते रहे और उधर दिल अपने कार्य में जुटा रहा। वो रचनाओं पर रचनाएँ तैयार कर भेजता रहा। दिल की सेटिंग में अवश्य ही कुछ फेरबदल करके सेव करने होंगे। फ़ार्मेट, फाँट, शब्द सीमा, ले आउट, लैंग्वेज, मेल मर्ज, फीमेल मर्ज वगैरह-वगैरह।

दिल से जब करंट का प्रॉडक्शन शुरू हो जाएगा। दिल जब बिजली का प्रॉडक्शन हाउस बनकर उभरेगा तब युवतियों को छेड़खानी से बचने के लिए जूड़ो कराटे नहीं सीखना पड़ेगा, यह सब पुराने ज़माने की बातें हो जाएँगी और किस्से कहानियों में ही मिला करेंगी। एक दो दशक बाद ही छेड़खानी करते ही बिजली के झटके लगने के किस्से आम हो जाएँगे। असामाजिक छेड़क तत्व पहले वोल्टेज मीटर से वोल्ट चैक करेंगे और देखेंगे कि अगर उनकी झेलक पावर स्ट्रांग होगी तभी छेड़ेंगे नहीं तो झलक से ही गुज़ारा चलाएँगे। जब दिल धड़क तो रहा होगा परंतु करंट नहीं बना रहा होगा, वही मौका छेड़ने के लिए अत्युत्तम रहेगा।

आजकल जैसे शाम-रात होते ही शराबी नशे में धुत सड़कों और नालियों के ईद-गिर्द गिरे पड़े दिखाई देते हैं। वैसे ही हसीनाओं को छेड़ने पर करंट खाए हुए लोग इधर-उधर लुढ़के दिखाई देंगे। फिर पुलिस को जाँच में पहले यह पता लगाना होगा कि यह सुरा का सताया हुआ है या छेड़ने पर करंट खाया हुआ है। आईपीसी की धाराओं में इज़ाफ़ा करके इनके लिए अलग से दफ़ाओं की व्यवस्था करनी होगी और कोई अचंभा नहीं पुलिस यह माँग कर बैठे कि दिल पर डिजिटल मीटर लगवाना अनिवार्य होना चाहिए।

दो-पाँच साल बाद का सीन देखिए हाईटैक मजनूँ सर्वत्र यही गाना गुनगुनाते नज़र आ रहे हैं 'दिल विल प्यार व्यार मैं क्या जानूँ रे, बैटरी चार्ज करने के लिए दिल उधार माँगू रे।'

९ सितंबर २००७

 
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