अनुभूति

24. 6. 2005

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पिछले सप्ताह

सामयिकी में
कबीर जयंती के अवसर पर
डा प्रेम जनमेजय का नाटक
देखौ कर्म कबीर का

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रचना प्रसंग में
आर पी शर्मा 'महर्षि' के धारावाहिक
'ग़ज़ल लिखते समय' का नवां भाग
ग़ज़ल के लिए हिंदी छंद–2

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ललित निबंध में
पूर्णिमा वर्मन का आलेख
ग्रीष्म के शीतल मनोरंजन

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आज सिरहाने
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' का कविता संग्रह 
अंजुरी भर आसीस

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कहानियों में
यू के से उषा राजे सक्सेना की कहानी
शर्ली सिंपसन शुतुर्मुर्ग है

चेरी ब्लॉसम जवां है। डलियों पर हज़ारों–लाखों लाल–गुलाबी फूल गजरे की तरह गुथे हुए हैं। नन्हीं–नन्हीं गुलाबी नर्म पंखुड़ियां निःशब्द झर्रझर्र झरती गुलाबी तितलियों सी
उसके बालों, पलकों, होंठों, कंधों, वक्षस्थल को संवेदनशील स्पर्श देकर उमगाती हैं। वह पुलक पुलक उठती है और सहज ही प्रकृति के सौदर्य के साथ एकरस हो जाती है।
हाइडपार्क के बीचोबीच बहती सरपेंटाइन लेक सर्पीली गति से बहती चांदी सी चमक रही है। वासंती हवा झील के नीले पानी के ऊपर से बहती हुई उसके यौवन को सहलाती है। लंदन की सुहानी ग्रीष्म उसके तन–बदन में फुलझरियों का सा स्फुरण करती है।
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इस सप्ताह

कहानियों में
भारत से प्रत्यक्षा की कहानी
मुक्ति

भीमसेन जोशी की आवाज़ अंदर गूंज गई। "सावन की बूंदनिया, बरसत घनघोर . . ." कैरी ने उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, "उदास हो क्या?" विभु चुप रहा। सारी खुशियां तो मिली थी पर तब अंदर से दुख का सागर क्यों उमड़ा आता था। अवसाद और अपराध बोध की एक रेखा हर सुख के पीछे से झांकती नज़र आ जाती। आंसुओ में डूबा एक मासूम चेहरा क्यों बार–बार उसका पीछा करता था। जो बीत गया उसे लेकर अपना वर्तमान विभु क्यों खराब करें। हर ओर से मन को समझाता है पर मुक्ति नहीं मिलती है। कैरी सब समझती है। पर इस अपराध के बोझ से विभु को कैसे मुक्त कराए। 

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हास्य व्यंग्य में
अशोक स्वतंत्र का आलेख
हे निंदनीय व्यक्तित्व

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रचना प्रसंग में
आर पी शर्मा 'महर्षि' के धारावाहिक 'ग़ज़ल लिखते समय' का दसवां भाग
ग़जल के उपयुक्त उर्दू बहरें व समकक्ष हिंदी छंद–1

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प्रौद्योगिकी में
रविशंकर श्रीवास्तव के सहयोग से
लिनक्स आया हिंदी में

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प्रकृति और पर्यावरण में
आशीष गर्ग द्वारा नवीनतम जानकारी
वर्षा के पानी का संरक्षण

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सप्ताह का विचार
फू
ल चुन कर एकत्र करने के लिए मत ठहरो। आगे बढ़े चलो, तुम्हारे पथ में फूल निरंतर खिलते रहेंगे।
—रवींद्रनाथ ठाकुर

 

अनुभूति में

रामानुज त्रिपाठी के गीत, हेमंत रिछारिया, आशुतोष शर्मा व नवनीत बक्शी का प्रवेश और पाठकनामा में नए हस्ताक्षर

–° पिछले अंकों से °–

कहानियों में

बदल जाती है ज़िन्दग़ी–अर्चना पेन्यूली
बस कब चलेगी–संजय विद्रोही
लॉटरी–राकेश त्यागी
संदर्भहीन–सुदर्शन प्रियदर्शिनी
रोशनी का टुकड़ा–अभिनव शुक्ल
ओ रे चिरूंगन मेरे–मीना काकोडकर 

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हास्य व्यंग्य में

मानवाधिकार–डा नरेन्द्र कोहली
सांस्कृतिक विरासत–अगस्त्य कोहली

मुक्त मुक्त का दौर–डा नवीन चंद्र लोहनी
कौन किसका बाप–महेशचंद्र द्विवेदी
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मंच मचान में
अशोक चक्रधर के शब्दों में 
पटाख–तखल्लुस यानि
उपनामोपनाम
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रचना प्रसंग में
आर पी शर्मा 'महर्षि' के धारावाहिक
'ग़ज़ल लिखते समय' का आठवां भाग
ग़ज़ल के लिए हिंदी छंद–1
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बड़ी सड़क की तेज़ गली में
अतुल अरोरा के साथ
पश्चिम की दीवानी दुनियाः डलास के किस्से
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रसोईघर में
पुलावों की सूची में नया व्यंजन
गाजर का पुलाव
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विज्ञान वार्ता में
आशीष गर्ग का लेखः कैसे काम करता है
स्मोक डिटेक्टर
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फुलवारी में
आविष्कारों की नयी कहानियां
और शिल्पकोना में पानी पीने के लिए
काग़ज़ का गिलास

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेन  परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन 
 सहयोग : दीपिका जोशी
फ़ौंट सहयोग :प्रबुद्ध कालिया

 

 

 
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