| 
                      चाहे 
						वह मिर्जा ग़ालिब का दीवान हो अथवा दुष्यंत कुमार का ग़ज़ल 
						संग्रह 'साए में धूप' या किसी अन्य स्थापित ग़ज़लकार की 
						ग़ज़लों का संग्रह, ग़ज़लों में प्रयुक्त छंदों तथा बहरों 
						के विश्लेषण से ज्ञात होता है कि उनकी संख्या बहुत ही 
						सीमित है। इसका मुख्य कारण यह है कि हिंदी उर्दू छंदों का 
						प्रचुर भंडार होते हुए भी उसमें अधिकतर ऐसे छंद हैं जो 
						संगीतात्मक न होने के कारण ग़ज़ल जैसी गेय कविता के लिए 
						उपयुक्त नहीं हैं। इस संबंध में डा राम रतन भटनागर भी कहते 
						हैं—"गेयता काव्य का एक अतिरिक्त गुण है। गेयता का आधार नाद 
						माधुर्य है जो अनुकूल शब्द योजना के द्वारा माधुर्यमयी 
						चितवृति को जन्म देता है। प्रकृति की योजना ही कुछ ऐसी है 
						कि उद्दीप्त भावना छंद का रूप धारण कर लेती है। काव्य छंद 
						में ही माधुर्य और गति को प्राप्त होता है। अनुकूल छंद 
						पाकर ही कवि की भवना अत्यंत आकर्षणमयी बन जाती है।" (हिंदी 
						साहित्यकोश, भाग–१, कलापक्ष)
 
                     	प्रस्तुत छंदों का चयन इसी सिद्धांत पर आधारित है। 
                      ग़ज़ल हो या कोई अन्य छंदोबद्ध कविता उसकी अपनी एक विशिष्ट 
						लय होती है। अतः उसे गद्य के समान नहीं बल्कि उस विशेष लय 
						विशेष के साथ पढ़ना होता है। लयानुसार पढ़ने पर विभिन्न 
						छंद योजनाओं में जहाँ मात्राएँ मूल रूप से लघु होती हैं, 
						यदि उनके किसी स्थान पर गुरू वर्ण आता है तो वह मौखिक रूप 
						से लघु उच्चारित होता है। हिंदी छंदानुशासन में भी इस नियम 
						को मान्यता प्राप्त है, जैसा कि निम्नलिखित उद्धरणों से 
						विदित है—                       
                        "ह्रस्व रूप में 
						उच्चारित गुरू वर्ण भी लघु होते हैं।"(हिंदी साहित्य कोश 
						भाग–१)
						
                       	गुरू का उच्चारण लघु के समान हो तो वह लघु मना जाता है, 
						ऐसा हिंदी साहित्य में मान्य है। बहुधा गुरू को लघु और लघु 
						को कभी गुरू भी पढ़ना पड़ता है, यद्यपि लिखने में ऐसा नहीं 
						होता। इसलिए वर्णो के उच्चारण के हिसाब से विचार करना 
						चाहिए।" (डा रमाशंकर शुक्ल 'रसाल'–रसछंदालंकार – छंद 
						निरूपण, पृष्ठ १४१ तथा मात्रिक छंद पृष्ठ १५३)                           टिप्पणीः : साधारणतः हिंदी–उर्दू शब्दों की अंतिम दीर्घ मात्राएँ (कुछ 
						अपवादों को छोड़कर) इस नियम के अनुसार, लघु उच्चारित होती 
						हैं। इस नियम को यहाँ लयात्मक स्वरापात कहा गया है।
 
						ग़ज़लों के लिए उपयुक्त हिंदी उर्दू छंद इस प्रकार हैं— 
                        (क) बहरे–मुतकारिब : 
						प्रति पंक्ति 'फऊलुन' (।ऽऽ) चार बार(वर्ण वृत)(ख) समकक्ष संस्कृत वर्ण वृत 'भुजंगप्रयात' : प्रति चरण 
						यगण (।ऽऽ) चार बार अर्थात ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ ।ऽऽ
 मात्रिक रूपः प्रति चरण बीस मात्राएँ। पहली छठी ग्यारहवीं 
						तथा सोलहवीं मात्राएँ मूलतः लघु।
 
 
                            
                            
                              
                                | मुतकारिब /भुजंगप्रयात का उदाहरण | 
								मधुकर गौड़ की रचना |  
                                | न फूलों में दम है न कलियों में रौनक |  
                                | । ऽऽ । ।। ऽ । ।।ऽ 
								। ऽ।। = २० मात्राएँ |  
                                | चमन सारा धूमिल, जिधर देखता हूं |  
                                | ।।। 
								ऽ। ऽ।। ।।। ऽ।ऽ ऽ = २० मात्राएँ |  
                                | उर्दू तक्ती (विभाजन) |  
                                | न 
								फूलों | में 
								दम है |  |  
                                | न 
								कलियों | में 
								रौनक |  |  
                                | चमन 
								सा | रा 
								धूमिल |  |  
                                | जिधर 
								दे | खता 
								हूं |  |  
                                | । ऽऽ | । ऽऽ |  |  टिप्पणीःपहली पंक्ति में दोनों ही स्थानों पर गुरू वर्ण ' में ' 
						तथा दूसरी पंक्ति में 'रा' क्रमशः छठी तथा सोलहवीं लघु 
						मात्राओं के स्थान पर आकर लघु उच्चारित हुए। इसके अतिरिक्त 
						संस्कृत का एक वर्ण वृत सोमराजी है जिसके प्रत्येक चरण में 
						यगण (।ऽऽ) दो बार आता है। उर्दू में (।ऽऽ) अलग अलग वर्ण 
						वृतों में प्रति पंक्ति दो बार, तीन बार, चार बार, पाँच 
						बार, छे बार, सात और आठ बार तक आता है।
 
                        (क) बहरे मुतदारिक : 
						प्रति पंक्ति फाइलुन ( ऽ।ऽ) चार बार(ख) समकक्ष संस्कृत वर्ण वृत स्त्रग्विणि : प्रति 
						चरण रगण ( ऽ।ऽ) चार बार अर्थात ऽ।ऽ ऽ।ऽ ऽ।ऽ ऽ।ऽ
 मात्रिक रूपः प्रति चरण बीस मात्राएँ। तीसरी आठवी 
						तेरहवीं तथा अठ्ठारहवीं मात्राएँ मूलतः लघु।
 
 
                            
                            
                              
                                | मुतदारिक/स्त्रग्विणि का उदाहरण | 
								सूर्यभानु गुप्त की रचना |  
                                | सच तो मुरझा गए, राज दरबार में |  
                                | ।। । ।।ऽ । ऽ, ऽ । ।।ऽ। ऽ = २० मात्राएँ |  
                                | कोई चेहरा खिला, तो खिला झूठ का |  
                                | ऽ। ।।ऽ । ऽ, ऽ । ऽ ऽ। ऽ = २० मात्राएँ |  
                                | उर्दू तक्ती (विभाजन) |  
                                | सच 
								तु मुर | झा 
								गए |  |  
                                | राज 
								दर | बार 
								में |  |  
                                | कोई 
								चेह | रा 
								खिला |  |  
                                | तो 
								खिला | झूठ 
								का |  |  
                                | ऽ। ऽ | ऽ। ऽ |  |  टिप्पणीःपहली पंक्ति में गुरू वर्ण ' तो ' तीसरी मात्रा के स्थान पर 
						तथा दूसरी पंक्ति में कोई का गुरू वर्ण ' ई ' भी तीसरी लघु 
						मात्रा के स्थान पर आकर लघु पढ़े गए। चेहरा का सही उच्चारण 
						चहरा है अतः दूसरी पंक्ति में गुरू वर्ण ' चे ' लघु पढ़ा 
						गया। रगण ( ऽ।ऽ) संस्कृत वर्ण वृत में प्रति चरण तीन बार 
						भी आता है। इसके मात्रिक रूप में प्रति चरण १५ मात्राएँ 
						होती हैं। तीसरी आठवीं तेरहवीं मात्राएँ मूलतः लघु होती 
						हैं।
 
                        
                        
                          
                            | उदाहरण | डा 
							उर्मिलेश की रचना |  
                            | उड़ना चाहा था आकाश में |  
                            | ।।। ऽऽ । ऽऽ। ऽ = १५ मात्राएँ |  
                            | हाथ में टूटे पर रह गए |  
                            | ऽ। ऽ ऽ। ।। ।। । ऽ = १५ मात्राएँ |  
                            | उर्दू तक्ती (विभाजन) |  
                            | उड़ना चा | हा था आ | काश में |  
                            | हाथ में | टूटे पर | रह गए |  
                            | ऽ । ऽ | ऽ । ऽ | ऽ । ऽ |  टिप्पणीः  पहली पंक्ति में तीसरी तथा आठवीं लघु मात्राओं के स्थान पर 
						आकर गुरू वर्ण क्रमशः 'ना' तथा 'था' और दूसरी पंक्ति में 
						लघु मात्रा के स्थान पर आकर गुरू वर्ण 'टे' लघु उच्चारित 
						हुआ है।
 
                      इसके अतिरिक्त संस्कृत वर्ण वृत 'गंगोदक' में रगण ( ऽ।ऽ) 
						प्रति चरण चार आठ बार तथा 'बहोमा' वर्ण वृत में दो बार आता 
						है। उर्दू में ( ऽ।ऽ) अलग अलग वर्ण वृतों में दो से आठ बार 
						तक आता है।
 
                        
						(क) बहरे हज़जः प्रति 
						पंक्ति मफ़ाइलुन (।ऽऽऽ) चार बार(ख) समकक्ष हिंदी मात्रिक छंद 'विधाता' : प्रति चरण 
						१४–१४ के विश्राम से २८ मात्राएँ। पहली आठवीं पंद्रहवी और 
						बाइसवीं मात्राएँ मूलतःलघु।
 
                        
                        
                          
                            | हज़ज/विधाता का उदाहरण | 
							दुष्यंत कुमार की रचना |  
                            | तुम्हारे शहर में ये शोर, सुन सुन कर तो लगता है |  
                            | ।ऽऽ ।।। ऽ ऽ ऽ।,।। ।। ।। । ।।ऽ ऽ १५ – १३ =२८ मात्राएँ |  
                            | कि इंसानों के जंगल में, कोई हाँका हुआ होगा |  
                            | । ऽऽऽ । ऽ।। ऽ, । ऽ ऽऽ ।ऽ ऽऽ = १५ – १३ =२८ मात्राएँ |  
                            | उर्दू तक्ती (विभाजन) |  
                            | तुम्हारे 
							शह | र में 
							ये शो |  |  
                            | र, सुन 
							सुन कर | तो लगता 
							है |  |  
                            | कि 
							इंसानों | के जंगल 
							में |  |  
                            | कोई 
							हाँका | हुआ 
							होगा |  |  
                            | ।ऽ ऽऽ | ।ऽ ऽऽ |  |  टिप्पणीःपहली पंक्ति में गरू वर्ण 'तो' बाइसवीं लघुमात्रा के स्थान 
						पर तथा दूसरी पंक्ति में गुरू वर्ण 'के' आठवीं लघुमात्रा 
						के स्थान पर और 'कोई' का गुरू वर्ण 'को' पंद्रहवीं 
						लघुमात्रा के स्थान पर आने से लघु उच्चारित हुए।
 पहली पंक्ति में १५–१३ पर 
						यति भंग दोष है। परंतु नए पुराने स्थापित कवियों ने भी इस 
						दोष को गंभीरता से नहीं लिया है। उर्दू में भी ऐसा ही है, 
						जहाँ इसे शिकस्ते नारवा कहा जाता है। यह प्रख्यात शायर स्व 
						हसरत मोहानी द्वारा इस दोष का उर्दू रूपांतर मात्र है। .  
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