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हिंदुस्तानी माँ-बाप अपने बच्चों को डाँटने-फटकारने, उनका झोंटा खींचने, चपतियाने अथवा जमकर धुनाई करने, को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। मेरी माँ मुझसे कहा करती थीं कि मेरा तो सिद्धांत है कि बच्चों को खिलाओ सोने का निवाला, मगर देखो शेर की निगाह से। वास्तविकता यह थी कि मेरी माँ मुझे सोने का निवाला खिलाती थीं और मेरे पिता जी मुझे शेर की निगाह से देखते थे। कई बार अपने पिता जी की शेर की निगाह का शिकार होने की मुझे अभी तक याद है- एक बार तो जब वह क्रोधित होकर छड़ी लेकर मेरी ओर दौड़े थे तो मैंने बचने के लिए पलंग के चारों ओर चक्कर लगाना प्रारंभ कर दिया था और उन्होंने मेरा पीछा करना। इस बीच अगर मेरी माँ ने बीच में पड़कर मुझे बचाया न होता तो उन्होंने शेर की भाँति मुझे लहूलुहान ही कर दिया होता। फिर जब मैं प्रायमरी स्कूल में भर्ती कराया गया, तो वहाँ के अध्यापक की न केवल निगाह शेर वाली थी वरन उनकी मूँछें भी शेर वालीं थीं। इसके अतिरिक्त वह अपने हाथ में स्थाई रूप से इंची पैमाना नामक शस्त्र धारण किया करते थे। यदि किसी दिन इस शस्त्र के उपयोग करने का उचित अवसर प्राप्त होने में देरी होने लगे, तो वह इसे दो-चार बार अपनी मेज़ पर ठोंक कर हमारे दिलों में दहशत पैदा करते रहते थे।

मिडिल स्कूल तक पहुँचते-पहुँचते मैंने सोचा था कि संभवत: वहाँ के अध्यापक को पैमाना धारण करने का ऐसा जुनूनी शौक न हो, और मेरा अनुमान सही भी निकला क्योंकि वहाँ के मास्टर साहब हाथ में इंची पैमाना नहीं रखते थे परंतु उनके हृष्ट-पुष्ट हाथों में किसी न किसी बहाने किसी न किसी छात्र को झन्नाटेदार तमाचा रसीद करने के लिए हर वक्त खुजली पड़ती रहती थी। मेरी छठे दर्जे की परीक्षा चल रही थी और कृषि विज्ञान के प्रश्न पत्र में एक अटपटे शब्द को देखकर मैं कमरे में उपस्थित अध्यापक से उसका अभिप्राय पूछने लगा कि तब तक वही मास्टर साहब उस कमरे में प्रवेश कर गए। उन्होंने मुझसे अथवा उस अध्यापक से कुछ भी नहीं पूछा परंतु अपने बलशाली हाथ से मेरे दुर्बल गाल पर ऐसा भरपूर तमाचा जड़ दिया कि मैंने बिना किसी रोक टोक के वहीं खड़े अपना मूत्राशय पूरा खाली कर दिया था। यद्यपि उन मास्टर साहब की गरिमापूर्ण उपस्थिति में मेरी हास्यास्पद स्थिति पर खुलकर हँसने का साहस तो कोई न कर सका परंतु मुझे ऐसी चिपकू ग्लानि हुई थी कि आज तक चिपकी हुई है।

सुना है कि अब ज़माना बदल गया है और आजकल गाँवों के स्कूलों में अध्यापकगण छात्रों की धुनाई करने से कतराते हैं, क्योंकि ऐसा करने पर प्राय: छात्रों के माँ-बाप आकर अध्यापक महोदय को गरिया अथवा लठिया देते हैं; नहीं तो छात्रगण स्वयं या तो मास्टर साहब की कुर्सी की टाँग तोड़कर उसे चुपचाप ऐसा सटा देते हैं कि उस पर बैठते ही मास्टर साहब चारों खाने चित्त हो जाते हैं, अथवा उसमें पटाखे बाँधकर ऐसा विस्फोट करते हैं कि मास्टर बेचारे की खुद हवा बेरंग हो जाती हैं। पहाड़ी क्षेत्र में छात्रगण अभी इतने निडर नहीं हुए हैं पर वे भी यदा-कदा कुर्सी में बिच्छू घास लगा देते हैं, जिसके ज़हर से मुक्ति पाने के लिए मास्टर साहब को घंटों गोबर का लेप लगाकर हाय-हाय करते रहना पड़ता है।

पर ज़माने के बदलने की असलियत तो अमरीका में देखने को मिलती है, जहाँ माँ-बाप अपने जायों से ऐसे ख़ौफ़ खाते हैं जैसे मैं अपने बाप से खाता था। अमेरीकन कानून के अनुसार बच्चों की धौल धप्पड़ करना एक गंभीर अपराध है जिसके अंतर्गत ऐसा करने वालों को न केवल जेल के अंदर कर दिया जाता है वरन प्राय: माँ-बाप अथवा केवल माँ या केवल बाप (क्योंकि वहाँ अनेकों माँ-बाप के अविवाहित होने के कारण अथवा विवाहोपरांत संबंध-विच्छेद के कारण अथवा सिंगिल पेरेंट प्रथा अपनाने के कारण अनेक बच्चे केवल माँ अथवा केवल बाप द्वारा पाले जाते हैं) को बच्चे को पालने के अयोग्य मानकर उनके बच्चे को किसी चाइल्ड होम में रख दिया जाता है। स्कूलों में अध्यापिकाएँ बच्चों को उनके अधिकारों का ज्ञान कराते हुए यह सिखातीं हैं कि यदि तुम्हारे माँ-बाप तुम्हें किसी तरह सताएँ, तो तुम नाइन-वन-वन - जो इमरजेंसी का टेलीफ़ोन नंबर है - पर फ़ोन कर दो जिससे पाँच-छ: मिनट में पुलिस आकर तुम्हारे माँ-बाप से तुम्हारी रक्षा करेगी और तुम्हारे माँ-बाप को सीखचों के पीछे कर देगी।

ऐसे आलतू-फालतू कानूनों का पालन करने में अमेरीकन पुलिस का कोई सानी नहीं है। अभी हाल में एक गोरी युवती अपनी चार साल की बच्ची को लेकर एक डिपार्टमेंटल स्टोर में सामान ख़रीदने गई थी। वहाँ उस बच्ची ने ऐसा उत्पात मचाया कि माँ का खून खौल गया, परंतु अन्य लोगों के सामने बेचारी माँ उस शैतान बच्ची को डाँट भी न सकी। फिर जब वह सामान लेकर बाहर कार पार्किंग स्थल में आई, तो उसने बच्ची को कार की पिछली सीट पर बिठाकर सबसे पहले अपने दाएँ बाएँ और आगे पीछे देखा और मैदान साफ़ पाकर बच्ची का झोंटा पकड़कर मुक्कों से उसकी धुनाई कर दी। पर बिचारी माँ को यह ध्यान नहीं रहा कि स्टोर वालों ने सिक्योरिटी हेतु कैमरे न केवल स्टोर के अंदर लगवाए हुए थे वरन बाहर पार्किंग स्थल में भी लगवा रखे थे। फिर क्या था सारी धौल-धप्पड़ की कार्यवाही सिक्योरिटी ड्यूटी पर तैनात व्यक्ति ने क्लोज़्ड-सर्किट टी व़ी पर देख ली और एक अच्छे अमेरीकन का कर्तव्य निभाते हुए पुलिस को टेलीफ़ोन कर दिया। पुलिस युवती की कार के नंबर की पहचान से उस युवती के यहाँ पहुँच गई और उसे, जो एक सिंगल पेरेंट थी, बंदी बना लिया और बच्ची को चाइल्ड केयर होम में रख दिया। प्रेस व टी. वी. वालों को अच्छा मसाला मिल गया और माँ द्वारा बच्ची की धुनाई के दृश्य को बार-बार टी. वी. पर ऐसे दिखाया जाने लगा जैसे यह ट्विन टावर्स के बंबार्डमेंट का दृश्य हो और उस बेचारी माँ की गिरफ्तारी टी. वी. पर ऐसे फ़ख़्र के साथ दिखाई जाती जैसे अमेरिकन पुलिस ने ओसामा बिन लादेन को पकड़ लिया हो। अब माँ बिचारी बार-बार रो-रो कर कहती है कि यह सच है कि शैतानी करने के कारण क्रोध में उसने अपनी बच्ची की घौल धप्पड़ कर दी थी, परंतु वह कोई दानव नहीं है। वह बच्ची उसकी एकमात्र संतान है जिसे वह अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार करती है। परंतु लोगों का अनुमान है कि वीडियो में अंकित साक्ष्य के कारण उसे सज़ा होना लगभग निश्चित है।

अमेरिका में आज हालत यहाँ तक नाजुक हो गई है कि बच्चों को डाँट भर देने पर कोई-कोई बच्चा अपने बाप को धमकाने लगता है "शट अप डैड आइ ऐम गोइंग टु रिंग नाइन वन वन"। फिर बापजान की न केवल सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है वरन हफ़्तों माँ-बाप को बच्चे पर निगाह रखनी होती है कि बच्चा कहीं चुपचाप नाइन वन वन को फ़ोन न कर दे। और जब तक माँ बाप पूर्णत: आश्वस्त नहीं हो जाते हैं कि बच्चे ने उनके अपराध को मन से क्षमा कर दिया है तब तक उन्हें अच्छी नींद नहीं आती है।

अब आप ही बताएँ कि कौन किसका बाप है।

24 अप्रैल 2005

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