|  | "सच, मुझे तो घुटन महसूस होती है।""क्यों?"
 "यह भी जीना हुआ कि रोज़मर्रा की दिनचर्या पूरी की, खाया-पिया और सो गए।"
 "और क्या होना चाहिए?"
 "अधिक कुछ नहीं तो एक सोशल सर्किल होना चाहिए, जिसमें आदमी खुश हो सके, दो पल हँस 
सके।"
 "कोई तुम्हारा हँसना-चहकना बर्दाश्त करे तब न!"
 "तुम किसी को बर्दाश्त कर सको तब न!"
 "क्या मतलब?"
 "मतलब कुछ नहीं। मैंने देखा है, तुम कहीं भी किसी भी रिश्ते को कायम नहीं रख सके। 
हर रिश्ते को, हर संबंध को बौद्धिक स्तर पर जीने लगे हो, और जीने के लिए यह घातक 
है।"
 "घातक है भावना स्तर पर संबंधों की लाश ढोए चले जाना। तुम्हीं बताओ कैसे संबंध हैं 
यह, जिन्हें ढो-ढोकर हमने आज तक जिल्लत ही उठाई है, और हासिल क्या किया है?"
 "हासिल करना चाहो तब न!"
 "क्या कहती हो तुम?"
 "कुछ नहीं।"
 |