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रचना प्रसंग– ग़ज़ल लिखते समय–९

ग़ज़ल के लिए हिंदी छंद–भाग २
रामप्रसाद शर्मा महर्षि

 
पिछले अंक में ग़ज़लों के लिए उपयुक्त कुछ हिंदी छंदों का उल्लेख, उनके विवरण सहित, किया गया था, उसी क्रम में यहाँ अन्य चयनित छंद प्रस्तुत हैं—

६) पद्धरि : इस छंद में प्रति चरण १० : ६ अथवा ८ : ८ के विश्राम से १६ मात्राएँ होती हैं। चरणांत में जगण(।ऽ।) आता है।

उदाहरण
री, आवेगी, फिर भी वसंत – ऽऽऽऽ, ।।ऽ।ऽ। – ८ : ८ = १६ मात्राएँ
जैसे मेरे प्रिय, प्रेमवंत – ऽऽऽऽ।।, ऽ।ऽ। – १० : ६ = १६ मात्राएँ (साकेत नवम सर्ग)

७) अहीर : यह प्रति चरण ग्यारह मात्राओं का छंद है चरणांत में जगण (।ऽ।) आता है।
उदाहरण
दिल का जाम खंगाल – ।।ऽऽ।।ऽ। = ११ मात्राएँ
घिस कर उसे उजाल – ।।।।।ऽ।ऽ। = ११ मात्राएँ
दामन खूब निचोड़ – ऽ।।ऽ।।ऽ। = ११ मात्राएँ  
उसकी गंद निकाल – ।।ऽऽ।।ऽ।= ११ मात्राएँ – स्वरचित

८) गोपी : यह प्रति चरण पंद्रह मात्राओं का छंद है। प्रत्येक पंक्ति के प्रारंभ में नगण (।।।) अथवा लघु–गुरू (।ऽ) तथा चरणांत में दो लघु आते हैं।
उदाहरण
तुम्हारे धन्य धन्य दर्शन – ।ऽऽऽ।ऽ।ऽ।। = १५ मात्राएँ
न मां, तुम–सा कोई पावन – ।ऽ।।ऽऽऽऽ।। = १५ मात्राएँ
हमारा तन–मन–धन सब कुछ – ।ऽऽ।।।।।।।।।। = १५ मात्राएँ
तुम्हारे चरणों में अर्पण – ।ऽऽ।।ऽऽऽ।। = १५ मात्राएँ – स्वरचित

९) शृंगार : यह प्रति चरण सोलह मात्राओं का छंद है, चरणांत में गुरू–लघु (ऽ।) आते हैं।
उदाहरण
सोव है मुझ को निस्संदेह – ऽ।ऽ।।ऽऽऽऽ। = १६ मात्राएँ
भरत है जो मामा के गेह – ।।।ऽऽऽऽऽऽ। = १६ मात्राएँ – साकेत, द्वितीय सर्ग

१०) शृंगार हार (मराल) : इस छंद में प्रति चरण १६ : १६ के विश्राम से ३२ मात्राएँ होती हैं, चरणांत में गुरू–लघु (ऽ।) आते हैं।
उदाहरण
बनो संसृति के मूल रहस्य – ।ऽऽ।।ऽऽ।।ऽ। = १६ मात्राएँ
तुम्हीं से फैलेगी वह बेल – ।ऽऽऽऽऽ।।ऽ। = १६ मात्राएँ (३२ मात्राएँ)

विश्व भर सौरभ से भर जाए – ऽ।।।ऽ।।ऽ।।ऽ। = १६ मात्राएँ
सुमन के खेलो सुंदर खेल – ।।।ऽऽऽऽ।।ऽ। – १६ मात्राएँ (३२ मात्राएँ)

टिप्पणी : तीसरी अर्द्ध–पंक्ति के अंत में 'जाए' का गुरू वर्ण 'ए' लयात्मक स्वरापात के कारण लघु पढ़ा गया।

११) आंसू/मानव : इस छंद में प्रति चरण चौदह मात्राएँ होती हैं। चरणांत में मगण(ऽऽऽ) अथवा यगण(।ऽऽ) आते हैं, (इस छंद के चरणांत में एक गुरू(ऽ) अथवा दो लघु (।।) भी देखे गए हैं)

टिप्पणी : जयशंकर प्रसाद द्वारा अपनी 'आंसू' नामक कविता में इस छंद को प्रयुक्त किए जाने के कारण, इसे 'आंसू' छंद कहा गया है। इसे 'प्रसाद' छंद भी कहा जाता है। यह छंद 'मानव' जाति का एक भेद है–
उदाहरण :
जो घनीभूत पीड़ा थी – ऽ।ऽऽ।ऽऽऽ = १४ मात्राएँ
मस्तक में स्मृति–सी छाई – ऽ।।ऽ।।ऽऽऽ = १४ मात्राएँ
दुर्दिन में आंसू बन कर – ऽ।।ऽऽऽ।।।। = १४ मात्राएँ
वो आज बरसने आई – ऽऽ।।।।ऽऽऽ = १४ मात्राएँ
अन्य उदाहरण
चरणांत में यगण (।ऽऽ)
चमकूंगा धूलि कणों में – ।।ऽऽऽ।।ऽऽ = १४ मात्राएँ, चरणांत में एक गुरू (ऽ)
इस करूणा–कलित हृदय में – ।।।।ऽ।।।।।।ऽ = १४ मात्राएँ

१२) राधिका : इस छंद के प्रत्येक चरण में १३ : ९ के विश्राम से २२ मात्राएँ होती हैं, चरणांत में एक गुरू(ऽ) अथवा दो गुरू(ऽऽ) अथवा दो लघु (।।) आते हैं।
उदाहरण – १ चरणांत में दो गुरू (ऽऽ)
निज हेतु बरसता नहीं, व्योम से पानी – ।।ऽ।।।।ऽ।ऽ, ऽ।ऽऽऽ – १३ : ९ = २२ मात्राएँ
हम हों समष्टि के लिए, व्यष्टि बलिदानी – ।।ऽ।ऽ।ऽ।ऽ, ऽ।।।।ऽऽ – १३ : ९ = २२ मात्राएँ
उदाहरण – २ चरणांत में एक गुरू(ऽ)
कर, पद, मुख तीनों अतुल, अनावृत पट से – ।।।।।।ऽऽ।।।, ।ऽ।।।।ऽ – १३ : ९ = २२ मात्राएँ
उदाहरण – ३ चरणांत में दो लघु (।।)
करते हैं जब उपकार, किसी का हम कुछ – ।।ऽऽ।।।।ऽ।, ।ऽऽ।।।। – १३ : ९ = २२ मात्राएँ

१३) हंसगति : प्रति चरण ११ : ९ के विश्राम से २० मात्राएँ। चरणांत में दो गुरू(ऽऽ) अथवाा दो लघु(।।)´
उदाहरण
बीच भंवर में नृत्य, तुझे जो सूझा – ऽ।।।।ऽऽ।, ।ऽऽऽऽ – ११ : ९ = २० मात्राएँ
री तरणी, मति भ्रष्ट, हुई क्या तेरी – ऽ।।ऽ।।ऽ।, ।ऽऽऽऽ – ११ : ९ = २० मात्राएँ
डूबेगी तू स्वयं, हमें भी लेकर – ऽऽऽऽ।ऽ , ।ऽऽऽ।। – ११ : ९ = २० मात्राएँ
जल्दी से आ निकल, न कर कुछ देरी – ऽऽऽऽ।।।, ।।।।।ऽऽ – ११ : ९ = २० मात्राएँ – स्वरचित

टिप्पणी : एक प्रकार से यह राधिका छंद का लघुरूप जैसा है।

१४) प्रति चरण १४ : १५ के विश्राम से २९ मात्राएँ, चरणांत में जगण(।ऽ।) महायोगिक जाति का एक भेद।
उदाहरण
मैं हूं मतवाला राही – ऽऽ।।ऽऽऽऽ = १४ मात्राएँ
मंज़िल की है मुझे तलाश – ऽ।।ऽऽ।ऽ।ऽ। = १५ मात्राएँ (२९ मात्राएँ)

अंधियारों का मारा हूं – ।।ऽऽऽऽऽऽ = १४ मात्राएँ
मुझे चाहिए विमल प्रकाश – ।ऽऽ।ऽ।।।।ऽ। = १५ मात्राएँ (२९ मात्राएँ) – स्वचरित
(इस छंद का नाम 'विमल' प्रस्तावित)´
इसके अतिरिक्त, गीतिका, हरिगीतिका, भुजंग–प्रयात, भुजंगी, स्त्रगिवणि, विधाता तथा कुछ अन्य छंद एवं वर्ण–वृत, जो उर्दू वर्ण–वृतों के समकक्ष हैं, उनका वर्णन यथास्थान उर्दू वर्ण वृतों के साथ किया जाएगा।  

१६ जून २००५

 अगले अंक में 'ग़ज़लों के लिए उपयुक्त उर्दू बहरें तथा उनके समकक्ष हिंदी छंद' का भाग १ देखें।

पृष्ठ : .........१०.११.१२.१३.१४.१५.१६.१७.१८

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