| 
(पहले मंदिर के घंटे घड़ियाल और कीर्तन की
ध्वनि धीमेधीमे तेज होकर धीमी होते हुए लुप्त होती है, फिर गिरजे
के घंटे तेज बजकर धीमी गति से लुप्त होते हैं अंततः मस्जिद से आज़ान
के आवाज़ आती है। आज़ान की इस आवाज़ के धीमी गति से लुप्त होते ही
कबीर का पद गूंजता है।)
 मोंको कहां ढूंढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास
में।ना मैं देवल ना मैं मसजिद, न काबे कैलास में।
 ना तो काउन क्रियाकर्म में, नहीं जोगबैराग में।
 ना मैं छगरी ना मैं भेंड़ी, ना मैं छूरी गांडास में।
 नहीं खाल में नहीं पूंछ में ना हड्डी मांस में।
 मैं तो रहां सहर के बाहर मेरी पूरी मवास में।
 खोजी होय तो तुरतै मिलिहौ, पल भर की तलास में।
 कहैं कबीर सुनौ भाई साधो, सब सांसन की सांस में।
 ('मोंको कहां ढूंढ़े बंदे' धीरे धीरे लुप्त
होता है) पुरूष स्वर   (उभरता है) मोकों
कहां ढूंढ़े बंदे! मैं तो तेरे पास में। नारी स्वर (पुरूष स्वर पर छाते हुए)
 मोकों कहां
ढूंढ़े बंदे! मैं तो तेरे पास में।
                     |