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                      ग़ज़ल जैसी 'गेय' विधा के लिए ऐसे ही छंद उपयुक्त हो सकते हैं, 
						जिनमें तरन्नुम हो, संगीतात्मकता हो। यहाँ ऐसे ही गुणविशेष 
						वाले मांत्रिक छंदों का चयन किया गया है। इनमें से कुछ 
						छंद, पहले ही से, हिंदी–उर्दू दोनों ही, भाषाओं में कही 
						जानेवाली ग़ज़लों में प्रयुक्त हो रहे हैं।  
                      १) सरसी : इसे समंदर छंद भी कहते हैं। इस छंद के प्रत्येक चरण 
						में १६ – ११ के विश्राम से २७ मात्राएँ होती हैं। चरणांत 
						में गुरू–लघु (ऽ।) आते हैं, उदाहरणार्थ–कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
 कई दिनों तक कानी कुतिया, सोई उनके पास – (नागार्जुन)
 
                      हिंदी मात्रा गणना :पहली पंक्ति – ।ऽ।ऽ।।ऽऽऽऽ, ऽऽ।ऽ।ऽ। – १६ : ११ = २७ मात्राएँ
 दूसरी पंक्ति – ।ऽ।ऽ।।ऽऽ।।ऽ, ऽऽ।।ऽऽ। – १६ : ११ = २७ 
						मात्राएँ
 
                      उर्दू ग़ज़लों में प्रयुक्त सरसी छंद का एक उदाहरण –तंज़ के ज़हरामेज़ नुकीले, कांटों की क्या बात
 फूलों से भी हो जाते हैं, ज़ख्मी अहसासात – (ज़ैदी ज़ाफर 
						'रज़ा')
 
                      उर्दू मात्रा गणनापहली पंक्ति – ऽ।।ऽऽऽ।।ऽऽ, ऽऽऽऽऽ। – १६ : ११ = २७ मात्राएँ
 दूसरी पंक्ति – ऽऽऽऽऽऽऽऽ, ऽऽऽऽऽ। = १६ : ११ = २७ मात्राएँ
 
                      टिप्पणी : पहली पंक्ति में लयात्मक स्वरापात के कारण 'के' 
						लघु होने का आभास दे रहा है।                       
                      २) सार : इस छंद में प्रति चरण १६ – १२ के विश्राम से २८ 
						मात्राएँ होती हैं। चरणांत में दो गुरू (ऽऽ) अथवा लघु–गुरू 
						(।ऽ) आते हैं।
                       हिंदी का उदाहरणगूंज उठी खिलती कलियों पर, उड़ अलियों की टोली
 प्रिय की श्वास–सुरभि दक्षिण से, आती है अनमोली – (साकेत, 
						नवम सर्ग से)
 हिंदी मात्रा–गणनापहली पंक्ति : ऽ।।ऽ।।ऽ।।ऽ।।, ।।।।ऽऽऽऽ – १६ : १२ = २८ 
						मात्राएँ
 दूसरी पंक्ति : ।।ऽऽ।।।।ऽ।।ऽ, ऽऽऽ।।ऽऽ – १६ : १२ = २८ 
						मात्राएँ
 इस छंद में उर्दू का एक 
						उदाहरण –आली जी अब आप चले हो, अपना बोझ उठाये
 साथ भी दे तो आखिर प्यारे, कोई कहाँ तक जाये – (जमालुद्दीन 
						'आली')
 
						उर्दू मात्रा गणनापहली पंक्ति : ऽऽऽऽऽ।।ऽऽ, ऽऽऽ।।ऽऽ – १६ : १२ = २८ मात्राएँ
 दूसरी पंक्ति : ऽ।।ऽऽऽऽऽऽ, ऽ।।ऽऽऽऽ – १६ : १२ = २८ मात्राएँ
 टिप्पणी : दूसरी पंक्ति में 
						"भी" तथा कोई की "ई" लयात्मक स्वरापात के कारण, लघु होने 
						का आभास दे रहे हैं। 
                      
                     
						३) विष्णुपाद : इस छंद में प्रति चरण १६ – १० के विश्राम 
						से २६ मात्राएँ होती हैं, चरणांत में एक गुरू (ऽ) आता है। हिंदी उदाहरणप्रीति पतंग करी दीपक सों, आये प्रान दह्यो
 अलिसुत प्रीति करी जलसुत सों, संपुट विकट लह्यो
 हिंदी मात्रा गणनापहली पंक्ति : ऽ।।ऽ।।ऽऽ।।ऽ, ऽऽऽ।।ऽ – १६ : १० = २६ मात्राएँ
 दूसरी पंक्ति : ।।।।ऽ।।ऽ।।।।ऽ, ऽ।।।।।।ऽ – १६ : १० = २६ 
						मात्राएँ
 
                      उर्दू उदाहरणअपना पैकर, अपना साया, काले कोस कठिन
 दूरी की जब संगत टूटी, कोई क़रीब न था – (मजीद 'अमजद')
 
                      
						उर्दू मात्रा – गणनापंक्ति – १ : ऽऽऽऽऽऽऽऽ, ऽऽऽ।।ऽ – १६ : १० = २६ मात्राएँ
 पंक्ति – २ : ऽऽऽऽऽऽऽऽ, ऽ।।ऽ।।ऽ – १६ : १० = २६ मात्राएँ
 
                      
                      दूसरी पंक्ति में 'कोई' की 'ई' लघु पढ़ी गई। हिंदी में सरसी 
						तथा विष्णुपाद छंदों का, एक ही रचना में, संयुक्त रूप से 
						भी प्रयोग किया गया है, जैसे –बहुत बहुत ही नर्म उंगलियाँ, तेरी लेकिन मीत (सरसी)
 एक छुअन ने उसकी मुझको जड़ तक हिला दिया (विष्णुपाद)
 (विजय प्रकाश, बराबर, वर्ष १, अंक ११, मील के पत्थर)
 
                      मैथिली शरण गुप्त जी की निम्न–लिखित पंक्तियाँ इंद्रवंशा तथा 
						इंद्रवज्रा वर्णवृतों में संयुक्त रूप से रची गई हैं। 
						छंदाचार्य पुतूलाल ने इसका 'वंशवज्रा' नाम रखा है –लेते गए क्यों तुम्हें कपोत वे (इंद्र वंशा) ऽऽ।, ऽऽ।, 
						।ऽ।, ऽ।ऽ
 गाते सदा जो गुण थे तुम्हारे (इंद्रवज्रा) ऽऽ।, ऽऽ।, ।ऽ। 
						†ऽऽ
 
                      ४) रोला : इस छंद में प्रति चरण ११ : १३ के विश्राम से २४ 
						मात्राएँ होती हैं। चरणांत में दो गुरू (ऽऽ) अथवा चार लघु 
						(।।।।), अथवा भगण (ऽ।।) अथवा सगण (।।ऽ) आते हैं।उदाहरण (चरणांत में दो गुरू)
 अबला जीवन, हाय, तुम्हारी यही कहानीI
 आंचल में है दूध और आंखों में पानी
 हिंदी मात्रा गणनापंक्ति – १ :  ।।ऽऽ।।ऽ।, ।ऽऽ।ऽ।ऽऽ – ११ : १३ = २४ 
						मात्राएँ
 पंक्ति – २ :  ऽ।।ऽऽऽ।,  ऽ।ऽऽऽऽऽ – ११ : १३ = २४ 
						मात्राएँ
 
                      
						५) ताटंक/लावनी : प्रति चरण १६ : १४ के विश्राम से ३० 
						मात्राएँ (१) चरणांत में मगण (ऽऽऽ), जैसे –देव तुम्हारे कई उपासक, कई ढंग से आते हैं
 सेवा में बहुमूल्य भेंट वे, कई रंग की लाते हैं – (सुभद्रा 
						कुमारी चौहान)
 
                      लेकिन निम्न–लिखित पंक्तियों के चरणांत में सगण (।।ऽ) भी आया 
						है–चारू चंद्र की चंचल किरणें, खेल रही हैं जल थल में 
						(।।ऽ)
 स्वच्छ चांदनी बिछी हुई है, अवनि और अंबर   तल में  
						(।।ऽ) – मैथिली शरण गुप्त
 
                      ताटंक से मिलता–जुलता एक अन्य मात्रिक छंद 'ककुभ' भी है, 
						जिसके चरणांत में दो गुरू आते हैं–गरजन करता हुआ गगन में, जलधर क्या ही छवि  पाता 
                      (ऽऽ)
 स्वर्ण शक्र धनु, रत्न खचित तनु, है किरीट–सा बन  जाता 
                      (ऽऽ)
 
                      लय में समान होने के कारण, उपर्युक्त सभी पंक्तियों में 
						प्रयुक्त छंदों को एक ही रचना में, संयुक्त रूप से इकठ्ठा 
						किया जा सकता है।                      
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