पश्चिम की दीवानी दुनिया डलास के किस्से
(छठा भाग)
स्थानांतरण
एक दिन सुबह प्रोजेक्ट मैनेजर ने कमरे में बुलाकर मेरा
प्रोजेक्ट समाप्त होने की सूचना दी। सीधी-साधी भाषा
में मतलब यह था कि उन्हें अब मेरी ज़रूरत नहीं थी। और
अगले हफ्ते से मैं बेंचप्रेस के लिए तैयार हो गया।
जैसा कि पहले भी बता चुका हूँ कि तेज़ी से बदलती तकनीक
वाले इस कंप्यूटर क्षेत्र में प्रवेश तो आसान है पर हर
दो चार महीने के बाद एक प्रोजेक्ट से दूसरे प्रोजेक्ट
पर जाने का मतलब कई बार एक राज्य से दूसरे राज्य में
जाना होता है। इन सबके साथ जुड़ी है स्थानांतर की चिर
समस्या। यानि कि नए प्रांत में नया रहने का ठिकाना,
सामान और कार का स्थानांतरण फिर घर का पता, टेलीफोन,
बैंक इत्यादि सेवाओं को नए स्थान परिवर्तन से सूचित
कराने की जद्दोजहद। खैर, बेंच पर आने का पहला सोमवार
था। मार्च की गुनगुनी धूप सनरूम में आ रही थी और मैं
नया कुछ तकनीकी मसला पढ़ रहा था कि तभी टेलीफोन की घंटी
बजी। यह मामू का फोन था। मामू शब्द कंप्यूटर
प्रोगरामों ने बिचौलियों के लिए ईजाद कर रखा है। पता
चला कि दो घंटे में कोई जनाब इंटरव्यू के लिए फोन
करेंगे। फोन आया और सिर्फ यह पूछने के बाद कि मैने
कौन–कौन सी विधाओं में काम कर रखा है डलास निवासी
साक्षात्कार कर्ता ने निमंत्रण भेज दिया कि भाई आ जाओ
डलास में बसने।
दीवानी दुनिया डलास
अटलांटा से डलास कार यात्रा की ठानी थी। ८०० मील यानि
लगभग १३०० किलोमीटर का यह रास्ता एकदम सीधा एक हाइवे
अटलांटा से शुरू होकर डलास पहुँचता है। हिन्दुस्तान
में मात्र दो दिन में १०५-१३० किलो मीटर प्रतिघंटे की
रफ्तार से १३०० किलोमीटर सफर तय करने के बारे में
स्वप्न में भी नहीं सोचा था। थोड़ी थोड़ी दूर पर
रेस्टोरेन्ट, विश्रामगृह, पेट्रोल पंप वगैरह होने और
उत्तम कोटि की सड़क ने सफ़र को कष्ट रहित बना दिया।
जार्जिया से एलाबामा, मिसौरी एवं लुसियाना होते हुए
टेक्सास में दाखिल हुए। पूरा रास्ता दो गलियों का था।
सफर मस्ती से कटता रहा। टेक्सास में दाख़िल होते ही
प्रांत के स्वागत–पट ने टेक्सास के अक्खड़पन से रूबरू
कराया। जहाँ सारे प्रांत के स्वागत 'वेलकम टु स्टेट'
से शुरू होते हैं वहीं टक्सास की बानगी देखिए—
'डू नॉट मेस विद टेक्सास'। जहाँ तक नज़र जा सकती थी,
खेत दिखते थे। कहीं कहीं काउबॉय (चरवाहे बाल गोपाल)
घोड़े पर सवार गाय भैंसों को इकठ्ठा कर रहे थे।
अमरीका के सर्वाधिक क्षेत्र में बसा टेक्सास प्रांत
में जहाँ तक नज़र जा सकती है सपाट ज़मीन दिखती है। मैं
हाईवे पर बने स्वागत कक्ष में रुका। सड़क मार्ग के
आगंतुकों के लिए सभी प्रांतों में स्वागत केंद्र बने
हैं— मुफ्त नक्शे, होटल व रेस्टोरेंट की तालिका,
पर्यटन स्थलों की सचित्र जानकारी और सहायता के लिए कुछ
कर्मचारी। स्वागत केंद्र के कर्मचारियों ने मुझे डलास
तक का रास्ता समझा दिया। कुछ ही घंटों के बाद अपनी
मंज़िल डलास डाउन टाउन की खूबसूरत 'स्काईलाइन' दूर से
दिखने लगी। अमरीका में गगन चुंबी इमारतों का झुंड
'स्काईलाइन' के नाम से जाना जाता है। और इस शहर की
समृद्धि का परिचायक है। हालाँकि हम इसे कंकरीट के जंगल
नाम से भी जानते हैं। फिर छः लेन वाले हाई वे से सामना
हुआ और कुछ ही देर में मैं अपने होटल में था। स्वागत
कर्मचारी ने बताया कोई रवि आपके बगल वाले कमरे में
इंतज़ार कर रहे हैं। मैं सोच रहा था, डलास में मैं भला
किस रवि को जानता हूँ। कमरा खुलवाने पर दार जी रविंदर
भाई निकले। दार जी एक हफ्ते पहले ही दिल्ली से
आकाशवाणी को तलाक देकर आए थे।
पंजाब दा पुत्तर
होटल में एकाध घंटे बाद याद आया कि पीजी भाई ने किसी
बृज का फोन नंबर दिया था। फोन पर बात करने के आधा घंटे
बाद बृजमोहन जी रात्रिभोज के निमंत्रण के साथ हाज़िर
थे। ऐसी ज़िंदादिली कम ही भारतीयों में देखने को मिलती
है। बृजभाई के साथ डलास में रंग जम गया या फिर उन्हीं
की भाषा में नज़ारा आ गया। बृज और दार जी दोनों तंदूरी
चिकन के शौकीन थे और होटल में गुलाबी चिकन के साथ
दोनों की मीठी पंजाबी बातें, जो ईमानदारी से मेरे ५०
प्रतिशत ही पल्ले पड़ती थीं, कानों को बड़ी भाती थीं।
बृज के पास माजदा कार थी दमदार इंजन वाली। माजदा के
डैशबोर्ड पर उसने शंकर जी की मूर्ति स्थापित कर रखी
थी। बृज भाई ड्राइवर तो उम्दा किस्म के थे पर जब कभी
तरन्नुम में गाड़ी चलाते तो ख़ता कर बैठते। अमेरिकी
सड़कों पर गल्ती अक्सर महँगी ही पड़ती है। बृज भाई जब भी
किसी ऐसी स्थिति से दोचार होने से बचते तो तुरंत शंकर
जी के चरण स्पर्श कर के कहते आज तो परम पिता परमात्मा
ने बचा लिया। शंकर जी भी सोचते होंगे कि भक्त ने एक तो
गाड़ी में उल्टा मुँह कर के बैठाला है, अक्सर तेज़ कार
चलाता है और हर ऊलजलूल गल्ती से बचाने का ठेका भी मुझे
ही दे रखा है।
एक बार तो शंकर जी ने बहुत बचाया वर्ना हम दोनों को
बड़े बेभाव की पड़ती। मैं और बृज एक साथ उसकी कार में जा
रहे थे। बृज भाई मस्त मूड में थे बोले कि महाराज मुझे
यहाँ रहते तीन साल हो गए अब तो रास्ते इतने याद हो गए
हैं कि आँख मूँद कर भी मंजिल तक पहुँच सकता हूँ। यह
कहते हुए बृज भाई एक लेन में मुड़े। हम दोनो यह देख कर
भौंचक्के रह गए कि एक कार तेज़ी से हमारी ही लेन में आ
रही है। बृजभाई ने हार्न मारा तो वह चालक उल्टे चोर की
तरह हम कोतवालों को डाँटते यानि कि हार्न मारते हुए
चला गया। पर यह क्या अब तो दोनों लेन में कारें अपनी
ही दिशा में आरहीं थीं। बृज भाई बोले महाराज आज क्या
पूरे शहर ने पी रखी है? अब तक मुझे माजरा समझ में आ
गया था। ग़फ़लत में हम एक एग्ज़िट रैम्प में उल्टी दिशा
से जा घुसे थे। अब हम दोनों को काटो तो खून नहीं कि
गाड़ी को यू टर्न कैसे लगाएँ। जब दोनों ही लेन में
गाड़िया अपनी तरफ़ मरखने बैल के मानिंद दौड़ती हुई आ रही
हैं। मेने बृजभाई से हार्न बजाते रहने को कहा, ताकि
दूसरी दिशा वाले सावधान रहें कि हम ग़लत दिशा में हैं।
तभी एक पुलिस कार हमारी लेन में आई। हमारी कुछ जान में
जान आई। पुलिस वाले ने आकर पहला सवाल किया किहम ग़लत
दिशा में कैसे आ गए। बृजभाई ने मासूमियत से जवाब दिया
कि हम इस इलाके में नए हैं। रास्ता भूलकर ग़लत लेन में
आ गए। अब यू टर्न लगाना मुश्किल लग रहा है। पुलिस वाले
ने लाइसेंस वगैरह की जाँच पड़ताल के बाद एक और पुलिस
वाले की मदद से दोनों लेन बंद कर हमारी कार को यू टर्न
में मदद दी। और साथ ही भविष्य में सजग रहने की ताकीद
भी की। पुलिस वाले ने हमारी और दूसरी कारों के हार्न
की जवाबी कव्वाली सुनकर और हमारी कार दूर से ग़लत दिशा
में खड़ी देख कर समझा कि कोई शराबी ग़लत लेन में जा घुसा
है। इसलिए वह मसला हल करने आ गया था। पर यहाँ मामला
अपने ही शहर में नए होने का था।
पापड़ प्रेमी
होटल में तीन दिन रुकने के बाद हम नए अपार्टमेंट में
गए।। सामान पहुँचाते–पहुँचाते रात के एक बज गए।
अपार्टमेंट में पार्किंग आरक्षित थी। मेरे पार्किंग
लॉट में न जाने किस खबीस के बच्चे ने अपनी कार खड़ी कर
रखी थी। मैने कुछ देर के लिए एक आरक्षित किंतु खाली
पार्किंग लॉट हथिया लिया। अपार्टमेंट में समान रख कर
वापस जा रहा था कि एक वृद्ध सज्जन अवतरित हुए। सीधे
सवाल दागा कि क्या यह करोला तुम्हारी है। मैने बड़ी
जल्दबाज़ी में लापरवाही से जवाब दिया कि मेरा पार्किंग
लॉट किसी ने हथिया रखा है अतः मैंने दूसरे पार्किंग
लॉट का प्रयोग कर लिया। वृद्ध सज्जन का अगला बाउंसर
था, आपका पार्किंग लॉट हथिया लिया गया हो तो इसका यह
मतलब नहीं कि आप भी किसी का पार्किंग लॉट हथिया लें।
आप गेस्ट लॉट का प्रयोग कर सकते थे। जवाब बिलकुल वाजिब
था। चाँदनी रात में हैलोजेन की दूधिया रौशनी में भी
मैं वृद्ध सज्जन के तमतमाए चेहरे की लाली देख सकता था।
मैने सफाई दी कि जनाब कुछ देर के लिए सामान उतारने तक
आपका लॉट प्रयोग किया था, मैं अभी ख़ाली करता हूँ।
लेकिन वे भद्र पुरुष 'कल से ध्यान रखना' की हिदायत
देते हुए ओझल हो गए। बात आई गई हो गई।
डलास की धूप देखकर मेरी मेमसाहब की बाछें खिल गयीं।
पूरे दो साल बाद पापड़ बनाने का स्वर्णिम अवसर जो उनके
हाथ लगा था। शाम को आफिस से वापस आया तो डलास की धूप
में सूखे पापड़ चाय के साथ हाज़िर थे। एक मज़ेदार प्रहसन
हो गया उसके बाद। मेमसाहब ने बताया पापड़ बनाते समय
नीचे की मंज़िल पर रहने वाला कोई अमरीकी उनका दोस्त बन
गया है। अधेड़ उम्र का व्यक्ति एकाकी जीवन व्यतीत कर
रहा है और भारतीय भोजन का शौकीन है। उसने मेमसाहब को
पापड़ बनाते देखकर पूछा होगा कि तुम क्या कर रही हो।
मेमसाहब ने उसे पापड़ पुराण सुना दिया। बंदा पापड़
प्रेमी निकला। उसने मेमसाहब को आसपास के सारे भारतीय
रेस्टोरेन्ट के नाम गिना डाले। साथ ही उन्हें यह भी
सलाह दे डाली कि चूँकि तुम लोग नए हो अतः मैं तुम्हारे
शौहर को आसपास की सभी ज़रूरी चीजें पते ठिकाने बता
दूँगा। हालाँकि उसने यह भी स्वीकार किया कि भारतीयों
को यहाँ अपने सामाजिक कौशल के चलते स्थापित होने में
ज्यादा कष्ट नहीं उठाना पड़ता। मेमसाहब ने घोषणा की कि
छोले भटूरे बने हैं और मैं उनके नए दोस्त को भी कुछ
छोले भटूरे दे आऊँ। इसी बहाने किसी काम के आदमी से जान
पहचान हो जाएगी। मेरे यह कहने पर कि यहाँ के लोग
ज्यादा मेलजोल पसंद नहीं करते मेमसाहब ने उनके मिलनसार
एकाकी और अधेड़ होने की दुहाई दे डाली।
मैं तब भी अड़ा था कि यहाँ के लोग शायद ही हमारी तरह
ताउम्र विवाहित रहते हैं। असुविधा की वजह से बच्चे न
पाल कर कुत्ते बिल्ली पालते हैं और परिवार की जगह कार
और मकान जैसी बेजान चीजों पर ज्यादा समय व ध्यान देते
हैं। इसी वजह से अकेले रहते–रहते खड़ूस हो जाते हैं, पर
मेरी संवेदनशील पत्नी अगर किसी का भला करने पर अड़ जाए
तो सारे तर्क कुतर्क व्यर्थ हैं। वह सामाजिकता,
संवेदनशीलता और धार्मिक परमार्थ आदि के इतने तर्क
प्रस्तुत करेंगी कि उसकी बात मानने के अलावा कोई चारा
नहीं बचता। झख मार कर मैं छोले भटूरे की प्लेट लेकर
नीचे वाले अपार्टमेंट में गया और घंटी बजाई। अपने इस
नए पड़ोसी से मैने बताया कि मैं उनकी नयी पड़ोसन का पति
हूँ और उनके लिए मेरी पत्नी ने छोले भटूरे भेजे हैं।
पड़ोसी ने मुझे अंदर आमंत्रित किया रोशनी में मेरे
दीदार होते ही वे बोले, "मैं तुम्हें पहचानता हूँ।
हमारा पार्किंग लॉट में विवाद हो गया था पर अब उसे भूल
जाओ।" जनाब का नाम बॉब था और वे फोर्ड कार की डीलरशिप
में कार्यरत थे।
बॉब को भारतीय भोजन चटपटा होने की वजह से बहुत पसंद
था। मुझे उसने एक पेंटिंग दिखाई जिसमें विश्व की सभी
प्रकार की मिर्चों के चित्र थे। कुल छप्पन प्रकार की
मिर्चों में वह बीस तरह की मिर्चें चख चुका था। बॉब
पार्किंग लॉट वाला मामला जल्द ही भूल गया। उसने मुझे
एक और तस्वीर दिखा कर उसमें से एक महिला को पहचानने को
कहा। यह महिला और कोई नहीं बीस तीस महिलाओं के शिष्ट
मंडल से घिरी स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गाँधी थीं। उस
शिष्ट मंडल में बॉब की दादी भी शामिल थीं। बॉब ने
बताया कि वह भारत घूमने जाना चाहता है। उसके पहले वह
तैयारी कर रहा है और भारत के बारे में जो कुछ उसे मिला
सब पढ़ चुका है।
एक दिन रविवार की सुबह बॉब आवाज़ लगा कर बुलाने लगा।
पता चला जनाब अपने पिछवाड़े बार्बेक्यू स्टेक यानि कि
भैंसे का माँस पका रहे थे। बोले कि तुम अक्सर भारतीय
खाना खिलाते हो आज तुम्हें टेक्सास स्पेशल खिलाता हूँ।
यह पता चलने पर कि हम शाकाहारी हैं बेचारा बहुत निराश
हुआ पर थोड़ी ही देर में कहीं से मैक्सिकन डिश लेकर
हाज़िर हो गया। कभी कभी यह देख कर ताज्जुब होता है
टेक्सास की बगल में बसे देश मैक्सिको निवासियों की
शक्ल सूरत भारतीयों से इस कदर मिलती है कि धोखा हो
जाता है।
जलेबी का जलवा
एक दिन शाम को आफिस से घर पहुँचा तो श्रीमती जी हाथ पर
पड़ोसन से बरनॉल लगवा रही थीं। पता चला महिला मंडल में
पकवान चर्चा के बीच जलेबी का ज़िक्र आगया। सबको एक ही
कोफ्त थी कि डलास में सब मिलता है पर किसी को जलेबी
नहीं दिखी। एक दक्षिण भारतीय पड़ोसन तो कभी जलेबी नाम
की चीज़ से रूबरू ही नहीं हुई थी। मेरी पाक कला
सिद्धस्त श्रीमती जी मोर्चे पर कूद पड़ीं। आखिर कानपुर
और जलेबी की प्रतिष्ठा का प्रश्न था पर आपाधापी में
गर्म तेल मैडम के हाथ पर छलक गया। उनकी प्राथमिक
चिकित्सा के बीच मेरा पदार्पण हुआ। फौरन एक 'वॉकइन
क्लीनिक' ले गया। डाक्टर ने मरहम पट्टी तो कर दी पर
उसे यह चोट कुकिंग में लगी है यह हजम नहीं हो रहा था।
वह शंकित था कि कहीं चोट की वजह मियाँ बीवी में
हाथापाई तो नहीं। अब शक की दवा तो हकी लुक्मान के पास
भी नहीं थी। पर बुढ़ऊ डाक्टर कुछ देर में समझ गया कि इस
दुर्घटना के पहले हम दोनों में सिर फुटव्वल जैसा
कुछ
नहीं हुआ।
९ जून
२००५ |