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10 मंच मचान

— अशोक चक्रधर  

टोटके और उनके घोटके

मेरे महागुरू मुक्तिबोध ने 'चांद का मुंह टेढ़ा है' नामक कविता में लिखा था –
आसमान पी गया . . .सच्चाइयां घोट के,
मनुष्य को मारने के खूब हैं ये टोटके!
गगन में कर्फ्यू हैं,
धरती पर जहरीली छीः थू है!
मुक्तिबोध की लंबी–लंबी कविताएं याद रखना आसान काम नहीं है। पर जहां वे कविता में तुक मिलाते हैं, वे हिस्से फौरन याद हो जाते हैं। ये अंश तो मुझे यों भी बहुत पसंद हैं, चूंकि इसमें 'टोटके' का जिक्र है। अनेक वर्ष से मैं कविसम्मेलन मंच पर टोटकों का इस्तेमाल देखता आ रहा हूं, जिनके रहते इन दिनों 'कविसम्मेलन का मुंह टेढ़ा है।' कविसम्मेलन में कर्फ्यू लगा कर इन्हें रोका तो नहीं जा सकता, क्योंकि ये तत्काल हंसी अचूक उपक्रम होते हैं, लेकिन बाद में अनेक संजीदा श्रोताओं की 'छीः थू' अवश्य सुनी जा सकती है।

टोटका, टोटका बनने से पहले जब पहली बार एक मौलिक उक्ति के रूप में जन्म लेता है तब शब्द के नए अर्थ–विस्फोट का सचमुच का आनंद आता है, लेकिन जब बारंबार दूसरों द्वारा दोहराया जाता है टोटका, तो काम हो जाता है खोट का।

काम खोट का है, ये तो हम जानते हैं, भोले श्रोताओं को क्या पता! वे तो हर बार टोटके पर मजा लेते हैं, हंसते हैं और तालियां बजाते हैं। टोटके के बारे में घोटके देखा जाना चाहिए कि आखिर उसकी तावफ़त क्या है। हजारों बार दोहराए जाने के बावजूद वे असरदार क्यों हैं? धन्य हैं टोटके का जनक, जिसकी भनक कविगण मंच पर नहीं लगने देते। टोटके मंच पर चल रहे थे, चल रहे हैं, आगे भी चलेंगे। मैं कुछ टोटकों की सूची दे रहा हूं। यह सूची भविष्य में इनके चलन को और भी सुविधा प्रदान कर सकती है।

मेरे पास लगभग पांच सौ सदाबहार टोटकों का डेटाबेस है। यहां मैं अपनी अधिकतम जानकारी के आधार पर कुछ टोटकों के साथ, टोटके की स्थिति, टोटका–कथन, उस टोटके का जनक अथवा मंच पर प्रथम–प्रसारक, टोटके की अनुमानित आयु अर्थात टोटकायु, टोटके का समयानुकूल कथन–विस्तार, टोटके का घोटका अर्थात घोटका–मथन के रूप में उसका मनोवैज्ञानिक, सौंदर्यशास्त्रीय अथवा सामाजिक विश्लेषण और निष्कर्ष रूप में उनके उपयोग के कारण आदि बता रहा हूं।

आप तो अपना काम करिए
स्थिति/ कवि अथवा संचालक बोल रहा है। अचानक हाथ में बेंत लिए एक बलिष्ट कार्यकर्ता मंच के सामने से गुज़रता है।
टोटका–कथन/ पिछले सप्ताह के एक कविसम्मेलन में ऐसे ही एक सज्जन जा रहे थे, मैंने उनसे पूछा, "भाई साहब, लाठी लेकर कहां जा रहे हैं?" वे बोले, "आप अपना काम करिए, मैं तो उसे ढूंढ़ रहा हूं जिसने आपको यहां बुलाया है।
जनक अथवा विस्तारक/ अनुमानतः भारतेन्दुकाल की नाट्य मंडली का सूत्रधार, संदर्भः द्विवेदीयुगीन लेख, संपादक–भारत यायावर।
टोटकायु/ लगभग एक सौ पचास वर्ष।
कथन–विस्तार/ तो दोस्तों! मैं आपको बता दूं मुझे यहां अमुक जी ने बुलाया है। मैं तो चला जाऊंगा, आप अमुकजी से निपटते रहना।
घोटका–मथन/ (क) जनता कविसम्मेलन को मनोरंजन का साधन मानती है। (ख) कवि का अपने ऊपर व्यंग्य। (ग) कविसम्मेलन के आयोजक अमुक जी का नाम चतुराई से लेना, ताकि श्रोताओं को पता चल सके कि आयोजन के मूल में मुख्य व्यक्ति कौन है।
निष्कर्ष/ यह टोटका अनन्तकाल तक चल सकता है क्योंकि इसमें स्वयं पर व्यंग्य है। लेकिन आयोजक का नाम लेने से इसमें चाटुकारिता–दोष आ जाता है।

वो आज नहीं आईं
स्थिति/ कवि अथवा संचालक देखता है कि कोई व्यक्ति अपने बैठने के लिए स्थान खोज रहा है।
टोटका–कथन/ भाई साहब जहां हैं, वहीं बैठ जाइए। वो आज नहीं आई हैं, जिन्हें आप ढूंढ़ रहे हैं।
जनक अथवा विस्तारक/ कविवर बालकवि बैरागी।
टोटकायु/ लगभग पच्चीस वर्ष।
कथन–विस्तार/ बैठ जाइए भाईसाहब! कोई स्वादिष्ट सा पड़ोस देखकर बैठ जाइए।
घोटका–मथन/ (क) पुरूषों की शाश्वत महिलाखोजी वृत्ति (ख) महिलोन्मुखी होते हुए रंगे हाथ पकड़े जाना। (ग) 'पड़ोस' शब्द महिला की ओर संकेत करता है और महिलाओं को स्वादिष्ट कहना सुरूचि में नहीं आता।
निष्कर्ष/ यह टोटका हंसी तो देता है लेकिन कथन–विस्तार उत्तमकोटि का नहीं है क्योंकि यहां किसी एक श्रोता को हास्य का माध्यम बनाया जा रहा है।

ठीक समय पर आए
स्थिति/ कविसम्मेलन प्रारंभ हो चुका है। कोई सज्जन अकेले अथवा अपनी सजनी के साथ पंडाल में प्रवेश करते हैं। टोटका–कथन/ आइए, आइए। आप बिल्कुल ठीक समय पर आए हैं, वो तो हमीं कुछ पहले आ गए थे।
जनक अथवा विस्तारक/ सत्यदेव शास्त्री भोपू।
टोटकायु/ अनुमानतः तीस वर्ष।
कथन–विस्तार/ वैसे भी जो वी आई पी होते हैं, देर से ही आते हैं।
घोटका–मथन/ (क) नियम तोड़ने वालों के प्रति उपहास। (ख) आत्म प्रवंचना।
निष्कर्ष/ यह टोटका मध्यम कोटि का है लेकिन सदाबहार है। सभी की दृष्टि नवागंतुकों पर तब तक लगी रहती है, जब तक वे बैठ नहीं जाते। उनमें यदि कोई महिला हो तो शर्म के कारण उसकी स्थिति विषम हो जाती है। यह मजाक कुपित करने वाला नहीं होता।

देर से आए, वही बचे
स्थिति/ कुछ श्रोता अत्यधिक विलंब से आते हैं और आगे की अगली खाली सीटों में बैठ जाते हैं।
टोटका–कथन/ स्वागत है बैठ जाइए। आप खूब फायदे में रहे। दोस्तों! इन्हें मालूम है कि अमेरिका में 11 सितंबर के वर्ड ट्रेड टावर विध्वंस में वे ही लोग फायदे में रहे और वे ही लोग बचे जो अपने कार्यालय में देर से आए थे।
जनक अथवा विस्तारक/ कविवर सम्पत सरल।
टोटकायु/ अनुमानतः दो वर्ष।
घोटका–मथन/ हमारे देश में कार्यालयों में विलम्ब से आने वालों पर कोई दंड नहीं है।
निष्कर्ष/ यह टोटका तब तक चल सकता है जब तक उस घटना से कोई बड़ी घटना नहीं हो जाती।

गारंटी कौन लेगा
स्थिति/ हॉल का कविसम्मेलन है। माहौल जम चुका है। अचानक कुछ श्रोता प्रवेश लेते हैं।
टोटका–कथन/ आपके यहां का चलन देखकर मैं हैरान हूं, कलकत्ता में ऐसा नहीं होता। कार्ड पर समय अगर छः बजे का छपा है और कोई व्यक्ति सवा छः बजे आता है तो गेटकीपर अंदर नहीं आने देता। आने वाला कहेगा – 'भइया! मैंने पांच सौ रूपए की टिकट खरीदी है, अगली सीट मेरे लिए बुक है, मुझे अंदर जाने दो।' गेटकीपर रास्ता रोककर कहेगा – 'हरगिज नहीं, एक आपके लिए अंदर जाने के लिए दरवाजा खोलूं, इतने में अंदर वाले लोग बाहर नहीं निकल जाएंगे, इस बात की गारंटी कौन लेगा?'
जनक अथवा विस्तारक/ कविवर सुरेन्द्र शर्मा।
टोटकायु/ अनुमानतः तीस वर्ष।
घोटका–मथन/ (क) कविसम्मेलन की परंपरा पर आत्म–व्यंग्य। (ख)श्रोताओं का कविसम्मेलन से कोई खास उम्मीद रखकर न आना। (ग) आगंतुक के प्रति उपहासवक्रता।
निष्कर्ष/ इस टोटके की अनेक छवियां हैं। जहां एक ओर यह आत्मव्यंग्य होते हुए श्रेष्ठ माना जा सकता है वहीं वाचिक परंपरा पर उपहासवक्रता के कारण सामान्य है।

मैं कवि हूं और आप
स्थिति/ कविसम्मेलन चल रहा है, कुछ श्रोता सुन नहीं रहे, अपनी ही बातों में मगन हैं। कवि उनकी ओर सबका ध्यान आकृष्ट करता है।
टोटका–कथन/ बाएं मोहल्ले में जो लोग ध्यान नहीं दे रहे हैं उन्हें कल की एक घटना बताना चाहता हूं – बस में मेरे साथ एक सज्जन बैठे थे, परिचय बढ़ाने के लिए उन्होंने मुझसे पूछा – 'आप क्या करते हैं?' मैंने कहा –'मैं कवि हूं और आप?' वे बोले –'मैं बहरा हूं।'
जनक अथवा विस्तारक/ अज्ञात।
टोटकायु/ अनुमानतः तीस वर्ष।
कथन–विस्तार/ आपकी शक्ल उस सहयात्री से कुछ कुछ मिलती है। उम्मीद है आप वो वाले बहरे नहीं होंगे। घोटका–मथन/ (क) कवि और कविता के प्रति समाज का सामान्य दृष्टिकोण, (ख) कवियों को कानखाऊ समझा जाना।
निष्कर्ष/ यह टोटका अच्छा है, सदाबहार है क्योंकि कविता के प्रति जनता की राय बदलने की उम्मीद खास नज़र नहीं आ रही। सामान्य जन की अवधारणा है कि कवि नामक प्राणी और कविता नामक उसका उत्पादन प्रायः उबाऊ होता है।

परिन्दे बहुत दूर के
स्थिति/ कवि जी अपनी अपेक्षा के अनुरूप जम नहीं पा रहे हैं । कविता के मध्य में ही अन्य कवि की रचना सुनाने लगते हैं।
टोटका–कथन/ बीच–बीच में बातचीत कर रहे श्रोताओं से निवेदन करना चाहता हूं कि –'डूब कर कुछ सुनो, और सुनकर गुनो। मन मिलाओगे तो मन से जुड़ जाएंगे, वरना हम हैं परिन्दे बहुत दूर के, बोलियां बोलकर अपनी उड़ जाएंगे।'
जनक/ कविवर आत्मप्रकाश शुक्ल
विस्तारक/ असंख्य।
टोटकायु/ लगभग तीस वर्ष।
कथन–विस्तार/ अज्ञात शायर का शेर – 'मुझे कुछ भी नहीं गम था, अगर गम था तो ये गम था, जहां कश्ती मेरी डूबी, वहां पानी बहुत कम था।'
घोटका–मथन/ (क) श्रोताओं को धमकी कि तुम्हें सुनना है तो सुनो वरना अपन तो यहां से कविसम्मेलन के बाद फूट लेंगे। (ख) श्रोताओं की समझ का आकलन और एक अप्रत्यक्ष चुनौती कि उनमें गहरी समझ का अभाव है, अगर समझ है तो सुनकर दिखाओ।
निष्कर्ष / ये काव्य टोटके अगर आत्मविश्वास के साथ ढंग से सुनाएं जाएं तो बकौल श्री सुरेश नीरव तत्काल 'एलोपैथिक' असर करते हैं। कवि की कविता में यदि थोड़ा भी दम है तो वह गाड़ी खींच ले जाता है। यदि इस प्रकार के काव्य टोटके बिना आत्मविश्वास के सुनाए जाएं तो उल्टे पड़ जाते हैं, कवि का हूट होना अवश्यंभावी हो जाता है।

भाई साहब मजा आ गया
स्थिति/ कविसम्मेलन जमा हुआ है, आगे मुख्य अतिथि अपनी पत्नी के साथ बैठे कविताओं का उन्मुक्त आनंद ले रहे हैं।
टोटका–कथन/ श्री एवं श्रीमती 'अमुक', आपको प्रसन्न देखकर बड़ा अच्छा लग रहा है, कल मैं तमुक शहर में था। वहां तो साहब श्रोता कविता सुनकर रिश्ते ही बदल लेते हैं। कलेक्टर साहब आए हुए थे, हंसी में तन्मय होते हुए श्रीमती कलेक्टर ने कलेक्टर के कंधे पर हाथ मारते हुए कहा – 'मजा आ गया भाई साहब।'
जनक/ कविवर बालकवि बैरागी।
टोटकायु/ अनुमानतः तीस वर्ष।
कथन–विस्तार/ सामने भाभी जी खूब हंस रही हैं, वे चाहें तो रिश्ता बदल सकती हैं।
घोटका–मथन/ (क) विवाह के कुछ वर्ष बाद पति लगभग भाई साहब हो जाते हैं। (ख) मुख्य–अतिथि की ब्याज–स्तुति (ग) महिला मन का ज्ञान। (घ) हंसाने का शाकाहारी प्रयास। (ङ) यह टोटका अभिनय आधारित है। इसमें हाथ को काल्पनिक कंधे पर मारने का प्रयास करते हुए दिखाना पड़ता है।
निष्कर्ष/ टोटका सदाबहार है लेकिन यह तभी असरकारक होता है, जब मुख्य–अतिथि मनहूस न हों।

ताली नहीं बजाई थी
स्थिति / श्रोताओं की भीड़ में से संचालक की किसी बात पर केवल एक ताली की ध्वनि आए।
टोटका–कथन/ इस इकलौती ताली के लिए धन्यवाद! पिछले सप्ताह के एक कविसम्मेलन में भी ऐसा ही हुआ। पता चला कि अकेली ताली बजाने वाले भी कवि ही थे। संचालक ने धन्यवाद दिया तो वहीं से खड़े होकर बोले – 'धन्यवाद को वापस ले ले, संचालक अलबेले, क्या बतलाऊं कैसे मैंने पिटे लतीफे झेले। मैं तो किसी तरह से अपना वक्त घसीट रहा था, ताली नहीं बजाई थी, तम्बाकू पीट रहा था।
जनक अथवा विस्तारक/ अज्ञात, काव्य रूपांतर इस नाचीज द्वारा।
टोटकायु/ अनुमानतः तीस वर्ष।
घोटका–मथन/ (क) खैनी संस्कृति के प्रति हमारी उदार दृष्टि (ख) श्रोताओं में स्थानीय कवियों की उपस्थिति एवं उनका दर्द।
निष्कर्ष/ असंख्य कवियों ने असंख्य बार इस टोटके का प्रयोग किया है। यह टोटका तभी असफल होगा जब हमारे देश में खैनी खाने और तम्बाकू पीटने का चलन बंद हो जाएगा।

टोटकों का ये पोटली बाबा आपको फिर से कुछ और माल दिखाएगा, अगली बार जब मौका आएगा। टोटके खूब हंसाते हैं, कवियों को अपनी कविताएं जमाने के काम में आते हैं। हंसना कितना अच्छा है। रोने वाले से कहना चाहता हूं –

तेरे पास
कम खारा पानी है
इसीलिए ऐसा होता है,
समंदर के पास बहुत है
देख, वो कहां रोता है।

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