पिछले
सप्ताह
हास्य
व्यंग्य में
डा नरेन्द्र कोहली बता रहे हैं
बहुसंख्यक
होने का अर्थ
°
दृष्टिकोण
में
डा रति सक्सेना की कलम से
भावना
को
भुनाने
की
कला
°
रचना
प्रसंग में
आर पी शर्मा 'महर्षि' के धारावाहिक 'ग़ज़ल लिखते समय' का
ग्यारहवां भाग
ग़जल
के
उपयुक्त
उर्दू
बहरें व समकक्ष हिंदी छंद2
°
फुलवारी
में
आविष्कारों
की नयी कहानियां
और शिल्पकोना में वर्ग पहेली
भेड़िया
आया भेड़िया आया
°
कहानियों में
भारत से सूरज प्रकाश की
कहानी
फर्क
कुंदन आज बहुत
खुश है। आज का दिन
उसे मनमाफ़िक तरीके से मनाने के लिए
मिला है। खूब घुमाएगा बच्चों को। पार्क सिनेमा
चिड़ियाघर। किसी अच्छे होटल में खाना खिलाएगा। आज उसे
मारूति वैन चलाते हुए अजबसा रोमांच हो रहा है। रोज
यही वैन चलाता है वह पर रोज के चलाने और आज के
चलाने में फ़र्क महसूस हो रहा है उसे। रोज वह ड्राइवर होता
है। हर वक्त सतर्क सहमा हुआसा। बैक व्यू मिरर पर एक आंख
रखे। पता नहीं सेठजी कब क्या कह दें पूछ लें। लेकिन आज
के दिन तो वह मालिक बना बैठा है। सेठ जी ने खुद उसे दिन
भर के लिए गाड़ी दी है। "जाओ कुंदन, बच्चों को
घुमाफिरा लाओ।"
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इस
सप्ताह
कहानियों में
भारत से संजीव की
कहानी
ज्वार
मां अक्सर उन टोंगा' (मचानों) का जिक्र करती, जिन
पर पानी
से बचने के लिए पूरा परिवार
बैठा होता। आम जामुन के साथसाथ कभीकभी
'सिलेट करवे' के कमला नींबू की याद
करतीं जिनके सामने दार्जिलिंग और नागपुर के संतरे उन्हें फीके
लगते। मछलियां तो मछलियां, कच्चू डांटा (अरबी की डंठल),
मोचाई (केले के फूल), ओल (सूरन) की ऐसी उम्दा सब्जी
बनातीं कि हमें पूछना पड़ता, 'मां तुमने इतनी बढ़िया
तरकारी बनाना कहां से सीखा?'
'वहीं से, वहां की औरतों के बारे में कहावत है जूते का
तलवा भी रांध दें तो खाने वाले उंगलियां चाटते रह
जाते।' सारा कुछ अच्छा ही अच्छा था तो आप लोग चले क्यों वहां
से?' हम पूछते।
°
मंच
मचान में
अशोक चक्रधर के शब्दों में
हाथरस
में कविता की खेती
°
बड़ी
सड़क की तेज़ गली में
अतुल अरोरा के साथ
अमेरिका के
स्वतंत्रता दिवस
की छुट्टियां
°
रचना
प्रसंग में
आर पी शर्मा 'महर्षि' के धारावाहिक 'ग़ज़ल लिखते समय' का
बारहवां भाग
ग़जल
के
उपयुक्त
उर्दू
बहरें व समकक्ष हिंदी छंद3
°
रसोईघर
में
पुलावों की सूची में नया
व्यंजन
नवरतन
पुलाव
सप्ताह का विचार
प्रकृति अपरिमित ज्ञान का
भंडार है,
पते पते में शिक्षापूर्ण पाठ हैं, परंतु
उससे लाभ उठाने के लिए अनुभव
आवश्यक
है। हरिऔध
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अनुभूति
में
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कमलकांत
सक्सेना, राजेन जयपुरिया, ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर और
ललित कुमार की
नयी कविताएं
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° पिछले अंकों
से °
कहानियों में
मुक्तिप्रत्यक्षा
शर्ली
सिंपसन शुतुर्मुर्ग हैउषा राजे सक्सेना
बदल
जाती है ज़िन्दग़ीअर्चना पेन्यूली
बस
कब चलेगीसंजय विद्रोही
लॉटरीराकेश त्यागी
संदर्भहीनसुदर्शन प्रियदर्शिनी
°
हास्य
व्यंग्य में
हे
निंदनीय व्यक्तित्वअशोक स्वतंत्र
मानवाधिकारडा नरेन्द्र कोहली
सांस्कृतिक
विरासतअगस्त्य कोहली
मुक्त
मुक्त का दौरडा नवीन चंद्र लोहनी
°
प्रौद्योगिकी
में
रविशंकर श्रीवास्तव के
सहयोग से
लिनक्स आया हिंदी में
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प्रकृति
और पर्यावरण में
आशीष गर्ग द्वारा
नवीनतम जानकारी
वर्षा के पानी का संरक्षण
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सामयिकी
में
कबीर जयंती के अवसर पर
डा प्रेम जनमेजय का नाटक
देखौ
कर्म कबीर का
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ललित
निबंध में
पूर्णिमा वर्मन का आलेख
ग्रीष्म
के शीतल मनोरंजन
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आज
सिरहाने
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांश'ु
का कविता संग्रह
अंजुरी
भर आसीस
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