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संस्मरण 

अतुल अरोरा


पश्चिम की दीवानी दुनिया डलास के किस्से

(सातवाँ भाग)

खुली हथेली स्टेयरिंग पर

अमेरिका का स्वतंत्रता दिवस ४ जुलाई को मनाया जाता है। स्वतंत्रता दिवस पर याद आती हैं 'सारे जहाँ से अच्छा' की स्वर लहरियाँ, रंग बिरंगी झंडियाँ, स्कूल में बँटने वाले बूँदी के लड्डू, टीवी पर यह गिनना कि राजीव गाँधी ने कितनी बार 'हम देख रहे हैं' या 'हम देखेंगे' कहा। यहाँ माजरा कुछ दूसरा दिखता है। जगह–जगह स्टार और स्ट्राइप्स यानि अमेरिकी झंडा तो दिखता है, पर वह तो वैसे भी साल भर हर कहीं दिख सकता है। पूरी आज़ादी है आपको अमेरिकी झंडा लगाने की और तो और लोग स्टार और स्ट्राइप्स वाली टी शर्ट और बनियान तक पहन डालते हैं। चारों ओर सेल के नज़ारे। हाँ, शाम को तकरीबन हर शहर में संगीत समारोह, खाना–पीना और धुआँधार आतिशबाज़ी ज़रूर होती है।

इस अवसर पर होने वाली तीन दिन की छुट्टी का देशी बिरादरी जम कर सदुपयोग करती है। यह निर्भर करता है आपके प्रवास के अनुभव पर। हमारे सरीखे नए नवेले आप्रवासी पूरे दिन पर्यटन पर खर्च कर डालते हैं। अक्सर मित्रों के साथ भ्रमण रोमांच को दुगना कर देता है। डलास में चार जुलाई को रूबी फॉल यानि जलप्रपात देखने का कार्यक्रम निर्धारित हुआ। केडीगुरुसाथ चल रहे थे। केडीगुरु हमारे कालेज के ज़माने के कनपुरिया मित्र हैं। खासे ज़िन्दादिल और शौकीन तबियत के इंसान। हालाँकि स्वभाव के मामले में थोड़े प्रेशर कुकर हैं यानि कि संयम बहुत जल्दी खो देते हैं पर जल्द ठंडे हो जाते हैं। तो जनाब डलास से हम और केडीगुरु एक साथ चले टेनेसी चैटेनोगा की ओर। रास्ते में मैने ध्यान दिया कि केडीगुरु ड्राइव करते हुए कुछ–कुछ कनपुरिया टेंपो वाले की भाँति खुली हथेली स्टेयरिंग पर चिपका कर गाड़ी मोड़ रहे थे और लेन चेंज करते समय कंधे को मिथुन चक्रवर्ती की तरह झटका देते थे। यह प्रक्रिया अनवरत चलने पर मैंने अपने कौतूहल को रोकना उचित नहीं समझा। पता चला कि केडीगुरु ने भारत में अपने ड्राइवर से कार चलाना सीखा था और यह दो गुर बोनस में सीख लिए थे। मुझे मक्षिका स्थाने मक्षिका वाला किस्सा याद आ रहा था जिसमें एक नकलची अपने से आगे वाले परीक्षार्थी की कॉपी लाइन दर लाइन टीपते समय एक जगह आगे वाले की कॉपी में मरी मक्खी चिपकी देखने पर एक मक्खी मार कर ठीक उसी जगह चिपका देता है।

पढ़े लिखे भी झाड़ू लगाते हैं

केडीगुरु ने मज़ेदार आप बीती सुनाई। वे ऑफिस से घर का रास्ता लोकल ट्रेन से तय करते हैं। एक दिन स्टेशन जाते समय वे फुटपाथ पर चल रहे थे। कुछ सोचते–सोचते केडीगुरु का सूक्ष्म शरीर चाँदनी चौक पहुँच गया और स्थूल शरीर टेनिसी के फुटपाथ पर चलता रहा। रास्ते में एक भीमकाय अश्वेत झाड़ू लगा रहा था। और अमेरिकन सभ्यतानुसार केडी गुरु से, "हाय मैन, हाउ यू डूइंग" बोला। केडीगुरु बेखुदी में सोचने लगे कि क्या ज़माना आ गया है जो पढ़े लिखे अंग्रेज़ीदाँ लोगों को भी झाड़ू लगानी पड़ रही है। केडीगुरु उसकी हालत पर अफसोस प्रकट कर सरकार को कोसने जा ही रहे थे कि उन्हें ख्याल आया कि वे चाँदनी चौक में नहीं अमेरिका में हैं जहाँ अनपढ़ भी अंग्रेजी ही बोलते हैं।

रूबी फ़ॉल

एक प्राकृतिक करिश्मा है यह मनोरम स्थल। पहले आपको एक पहाड़ी पर स्थित लिफ्ट से २६० फुट नीचे गुफ़ा में जाना होता है फिर करीब एक मील इस गुफ़ा में चलना होता है। हज़ारों सालों में पानी के कटाव ने चूने के पत्थरों में कटाव से नयनाभिराम आकृतियाँ उकेर दी हैं। केडीगुरु और मेरा मानना था कि अगर यह स्थल भारत में होता तो शर्तिया हर कदम पर एक चट्टान के पास एक पंडा दक्षिणा वसूल रहा होता उनको शिवलिंग या संतोषी माता का स्वरूप बताते हुए। गुफ़ा के अंत में घुप अँधेरा था। नेपथ्य में मधुर संगीत के साथ पानी की आवाज़ विस्मय पैदा कर रही थी। गाइड ने जब बत्तियाँ जलाईं तो सामने से १४५ फुट की ऊँचाई से गिरता रूबी जलप्रपात दिखाई दिया।

भइये एंकर तो पानी में फेंक दो

चैटनोगा में एक झील में हम लोगों को चप्पू वाली नौका चलाने की सूझी। अमेरिकियों ने व्यवसायिकता की हद कर रखी है। टिकट के साथ इंश्योरेंस भी बेच रहे थे। खैर, एक नौका पर केडीगुरु सपत्नीक लपक लिए। मैं किनारे पर दूसरी नाव की बाट जोह रहा था कि देखा केडीगुरु की नाव चकर घिन्नी की तरह सिर्फ गोल ही घूम रही है और केडीगुरु नाव की इस बेजा हरकत पर लाल पीले हो रहे हैं। उनकी पत्नी उन्हें समझाने का प्रयत्न कर रहीं थीं कि शायद नाव चलाने में कोई बेसिक गलती हो रही है पर केडीगुरु को नाव में कोई निर्माण गत खामी नज़र आ रही थी। पंद्रह मिनट बीत जाने पर केडीगुरु ने झल्लाकर अपने हाथ वाला चप्पू ही पानी में फेंक दिया। यह देख कर उनकी पत्नी सन्न रह गयीं। तभी मेरे बगल में खड़े एक भारतीय सज्जन ने कहा, "अपने दोस्त को बोलो, वह नाव का एंकर पानी में क्यों नहीं फेंकता?" इसके बाद केडीगुरु की खिसियानी हँसी, उनकी पत्नी के सैंडिल का चप्पू के स्थान पर प्रयोग कर के नाव को किनारे लाना, दूसरा चप्पू लेना और फिर रास्ते भर उनकी प्रताड़ना — यह सब अब इतिहास बन चुका है।

कैपेचिनो या एस्प्रेसो

वापस आते वक्त चाय की तलब लगी थी पर यहाँ अगर हर एक्ज़िट रैंप पर चाय का ढाबा और पान की दूकान होती तो क्या बात होती। कुछ ऐसा नज़ारा होता कि एक्ज़िट रैंप पर कारों की कतारें होतीं और पप्पू गप्पू कुल्हड़ में चाय परोस कर कारवालों की खिड़कियों तक पहुँचा रहे होते। लगता है यह सब होते होते पचास एक साल लग जाएँगे। खैर, स्टारबक्स से काम चलाने की मजबूरी थी। यह शायद हमारा पहला तजुर्बा था। स्टारबक्स में कॉफी पीने के लिए कम से कम पचास तरह की कॉफी के प्रकार उपलब्ध थे। कैपेचीनो, एक्सप्रेसो, मोचा, लैटे आदि आदि की भूल भुलैया में हमें झाग वाली दूधिया कॉफी याद आ रही थी। केडीगुरु ने कुछ नया ट्राइ करने के चक्कर में कैपेचीनो आर्डर कर दी। काउंटर से सवाल दागा गया— वन शॉट या टू शॉट, अब यह जुमला तो मयखाने में ज्यादा चलता है। केडीगुरु गच्चा खा गए और बोले— टूशॉट। हाथ में लगा एक बित्ते भर का गिलास जिसमें दो छटाक कॉफी सरीखा काढ़ा परोसा गया था। बहुत देर मगजमारी के बाद समझ आया कि उसमें दूध इत्यादि खुद ही दूसरे काउंटर पर मिलाना था। बहरहाल काफी का आनंद लेने के बाद हम वापस घर को चल दिये। हालाँकि केडीगुरु के टू शॉट ने दो घंटे बाद असर दिखाया और उन्हें पेचिश लग गई।

अति व्यवस्था के झटके

रात में हम होटल आकर रुके और दो कमरों में ठहर गए। खाने के लिए मैं और केडीगुरु सामने के पीज़ा रेस्टोरेंट पर आर्डर करने गए। रेस्टोरेंट का दरवाजा बंद था और बाहर खड़े दो कर्मचारी धूम्रपान में मशगूल थे। उन्होंने पीज़ा का आर्डर लेने से इनकार कर दिया। उनका दिया तर्क अतिव्यवस्था के दुष्परिणाम दिखा रहा था। रेस्टोरेंट की व्यवस्था के अनुसार एक बार काउंटर बंद हो जाने के बाद वो सिर्फ फोन पर ही आर्डर ले सकते थे। यानि कोई जुगाड़ वाली व्यवस्था नहीं। केडीगुरु दाँत पीसते हुए वापस आए और अपने कमरे से दो पीज़ा का आर्डर देकर पेचिश निवारण हेतु बाथरूम में घुस गए। उनकी पत्नी हमारे कमरे में आकर मेरी पत्नी से बात करने लगी। दो मिनट बाद देखा कि एक पीज़ा डिलीवरी वाल केडीगुरु के कमरे का दरवाजा पीट रहा है। बाहर आकर उससे पीज़ा माँगा तो अगला शगूफा हाज़िर था। पीज़ा हमारे पैसे देने पर और केडीगुरु की पत्नी के यह दिलासा देने पर भी कि आर्डर देने वाला उनका पति है, उन्हें पीज़ा देने को तैयार नहीं था। उनकी पॉलिसी थी कि आर्डर उसी कमरे में सप्लाई होगा जहाँ के कमरे से आर्डर बुक किया गया था। हमारे सामने पीज़ा वाले को दरवाजा पीटते हुए टापते रहने के अलावा कोई चारा नहीं था। दो मिनट बाद केडीगुरु तौलिया लपेटे आग्नेय नेत्रों से हमें घूरते प्रकट हुए। पीज़ा वाले की व्यवसायिक मजबूरी जानने के बाद उनके पास मस्तक ठोकने के सिवा कोई चारा नहीं था।

वह खिड़की बंद रहती है

नैशविले से वापस आते हुए बड़ा संगीन कांड हो गया। अँधेरा छा गया था और डलास आने में करीब दो घंटे बाकी थे। रास्ते में हमने रात्रिभोज करने के लिए एक कस्बे में कार रोकी। एक चाइनीज़ रेस्टोरेंट में खाने का आर्डर दिया कि तभी मेरी चारुचंद्र को फ्रेंच फ्राई खाने की हठ सवार हो गई। केडीगुरु स्नेहवश खुद ही सड़क के दूसरी तरफ बने मैक्डॉनल्ड में पैदल ही फ्रेंच फ्राई लेने चल दिए। करीब १५ मिनट बाद केडीगुरु एक पुलिस आफिसर के साथ नमूदार हुए जो यह तसल्ली करना चाहता था कि उनके साथ और कौन है। हमें देखने के बाद पुलिस वाला खिसियानी हँसी हँसने लगा और केडीगुरु भुनभुनाने लगे। दर असल बदकिस्मती से मैक्डानल्ड का रेस्टोरेंट बंद हो गया था। सिर्फ ड्राइव इन खुला था। ड्राइव इन वह खिड़की है जो रेस्टोरेंट के अंदर जाए बिना आप कार में बैठे बैठे खाने के सामान का आर्डर दे सकते हैं और भुगतान कर के अपना सामान ले सकते हैं। केडीगुरुउस खिड़की पर पैदल पहुँच गए और उनकी खिड़की के काँच पर उँगली से ठक ठक कर के खिड़की खुलवाने का आग्रह करने लगे। कमअक्ल रेस्टोरेंट वालों ने शायद पहली बार ड्राइव इन खिड़की पर वॉक इन ग्राहक देख कर उन्हें कोई चोर उचक्का समझ लिया और पुलिस बुला ली थी।

९ जुलाई २००५

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