| पादरी के घरपर बहुत भीड़ देख, रामलुभाया घबराया। कहीं कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई? 
पड़ौसी की चिंता के कारण वह घर बैठा नहीं रह सका। भागा हुआ उसके घर चला गया।"क्या हुआ भाई?" उसने पादरी से पूछा,  वह उसे फादर नहीं, भाई ही कहता था।
 "अत्याचार हो रहा है हम पर इस देश में।" पादरी चिल्लाया, "हम इसे सहन नहीं करेंगे।"
 "हम इसे सहन नहीं करेंगे।" उपस्थित लोगों ने चिल्लाकर कहा।
 "अत्याचार तो कभी सहन नहीं करना चाहिए।" रामलुभाया उससे सहमत हो गया, " मैं इस 
लड़ाई में तुम्हारे साथ हूँ।"
 "तो बताओ। उड़ीसा में उन लोगों को फिर से हिंदू क्यों बनाया गया?"
 "किन लोगों को?" रामलुभाया ने पूछा।
 "जिन्हें हमने पिछले सप्ताह ईसाई बनाया था।"
 "क्या हिंदू और ईसाई बनाए जाते हैं?" रामलुभाया कुछ चकित होकर बोला, "मैं तो समझता 
था लोग अपनी आस्था के अनुसार हिंदू और ईसाई होते हैं।"
 "रहने दो अपनी यह बकवास।" पादरी रुष्ट होकर बोला, "हम उनकी आस्था के बदलने की 
प्रतीक्षा करते तो वे क़यामत तक हिंदू ही बने रहते।"
 "तो तुम्हारी क्या क्षति हो जाती?" रामलुभायाने पूछा, "धर्म तो अपने आत्मिक विकास के 
लिए होता है। तुम अपना विकास करो. . ."
 "हम अपना विकास ही तो कर रहे हैं।" पादरी बोला, "जितनी अधिक संख्या में हम 
हिंदुओं को ईसाई बनाएँगे। ईसा मसीह हमसे उतने ही प्रसन्न होंगे।"
 "ईसा मसीह के विषय में तो मैं नहीं जानता, पर पोप अवश्य प्रसन्न होंगे।"
 "हाँ! " पादरी बोला, "यह देश जितना ईसाई होता जाएगा, उतना ही यूरोप और अमरीका 
के ईसाई देशों का गुलाम होता जाएगा। हमारी सत्ता बढ़ती जाएगी।. . ." पादरी प्रसन्न था।
 "पर जब लोगों की आस्था नहीं बदलती तो तुम उनको ईसाई कैसे बना लेते हो?"
 "वे अस्वस्थ होते हैं। उन्हें ज्वर होता है। हम उन रोगों की औषधियों को पानी में 
घोलकर उन्हें ईसा के चरणामृत के रूप में पिला देते हैं। उनका ज्वर उतर जाता है और हम 
उनको ईसाई होने का ज्वर चढ़ा देते हैं। नहीं मानते तो उन्हें ईसा मसीह के क्रोध से 
ज्वर लौटा लाने का भय दिखाते हैं।"
 "पर यह तो झूठ है। पाप है। तुम धर्म के नाम पर लोगों को धोखा दे रहे हो।"
 "मुझे तुमसे वादविवाद नहीं करना है।" पादरी बोला, "मेरा तो पूछना है कि उन लोगों को 
फिर से हिंदू क्यों बनाया जा रहा है ? इस प्रकार धर्म परिवर्तन का अधिकार किसी को 
नहीं दिया जा सकता।"
 "तो तुमको किसने यह अधिकार दिया कि तुम भोले-भाले हिंदुओं को धोखे से ईसाई बनाओ?" 
रामलुभाया ने पूछा।
 "इस देश में धर्म परिवर्तन का अधिकार है। इसीलिए हमने उन्हें ईसाई बनाया।" पादरी 
बोला।
 "इस देश में धर्म परिवर्तन का अधिकार है, इसीलिए वे लोग पुन: हिंदू हो गए, जो वे 
सदा से थे।"
 "पर यह अधिकार न तो उनको है, जो हिंदू हो गए, और न उनको है, जिन्होंने उन्हें हिंदू 
बनाया।"
 "क्यों?" रामलुभाया स्तब्ध रह गया, "जो अधिकार विदेश से आकर भी तुमको है, वह इस 
देश के नागरिकों को क्यों नहीं है?"
 "क्योंकि धर्म परिवर्तन का अर्थ है हिंदू से ईसाई बनना। हिंदू से मुसलमान बनना।" 
पादरी बोला, "हिंदुओं को यह अधिकार किसने दे दिया कि वे अपने धर्म की रक्षा करें?"
 "जो अधिकार ईसाइयों को है, वह हिंदुओं को क्यों नहीं है?"
 "क्योंकि वे बहुसंख्यक हैं।" पादरी बोला।
 "तो लोकतंत्र तो बहुमत से ही चलता है। यह कैसे संभव है कि बहुसंख्यक लोगों को वह 
अधिकार भी न हो, जो उस देश के अल्पसंख्यकों को प्राप्त हैं?"
 "वह जहाँ होता होगा, होता होगा।" पादरी बाला, "इस देश में तो बहुसंख्यक का अर्थ है, 
जिसे कोई अधिकार न हो।"
 1 जुलाई 2005 |