- (क) बहरे–रजज़ : का एक और वर्ण वृत प्रति पंक्ति 'मुस्तफइलुन' चार बार (ऽऽऽऽ।ऽ)
(ख) समकक्ष हिंदी छंद हरिगीतिका : प्रति चरण 16–12 के विश्राम से 28 मात्राएं। कभी कभी विश्राम 12–16 अथवा 14–14 पर।
पांचवीं, बारहवीं, उन्नीसवीं, छब्बीसवीं मात्राएं मूलतःलघु। चरणांत में लघु गुरू (।ऽ) अथवा नगण (।।।)
उदाहरण |
मैथिली शरण गुप्त की रचना |
मानव भवन में आर्य जन किसकी उतारें आरती
|
ऽ।। ।।। ऽ ऽ। ।। ।। ऽ ।ऽऽ ऽ।।ऽ = 28 मात्राएं |
भगवान भारत वर्ष में गूंजे हमारी भारती |
।।ऽ। ऽ।। ऽ। ऽ ऽऽ ।ऽऽ ऽ।ऽ = 28 मात्राएं |
उर्दू तक्ती (विभाजन) |
मा नव भ वन |
में आ र्य जन |
किस की उ ता |
रें
आ र ती |
भग वा न भा |
रत वर् ष में |
गूं जे ह मा |
री भा र ती |
ऽ ऽ । ऽ |
ऽ ऽ । ऽ |
ऽ ऽ । ऽ |
ऽ ऽ । ऽ |
- (क) बहरे–मज़ारे का एक वर्ण वृतः मफ़उलु, फाइलातुन एक पंक्ति में दो बार (ऽऽ।ऽ।ऽऽ)
(ख) समकक्ष हिंदी छंद दिग्पाल : प्रति चरण 12–12 के विश्राम से 24 मात्राएं।
पांचवीं, आठवीं, सत्रहवी और बीसवीं मात्राएं मूलतः लघु। चरणांत में दो गुरू (ऽऽ) अथवा दो–दो लघु (।।, ।।)
उदाहरण |
रामप्रसाद शर्मा की रचना |
ग़म थे हज़ार लेकिन हंसता रहा वो हर दम; |
।। ऽ ।ऽ। ऽ ।। । ।ऽ । ऽ । ।।।। = 28 मात्राएं |
ये कौन जान पाया यों भी कोई जिया है |
ऽ ऽ। ऽ। ऽऽ ऽ ऽ ।ऽ । ऽ ऽ = 28 मात्राएं |
उर्दू तक्ती (विभाजन) |
ग़म थे ह |
ज़ा र ले किन |
हंस ता र |
हा वु हर दम |
ये कौ न |
जा न पा या |
यूं भी कु |
ई जि या है |
ऽ ऽ । |
ऽ । ऽ ऽ |
ऽ ऽ । |
ऽ । ऽ ऽ |
टिप्पणीं:
पहली पंक्ति की बीसवीं मात्रा लघु होनी चाहिए थी, परंतु वहां गुरू वर्ण को लगाया गया है।
दूसरी पंक्ति में सत्रहवीं मात्रा लघु होनी चाहिए थी परंतु वहां गुरू वर्ण को लाया गया है।
अतः लयात्मक स्वरापात के अनुसार उनकी एक–एक मात्रा गिनी गई है।
- (क) बहरे–हजज़ का एक वर्ण वृत : प्रति पंक्ति मफउलु मफाईलुन(ऽऽ।।ऽऽऽ) दो बार
(ख) समकक्ष हिंदी छंद : वही दिग्पाल के समान जिसका विवरण उदाहरण सहित ऊपर दिया गया है
परंतु इसमें लघु वर्णों के मूल स्थानों का अंतर है :
इस चौबीस मात्राओं वाले छंद की पांचवीं, छठी, सत्रहवीं और अठारहवीं मात्राएं मूलतः लघु हैं।
परंतु उर्दू में इन दोनो वर्ण वृतों को संयुक्त रूप से एक ही रचना में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता है।
उदाहरण |
बशीर बद्र की रचना |
पत्थर के जिगर वालों ग़म में वो रवानी है |
ऽ।। । ।।। ऽऽ ।। ऽ । । ऽऽ ऽ= 24 मात्राएं |
खुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है |
।। ऽ। । ऽ ऽऽ ।।ऽ ।ऽ ऽऽ ऽ = 24 मात्राएं |
उर्दू तक्ती (विभाजन) |
पत् थर क |
जि ग र वा लों |
ग़ म में वु |
र वा नी है |
खुद रा ह |
ब ना ले गा |
बह ता हु |
अ पा नी है |
ऽ ऽ । |
। ऽ ऽ ऽ |
ऽ ऽ । |
। ऽ ऽ ऽ |
टिप्पणीः
पहली पंक्ति में पांचवीं और सत्रहवीं मात्राएं लघु होनी चाहिए थीं। परंतु उनके स्थानों पर क्रमशः गुरू वर्ण 'के', '
वो' तथा दूसरी पंक्ति में जहां मूलतः अठारवीं मात्रा लघु होनी चाहिए थी उसके स्थान पर गुरू वर्ण 'आ' आया है।
अतः लयात्मक स्वरापात के नियम के अनुसार इनकी मात्राएं लघु गिनी गईं।
- (क) बहरे–कामिल का सालिम(पूर्णाक्षरी) वर्ण वृत : प्रति पंक्ति मु त फा ई लुन(ऽऽ।।ऽऽऽ) चार बार
(ख) समकक्ष हिंदी मात्रिक छंद प्रति चरण साधारणतः 14–14 के विश्राम से 28 मात्राएं।
पहली दूसरी, पांचवीं, आठवीं, नवीं, बारहवीं, तेरहवीं, पंद्रहवी, सोलहवीं, उन्नीसवीं, बाईसवीं,
तेईसवीं तथा छब्बीसवीं मात्राएं लघु।
उदाहरण |
डा इक़बाल की रचना |
कभी ऐ हक़ीक़ते मुंतज़िर, नज़र आ लिबासे मजाज़ में |
।। ऽ । ऽ।। ऽ।।।, ।। ऽ । ऽ। ।ऽ। ऽ= 28 मात्राएं |
टिप्पणी:
ध्यान पूर्वक देखें कि लयात्मक स्वारापात के नियम के अनुसार किस प्रकार मूलतः लघु वर्णों के स्थान पर गुरू वर्ण आकर लघु उच्चारित हुए हैं
और उनकी एक एक मात्रा गिनी गई है।
इसके अतिरिक्त इस पंक्ति में नजर † आ में संधि होने के कारण उन्हें मिला कर न–ज़रा पढ़ा गया है
और इसी के अनुसार ।।ऽ मात्राएं गिनी गई हैं। इस नियम को लयात्मक संधि तथा उर्दू में 'अलिफ वस्ल' कहते हैं।
एक महत्वपूर्ण बात ध्यान में रखने की यह है कि बहरे कामिल में प्रयुक्त होने वाले घटक ।।ऽ।ऽ(मुत फा ई लुन) तथा ऽऽ।ऽ(मुफ त इ लुन)
जहां एक साथ दो लघु वर्ण आए हैं उनके स्थानों पर दो अक्षरीय उर्दू गुरू वर्णों को (जैसे कुछ, मत, फिर आदि को)
दो लघु वर्णों के रूप में बदल कर नहीं लगाया जा सकता।
हिंदी के ऐसे दो लघु वर्णों को भी इन स्थानों पर नहीं लाया जा सकता। जैसे —
कुछ बात है |
जो कुछ है |
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।।
ऽ। ऽ |
ऽ।।ऽ |
|
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x |
x |
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(क) बहरे–रजज़ : का एक और वर्ण वृत प्रति पंक्ति 'मफाइलुन' चार बार (।ऽ।ऽ)
(ख) समकक्ष संस्कृत वर्ण वृतः पंच चामर : ।ऽ।, ऽ।ऽ,।ऽ।, ऽ।ऽ,।ऽ।† ऽ(जगण रगण जगण रगण जगण † गुरू) मात्रिक रूप :
प्रति चरण 24 मात्राएं चरणांत में एक गुरू अथवा दो लघु। पहली, चौथी, सातवीं,
दसवीं, तेरहवीं, सोलहवीं, उन्नीसवीं मात्राएं मूलतः लघु।
उदाहरण |
असर लखनवी की रचना |
सियाह बादलों में जैसे चांद हो छुपा हुआ |
।ऽ। ऽ।ऽ । ऽ। ऽ । ऽ । ऽ । ऽ = 24 मात्राएं |
खुशी मिली निहां ग़मों के दरमियां कहां कहां |
।ऽ ।ऽ ।ऽ ।ऽ । ।।।ऽ ।ऽ ।ऽ = 24 मात्राएं |
उर्दू तक्ती (विभाजन) |
सि या ह बा |
द लों में जै |
से चां द हो hao |
छु पा हु आ |
खु शी मि ली |
नि हां ग़ मों |
क दर मि यां |
क हां क हां |
। ऽ । ऽ |
। ऽ । ऽ |
। ऽ । ऽ |
। ऽ । ऽ |
टिप्पणी
पहली पंक्ति में दसवीं तथा तेरहवीं मात्राएं जो मूलतः लघु थीं उनके स्थान पर गुरू वर्ण मैं तथा से आने पर दोनों ही लघु उच्चारित हुए।
अतः उनकी एक एक मात्राएं गिनी गईं। इसी प्रकार दूसरी पंक्ति में तेरहवीं मात्रा,
जो मूलतः लघु थी, के स्थान पर गुरू वर्ण के आया है अतः वह लघु उच्चारित हुआ और उसकी भी एक मात्रा गिनी गई।
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