शुषा लिपि
सहायता

अनुभूति

16. 6. 2003

अभिनंदनपत्र।आज सिरहानेआभारउपहारकहानियांकला दीर्घाकविताएंगौरवगाथाघर–परिवार
दो पल
परिक्रमापर्व–परिचयप्रकृतिपर्यटनप्रेरक प्रसंगफुलवारीरसोईलेखकलेखकों सेविज्ञान वार्ता
विशेषांक
शिक्षा–सूत्रसाहित्य संगमसंस्मरणसाहित्यिक निबंधस्वास्थ्यसंदर्भसंपर्क
हास्य व्यंग्य

 

 रवीन्द्र कालिया का
नवीनतम व अप्रकाशित लघु उपन्यास 
ए बी सी डी
धारावाहिक (5 अंकों में समाप्य)

मां अपनी दोनों बेटियों को असूर्यपश्या बना कर रखना चाहती थी। वह ऐसी लडकियों के उदाहरण पेश करती कि शीनी गुस्से से लालपीली हो जाती। जब मां बताती कि उसकी सहेली लीला की बेटी अपूर्वा पैंतीस की हो गयी, बैंक में नौकरी करती है और कभी डेट पर नहीं गयी तो शीनी तुनुक कर जवाब देती, "देखना मां एक दिन वह पागल हो जाएगी या आत्महत्या कर लेगी।' मां अपूर्वा को अक्सर वीकएंड पर आमंत्रित करती। उसकी हार्दिक इच्छा थी कि उसकी बेटियां भी अपूर्वा के नक्शेकदम पर चलें, मगर लडकियों को अपूर्वा से एलर्जी थी, वे उसके साये से दूर भागतीं। 

°°°

कथा महोत्सव 2003
भारतवासी हिन्दी लेखकों की कहानियों
का संकलन 

'माटी की गंध'
चुनाव चौखाना
पाठकों से निवेदन है वे 'माटी की गंध'
की दस कहानियों को ध्यान से पढ़ें और
अपनी पसंद की कहानी का चुनाव करें।
चुनाव करने से पहले ठीक तरह से
निश्चित कर लें कि किस कहानी को
अपना मत देना है क्यों कि आप केवल
एक ही मत दे पाएंगे।

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अपना ई मेल यहां लिख भेजें।


 

इस सप्ताह

कहानियों में
यूके से पद्मेश गुप्त की कहानी
डेड एण्ड

हर्ष उपन्यास के पन्ने तो पलटते जा रहे हैं
परन्तु उनका मन कहीं न कहीं से अस्थिर
है। मिनी के जाने के बाद अकेलेपन की
वीरान गुफा उसे साफ नज़र आ रही है।
सुनैना के निधन के बाद मिनी के लिए ही
तो हर्ष के जीवन में सुबह और शाम के
रंग कुछ मायने रखते थे किन्तु मिनी के
जाने के बाद कितना बेरंग हो जाएगा
उसका जीवन। 

"डैडी  . . .," मिनी के संबोधन से हर्ष जान
पाया कि वह बगल में बैठी न जाने
कितनी देर से उसे एकटक निहार रही है।
हर्ष ने बियर का गिलास हाथ में उठाते
हुए कहा, "हां बेटा।"

°

यू के में हिन्दी मीडिया
के अंतर्गत तेजेन्द्र शर्मा आपकी पहचान
करवा रहे हैं
ब्रिटन में हिन्दी रेडियो के पहले महानायक रवि शर्मा
से

°

साहित्य समाचार

°

आज सिरहाने में
कृष्ण बिहारी द्वारा शैलेश मटियानी के
कहानी संग्रह
शैलेश मटियानी की
इक्यावन कहानियां

का
परिचय

°

रसोई घर में
शाकाहारी मुगलई का मस्त ज़ायका
मशरूम मसाला

°
!

सप्ताह का विचार
नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना निःसंदेह बुरा है, मगर सामने 
हंस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी
करना उससे भी बुरा है।
—संत तिरूवल्लुवर

 

अनुभूति में

शैल अग्रवाल के कविता संग्रह 'समिधा' और पूर्णिमा वर्मन के कविता संग्रह 'वक्त के साथ' से चुनी हुई 28 कविताएं

° पिछले अंकों से°

निबंध में अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन के
अवसर पर प्रवासी विद्वान
प्रो हरिशंकर आदेश का लेख
प्रवासी
भारतीय और हिन्दी
°
नार्वे से सुरेश चंद्र शुक्ल 'शरद
आलोक' का लेख
हिन्दी संयुक्त
राष्ट्रसंघ की भाषा बन कर रहेगी
°
हास्य–व्यंग्य में शैल अग्रवाल का
परी–पुराण
हिन्दी–मैया
(शुद्ध विलायती हिन्दी में)
°
संस्मरण में  कोरिया से कौंतेय देशपांडे का लेख ओ! पिलसंग इंदीऽऽया!
°
कलादीर्घा में कला और कलाकार के
अंतर्गत 
सतीश गुजराल का परिचय
उनकी कलाकृतियों के साथ
°
साक्षात्कार में प्रसिद्ध नृत्यांगना
संयुक्ता पाणिग्रही और अन्ना मरिया
थामस
से बातचीत
°
फुलवारी में दिविक रमेश की कविता
हाथी बोला और इला प्रवीन से
जानकारी
शुक्र ग्रह
°
पर्यटन में पर्यटक की कलम से
आस्ट्रेलिया का विस्तृत विवरण
आरामगाह आस्ट्रेलिया
°
विज्ञान वार्ता में डा गुरूदयाल प्रदीप
का आलेख
आतंक के चरम संसाधन:
जैविक एवं रासायनिक हथियार

°
कृष्ण बिहारी की आत्मकथा 'इस पार
से उस पार से' का अगला भाग
हिन्दुस्तान छूटने से पहले की रात

°

परिक्रमा में

दिल्ली दरबार के अंतर्गत बृजेश कुमार
शुक्ला का आलेख
सौहार्दपूर्ण सम्बन्धों
का पुनः प्रारंभ

लंदन पाती के अंतर्गत शैल अग्रवाल
का चिर परिचित अंदाज़
नए घरों
में—वही पुराना सामान
11
नार्वे निवेदन के अंतर्गत ओस्लो से
सुरेश चंद्र शुक्ला 'शरद आलोक' का
आलेख
वसंत आगमन से पहले

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों  अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुर्नप्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रति सप्ताह परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना   परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन     
        सहयोग : दीपिका जोशी
तकनीकी सहयोग :प्रबुद्ध कालिया   साहित्य संयोजन :बृजेश कुमार शुक्ला