अनुभूति

 9. 11. 2004

आज सिरहानेआभारउपन्यासउपहारकहानियांकला दीर्घाकविताएंगौरवगाथा पुराने अंक नगरनामा
घर–परिवारदो पलपरिक्रमापर्व–परिचयप्रकृतिपर्यटनप्रेरक प्रसंगफुलवारीरसोईलेखकलेखकों सेविज्ञान वार्ता
विशेषांकशिक्षा–सूत्रसाहित्य संगमसंस्मरणसाहित्य समाचारसाहित्यिक निबंधस्वास्थ्यसंदर्भसंपर्कहास्य व्यंग्य

 

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दीपावली विशेषांक
पिछले सप्ताह

संस्मरण में
डा रति सक्सेना का भावभीना संसार
पीपल के पात और भीत पर उगा चांद–आस की कथा– प्यास की व्यथा

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पर्व परिचय में
दीपिका जोशी बता रही हैं
गोवर्धन और अन्नकूट
के विषय में

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फुलवारी में
रंग भरने के लिए
दीपावली का सुंदर चित्र
और शिल्पकोना में बना कर देखें
काग़ज़ की कंदील

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सामयिकी में
उर्दू के मुसलमान शायरों की दिवाली पर
सरदार अहमद 'अलीग' का आलेख
दिया दिवाली का

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कहानियों में
सुप्रसिद्ध कथाकार शिवानी की कहानी
पिटी हुई गोट

दिवाली का दिन। चीना पीक की जानलेवा चढ़ाई को पार कर जुआरियों का दल दुर्गम–बीहड़ पर्वत के वक्ष पर दरी बिछाकर बिखर गया था। एक ओर एक बड़े–से हंडे से बेनीनाग की हरी पहाड़ी चाय के भभके उठ रहे थे, दूसरी ओर पेड़ के तने से सात बकरे लटकाकर आग की धूनी में भूने जा रहे थे। जलते पशम से निकलती भयानक दुर्गन्ध, सिगरेट व सिगार के धुएं से मिलकर अजब खुमारी उठ रही थी। नैनीताल से चार मील दूर, एक बीहड़ पहाड़ी पर जमा यह अड्डा अवारा रसिकजनों का नहीं था।

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इस सप्ताह
एक और दीपावली विशेषांक

कहानियों में
कथा सम्राट प्रेमचंद की कहानी
रामलीला

एक जमाना वह था, जब मुझे भी रामलीला में आनंद आता था। आनंद तो बहुत हलका–सा शब्द है। वह आनंद उन्माद से कम न था। संयोगवश उन दिनों मेरे घर से बहुत थोड़ी दूर पर रामलीला का मैदान था, और जिस घर में लीला–पात्रों का रूप–रंग भरा जाता था, वह तो मेरे घर से बिलकुल मिला हुआ था। दो बजे दिन से पात्रों की सजावट होने लगती थी। मैं दोपहर ही से वहां जा बैठता, और जिस उत्साह से दौड़–दौड़कर छोटे–मोटे काम करता, उस उत्साह से तो आज अपनी पेंशन लेने भी नहीं जाता। एक कोठरी में राजकुमारी का श्रृंगार होता था। उनकी देह में रामरज पीसकर पोती जाती; मुंह पर पाउडर लगाया जाता और पाउडर के ऊपर लाल, हरे, नीले रंग की बुंदकियां लगाई जाती थीं।

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उपहार में
विजयेन्द्र विज की फ्लैश मूवी के साथ शुभकामनाओं का नया उपहार
पूजा में दीप जलें

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घर परिवार में
अनुराधा बता रही हैं हमारी संस्कृति में
स्वस्तिक की महिमा

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प्रकृति और पर्यावरण में
श्री बालकृष्ण जी कुमावत का आलेख
रामराज्य में प्रकृति और पर्यावरण

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प्रेरक प्रसंग में
नीरज त्रिपाठी की लघुकथा
दीपों की बातें

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1सप्ताह का विचार1
ड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते हैं।
!—अज्ञात!

 

अनुभूति में

दीपावली महोत्सव
त्र
जारी है त्र
नये संकलन,
नई कविताओं और
नई सजधज
के साथ

°°° पिछले अंकों से °°°

कहानियां

लेख

°°°

हास्य–व्यंग्य

संस्मरण

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फुलवारी में बच्चों के लिये

उपहार में

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कला दीर्घा

घर परिवार

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेन  परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन     
       सहयोग : दीपिका जोशी
तकनीकी सहयोग :प्रबुद्ध कालिया   साहित्य संयोजन :बृजेश कुमार शुक्ला