इस
सप्ताह
एक और दीपावली
विशेषांक
कहानियों
में
कथा सम्राट प्रेमचंद की
कहानी
रामलीला
एक जमाना वह था,
जब मुझे भी रामलीला में आनंद आता था। आनंद तो
बहुत हलकासा शब्द है। वह आनंद उन्माद से कम न था।
संयोगवश उन दिनों मेरे घर से बहुत थोड़ी दूर पर
रामलीला का मैदान था, और जिस घर में
लीलापात्रों का रूपरंग भरा जाता था, वह तो मेरे
घर से बिलकुल मिला हुआ था। दो बजे दिन से पात्रों
की सजावट होने लगती थी। मैं दोपहर ही से वहां जा
बैठता, और जिस उत्साह से दौड़दौड़कर
छोटेमोटे काम करता, उस उत्साह से तो आज अपनी
पेंशन लेने भी नहीं जाता। एक कोठरी में राजकुमारी का
श्रृंगार होता था। उनकी देह में रामरज पीसकर पोती
जाती; मुंह पर पाउडर लगाया जाता और पाउडर के ऊपर
लाल, हरे, नीले रंग की बुंदकियां लगाई जाती थीं।
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उपहार
में
विजयेन्द्र
विज की फ्लैश मूवी के साथ शुभकामनाओं का नया उपहार
पूजा
में दीप जलें
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घर
परिवार में
अनुराधा बता रही हैं
हमारी संस्कृति में
स्वस्तिक
की महिमा
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प्रकृति
और पर्यावरण में
श्री
बालकृष्ण जी कुमावत का आलेख
रामराज्य में प्रकृति और पर्यावरण
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प्रेरक
प्रसंग में
नीरज
त्रिपाठी की लघुकथा
दीपों की बातें
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1सप्ताह का विचार1
उड़ने
की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के अधिक निकट होते
हैं।
!अज्ञात! |
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