होली रंगों का
त्योहार है। और अल्पना या रंगोली इसकी रंगीनी में चार-चाँद
लगा दें तो कहना ही क्या!
भारतीय संस्कृति और सभ्यता की अद्भुत परिभाषा अल्पना या
रंगोली का इतिहास बहुत पुराना है। मोहन जोदड़ो और हडप्पा में
भी मांडी हुई अल्पना के चित्र मिलते हैं।
भारत में इसे अलग-अलग
स्थानों पर अलग-अलग नाम से जाना जाता है। गुजरात में इसे इसे
सतिया, महाराष्ट्र में रंगोली, उत्तर प्रदेश में चौक, मध्य
प्रदेश में सांझी, राजस्थान में मांडने, बंगाल में अल्पना,
बिहार में अरिचन, आंध्र प्रदेश में भुग्गुल और केरल में कोलम
कहते हैं।
महाराष्ट्र में इसे विशेष
रूप से दिवाली के अवसर पर बनाया जाता है और दक्षिण भारत में
लगभग हर रोज़ जबकि उत्तर भारत में यह विशेष अवसरों,
त्योहारों या विवाह के अवसर पर बनाई जाती है।
यह कामसूत्र में वर्णित
चौसठ कलाओं में से एक है और अत्यंत प्राचीन लोक कला है। माना
जाता है कि अल्पना की उत्पत्ति संस्कृत के शब्द 'आलेप' या
'आलेपन' से हुई। 'आलेप' का अर्थ है लेप करना। लोगों का
विश्वास है कि अल्पना के चित्र घर को धन-धान्य से परिपूर्ण
रखने में जादुई प्रभाव करते हैं।
फिर क्यों न इस होली आप भी
अपने आँगन में रंग बरसाएँ और उसे अल्पना के रंगों से आकर्षक
बनाएँ! आपकी सहायता के लिए प्रस्तुत हैं दो आसान नमूने - |