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घर परिवार - वास्तु विवेक (४)

 

दीपावली और वास्तु
विमल झाझरिया
 


किसी भी व्यापार की समृद्धि में 'धनात्मक ऊर्जा' का बहुत महत्व होता है। जैसा कि नाम से स्पष्ट है 'धनात्मक ऊर्जा' धन से भी सम्बन्ध रखती है। चाहे घर की खुशहाली हो अथवा व्यापार की समृद्धि, दोनों ही बिना धन के अधूरे रहते हैं। दीपावली एवं उससे सम्बन्धित सभी त्यौहार धन वृद्धि के ही उद्देश्य की पूर्ति करते हैं। धनतेरस, नरक चतुर्दशी एवं दीपावली के अगले दिन की जाने वाली गोवर्धन पूजा सभी धन एवं सम्पदा की वृद्धि से जुड़ी हुई हैं।

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दीपावली की रात लक्ष्मी आगमन की रात्रि मानी जाती हैं। दीपावली के आगमन की तैयारियाँ सभी लोग काफी दिन पहले से ही शुरू कर देते हैं। घर एवं प्रतिष्ठानों के कोने-कोने की सफ़ाई एवं रंगाई-पुताई इनमें उसी प्रकार से नई ऊर्जा का संचार कर देती हैं जैसे कि स्नान आदि करके शरीर में स्फूर्ति आ जाती हैं।

वास्तु में स्थान की सफ़ाई एवं स्वच्छता को विशेष महत्व दिया गया है। दीपमालिका के प्रकाश की जगमगाहट, आतिशबाजी का प्रकाश, दीपावली की इस महाकाल रात्रि में मन में उमंग एवं उल्लास भरता है। नए वस्त्रों से सुसज्जित गृहणियाँ अपने घर के द्वारों को रंगोली आदि से सजाती हैं। रंगोली के रंग और मुख्य द्वार पर लगी बन्दनवार अथवा तोरण के रंग भी धनात्मक ऊर्जा की वृद्धि करते हैं।

दीपावली के अवसर पर की जाने वाली गणेश लक्ष्मी की पूजा का भी अपना विशेष महत्व है। पूजा में यह ध्यान रखना चाहिए कि लक्ष्मी जी पहले और बाद में गणेश जी रखे जाएँ। यानि गणेश जी के दाहिने हाथ की तरफ़ लक्ष्मी जी को रखना चाहिए। गणेश जी की सूँड़ का रुख भी लक्ष्मी जी की तरफ़ होना चाहिए। उक्त गुणों से युक्त गणेश जी की प्रतिभा अच्छे परिणाम देती हैं।

दीपावली में धन के देवता कुबेर की पूजा का भी विशेष महत्व हैं। इसके लिए चाँदी के एक कटोरे में अपनी क्षमता अनुसार ५,११, २१ अथवा ५१ चाँदी के पुराने सिक्के रखकर उत्तर की तरफ़ मुँह करके इनकी पूजा करनी चाहिए। पूजा के उपरान्त इस पात्र को दक्षिणी दीवार स्थित अलमारी में सुरक्षित रख लेना चाहिए। इसको कभी खर्च में नहीं लेना चाहिए। किसी वजह से चाँदी के सिक्के न उपलब्ध हो पाएँ, तो तांबे के पुराने सिक्के भी इस्तेमाल किये जा सकते हैं और अगर यह भी उपलब्ध नहीं हों फिर जो भी उपलब्ध हो उन सिक्कों को रखा जा सकता हैं।

विशेष ध्यान रखने की बात यह हैं कि कटोरे में सिक्के ही रखे जाएँ। काग़ज़ की मुद्रा न रखी जाय। कुबेर जी की पूजा के साथ-साथ आदि शंकराचार्य द्वारा रचित कनकधारा स्तोत्र का पाठ लक्ष्मी प्राप्ति के उपायों में आश्चर्यनजक तीव्रता लाता हैं। ऐसा कहा गया है कि आदि गुरु शंकराचार्य जी किसी के द्वार पर भिक्षा के लिए गये। उस घर में गृह-स्वामिनी के पास एक आंवले के फल के अतिरिक्त उनको देने के लिए और कुछ नहीं था। श्री शंकराचार्य प्रभु को उसकी स्थिति पर दया आई और उन्होंने धन की देवी लक्ष्मी की आराधना की और उसके फल स्वरूप उक्त गृहिणी के घर में तत्काल स्वर्ण की बरसात हुई।

इस दीपावली पर आप सभी को मेरी शुभकामनाएँ। आपके जीवन में भी स्वर्ण के साथ-साथ खुशियों और समृद्धि की बरसात होती रहे। यही मेरी ईश्वर से मंगल कामना हैं।

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