शुषा लिपि
सहायता

अनुभूति

1. 7. 2003 

अभिनंदनपत्रआज सिरहानेआभारउपहारकहानियांकला दीर्घाकविताएंगौरवगाथाघर–परिवार
दो पल
परिक्रमापर्व–परिचयप्रकृतिपर्यटनप्रेरक प्रसंगफुलवारीरसोईलेखकलेखकों सेविज्ञान वार्ता
विशेषांक
शिक्षा–सूत्रसाहित्य संगमसंस्मरणसाहित्यिक निबंधस्वास्थ्यसंदर्भसंपर्क
हास्य व्यंग्य

 

 रवीन्द्र कालिया का
नवीनतम व अप्रकाशित लघु उपन्यास 
ए बी सी डी
धारावाहिक (तीसरी किस्त)

शील ने आंखें खोलीं और यह जान कर राहत की सांस ली कि वह यथार्थ नहीं था, एक दु:स्वप्न था। उसे अपने संसार में लौटने में देर न लगी। एक टीस की तरह उसे याद आया कि शीनी डेट पर गयी हुई है। वह पलंग पर उकडूं बैठ कर फिर बिसूरने लगी। नेहा भाग कर पानी का गिलास ले आयी, "अब क्या हुआ मॉम। शीनी डेट पर गयी है, हमेशा के लिए ससुराल नहीं चली गयी।'' 
"यह लडकी मेरी मौत बन कर पैदा हुई है।'' नेहा ने तुरंत मां के मुंह पर पानी का गिलास लगा कर उसकी जुबान बंद कर दी।

°°°

कथा महोत्सव 2003
भारतवासी हिन्दी लेखकों की कहानियों
का संकलन 

'माटी की गंध'
चुनाव चौखाना
पाठकों से निवेदन है वे 'माटी की गंध'
की दस कहानियों को ध्यान से पढ़ें और
अपनी पसंद की कहानी का चुनाव करें।
चुनाव करने से पहले ठीक तरह से
निश्चित कर लें कि किस कहानी को
अपना मत देना है क्यों कि आप केवल
एक ही मत दे पाएंगे।

!नये अंकों की सूचना के लिये!
अपना ई मेल यहां लिख भेजें।


 

इस सप्ताह

कहानियों में
भारत से ग़ज़ाल ज़ैग़म की कहानी
खुशबू

"मुझे पत्तियों से हरी–हरी खुशबू आती है,
धान के खेत से धानी–धानी खुशबू  . . .।
मुझे खुद हैरत है कि मुझे खुशबू का रंग
कैसे महसूस हो जाता है?  हल्की–हल्की
शुरू की सर्दियों में मुझे गुलाबी–गुलाबी
खुशबू आती है और यह मौसम मुझे बेहद
पसंद है। जब मैं अपनी बहन के हाथ का
बुना हुआ पुलोवर पहनकर साफ लम्बी
चौड़ी सड़कों पर यूकेलिप्टस के सायेदार
दरख्तों के बीच से गुजरता हूं और
गुलाबी–गुलाबी जाड़े की खुशबू महसूस
करता हूं।

°

देश विदेश में
नेपाल से धीरेन्द्र प्रेमर्षि का आलेख
भारतीय सहयोग–सिंचन से
उर्वर नेपाल

°

साहित्य समाचार

°

कलादीर्घा में 
कला और कलाकार के अंतर्गत
जहांगीर सबावाला
का परिचय
उनके चित्रों के साथ

°

फुलवारी में 
चांद तारों की दुनिया के अंतर्गत 
इला प्रवीन से जानकारी
हमारी पृथ्वी
और कहानियों के अंतर्गत नीलम जैन 
की पद्य कथा

चिड़िया रानी

!°!

!सप्ताह का विचार!
य उसी की होती है जो अपने को संकट में डालकर कार्य सम्पन्न करते हैं। जय कायरों की कभी नहीं होती।
— जवाहरलाल नेहरू

 

अनुभूति में

यू एस ऐ, यूके 
तथा 
दक्षिण कोरिया से नये पुराने हिन्दी कवियों की 
सोलह 
नयी कविताएं

° पिछले अंकों से°

कहानियों में
डेड एण्ड पद्मेश गुप्त
यह तो कोई खेल न हुआ–नवनीत मिश्र

°

विज्ञान वार्ता में डा गुरूदयाल प्रदीप से नये विज्ञान समाचार
°
पर्यटन में महेश कटरपंच की कलम से
अनोखा आकर्षण आम्बेर
°
आज सिरहाने में कृष्ण बिहारी द्वारा शैलेश मटियानी के कहानी संग्रह शैलेश मटियानी की इक्यावन कहानियां
का परिचय
°
यू के में हिन्दी मीडिया के अंतर्गत तेजेन्द्र शर्मा का लेख ब्रिटन में हिन्दी रेडियो के पहले महानायक — रवि शर्मा
°
रसोई घर में
शाकाहारी मुगलई का मस्त ज़ायका
मशरूम मसाला
°
नार्वे से सुरेश चंद्र शुक्ल 'शरद
आलोक' का लेख
हिन्दी संयुक्त
राष्ट्रसंघ की भाषा बन कर रहेगी
°
हास्य–व्यंग्य में शैल अग्रवाल का
परी–पुराण
हिन्दी–मैया
(शुद्ध विलायती हिन्दी में)
°
संस्मरण में  कोरिया से कौंतेय देशपांडे का लेख ओ! पिलसंग इंदीऽऽया!
°
 कृष्ण बिहारी की आत्मकथा
का अगला भाग
किसे आवाज़ दूं मैं

!°!

परिक्रमा में

लंदन पाती के अंतर्गत शैल अग्रवाल
का आलेख
बर्मिंघम में
°
दिल्ली दरबार के अंतर्गत बृजेश कुमार
शुक्ला का आलेख
सौहार्दपूर्ण सम्बन्धों
का पुनः प्रारंभ
°
नार्वे निवेदन के अंतर्गत ओस्लो से
सुरेश चंद्र शुक्ला 'शरद आलोक' का
आलेख
वसंत आगमन से पहले

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों  अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुर्नप्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना   परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन     
      सहयोग : दीपिका जोशी
तकनीकी सहयोग :प्रबुद्ध कालिया
 साहित्य संयोजन :बृजेश कुमार शुक्ला