मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


परिक्रमा  

भारतीय सहयोग–सिंचन से उर्वर नेपाल

—धीरेन्द्र प्रेमर्षि 

भक्तपुर नेपाल का एक मंदिर

'यदि दशो अरब हाथे अपन हम जोड़ि लै छी
मोकाबिल के करत एहि दोस्तीक हथियारके!'

तीर–कमान या बारूद–बंदूक से न हो सकने वाला काम बड़ी सहजतापूर्वक दोस्ती के हथियार से किया जा सकता है। मैथिली भाषा के प्रसिद्ध भारतीय साहित्यकार सियाराम झा 'सरस' द्वारा रचित उपर्युक्त गजलांश ने इसी तथ्य को आत्मसात करते हुए विश्वशांति के लिए अचुक अस्त्र के रूप में संसारवासियों से अपने सारे दस अरब हाथों को एकताबद्ध करने का अनुनय किया है। और, उनका मानना है कि इस दोस्ती के हथियार का मुकाबला संसार का जैसा भी आततायी क्यों न हो, किसी सूरत में नहीं कर सकता।

कवि की कामना विश्वस्तर पर भले ही फलीभूत होती न दिखाई दे, लेकिन नेपाल और भारत के संदर्भ में यह सौ फीसदी सत्य दिखाई दे रही है। इसी दोस्ती के फलस्वरूप ही नेपाल–भारत मित्रता में इतनी प्रगाढ़ता है। जब–जब किसी दुष्ट परिंदे ने इस संबंध में चोंच मारने की दुस्साहस की, दोनों देशों की कूटनीतिक एवं जनस्तर पर रही प्रगाढ़ मित्रता के हथियार ने उसका पर कुतर डाला। भाषिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, सामाजिक, आर्थिक आदि सभी क्षेत्रों में आपसी साम्यता एवं मैत्रीपूर्ण सुसंबंधों के कारण ही आम लोगों में बहुत सारे यह भी नहीं जान पाते कि नेपाल और भारत दो अलग–अलग देश हैं।

कुछ वर्ष पहले प्रसिद्ध भारतीय अभिनेत्री माधुरी दीक्षित ने अंजाने में नेपाल को भारत का ही एक प्रांत बता दिया था। इस पर नेपाल के कुछ तथाकथित राष्ट्रवदियों ने जमकर हाय–तौबा मचायी। लेकिन ऐसा कहने वालों को यह सोचना चाहिए था कि इस अभिव्यक्ति के पीछे माधुरी की मानसिकता क्या थी? भई, वह तो ठहरी अपने अभिनय के कामों में व्यस्त रहने वाली एक मशहूर अदाकारा, अपनी कला और प्रतिभा से दूरियों और सीमाओं को मिटाने वाली, उन्हें भला क्या पता राजनीतिक तिकड़मबाजियां। सो, उन्होंने अपने कलाकारों वाले निर्मल मन से जैसा देखा, जैसा महसूस किया, वैसा ही कह दिया कि नेपाल–भारत एक ही देश है।

दरअसल नेपाल–भारत संबंध है ही इतना सुदृढ़ कि दोनों में कहीं कोई अन्तर दिखाई ही नहीं देता। ऐसी स्थिति में बिचारी माधुरी या ऐसे ही कोई अन्य व्यक्ति करें भी तो क्या करें। माधुरी ने भलेही यह बात अंजाने में कही हो, अगर सबकुछ जानते हुए भी कहती तो भी उस में कोई बुराई नहीं थीं। क्योंकि जब कभी हम अपने किसी जिगरी दोस्त के घर जाते हैं और अगर वह सही दोस्त है तो वहां 'तेरी' – 'मेरी' वाली कोई बात नहीं रह जाती, सारी बातें 'हमारी' हो जाती हैं। अब अगर कोई चाहता है कि राजनीति से सर्वथा असंबद्ध होते हुए भी या सामान्य ज्ञान के पन्ने चाटने में असमर्थ रहते हुए भी केवल अनुभूतियों के आधार पर लोगों को नेपाल और भारत में भिन्नता दिखवा दे, तब तो इसका एक ही उपाय है कि बर्लिन की दीवारें खड़ी करवा दे दोनों देशों के बीच। बस फिर क्या है – न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी। न रहेगी इतनी गाढ़ी दोस्ती, और न ही कर पाएगा कोई दो देशों को एक कहने की जुर्रत।

नेपाल और भारत की दोस्ती को हम दो जिस्म एक जान कह सकते हैं। केवल नेपाल और भारत ही क्यों? पूरे दक्षिण एशिया ही की अगर बात करें तो यहां के प्रायः सभी देश एक–दूसरे के पूरक और सहयोगी हैं। या यूं कहें कि एक ही शरीर के विभिन्न अंग हैं। जिस में निश्चित रूप से भारत इस समग्र शरीर का पेट है तो नेपाल सहित अन्य देशों में कोई हाथ, कोई पैर, कोई सिर, कोई आंख, कोई कान आदि हैं। शरीर के इन सारे अंगों की कार्यप्रक्रिया और उनकी सोच के संबंध में मैथिली भाषा के स्वनामद्यन्य साहित्यकार डा•राजेन्द्रप्रसाद 'विमल' की एक बाल–कहानी का दृष्टांत दिया जा सकता है।

'पेटक महिमा' शीर्षक की उस कहानी में एक सेठ जी के पेट और अन्य सारे अंगों के बीच मतभेद उत्पन्ना हो जाता है। हाथ का कहना होता है कि सारे काम तो करता हूं मैं, पर बैठे–बैठे जब तब मीठे–मीठे व्यंजन डकारता रहता है यह पेट। इसी तरह पैर की शिकायत होती है कि कामों के सिलसिले में दस–दस कोस चलता हूं मैं, लेकिन खाने के समय आगे रहता है यह पेट। इसी तरह मस्तिष्क कहता है कि क्या कैसे करना है सभी सोचते–सोचते फटने लगता हूं मैं और ये पेट जो है सो बस केवल खाने की धुन पर रहता है।

इसी तरह का आरोप लगाते हुए सारे अंग अपने–अपने कामों से हड़ताल कर देते हैं। परिणाम यह होता है कि सेठ जी बीमार पड़ जाते हैं। पेट में एक भी दाना न जाने की वजह से हाथ–पैर धीरे–धीरे सूखने लगते हैं, मस्तिष्क की भी सोचने की शक्ति क्षीण होती जाती है। स्थिति जब हद से ज्यादा बिगड़ जाती है तो सभी हड़ताली आपस में विचार–विमर्श करते हैं। इसके बाद सभी इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि पेट में दाना जाने के कारण ही हम लोग भी स्वस्थ और तंदुरूस्त रहते हैं। पेट के साथ अकारण बैर से अपनी ही हानि है।

दक्षिण एशिया में अकारण ही भारत विरोधी धारणा रखने वालों के लिए यह कहानी एक आइना है, जिसमें उन्हें यथार्थ का प्रतिबिंब अच्छी तरह से देख लेना चाहिए। और भूपरिवेष्ठित एवं अति निकट पड़ोसी होने के नाते नेपाल के संदर्भ में इस बात को और भी गंभीरता से लिया जाना चाहिए। क्योंकि विकास के पथ पर बढ़े नेपाल के हर कदम पर भारत की महत्वपूर्ण सहायता एवं सहभागिता रही है। नेपाल के विकास के सारे आधार इस बात की साक्षी बनकर जगह–जगह खड़े दिखाई देते हैं। और इन सारे सहयोगों एवं सहभागिताओं में निश्चित रूप से कहीं न कहीं नेपाल–भारत मित्रता एक सुदृढ़ सेतु के रूप में खड़ा है।

नेपाल के विकास का सबसे बड़ा आधार पूर्व–पश्चिम महेंद्र राजमार्ग है। यथार्थ में इसी राजमार्ग ने कई मायनों में नेपाल को एक किया है। नहीं तो इसके निर्माण से पहले तक स्थिति यह थी कि नेपाल के एक महत्वपूर्ण शहर से दूसरे महत्वपूर्ण शहर तक जाने के लिए भी भारत के रास्ते होकर जाना पड़ता था। नेपाल में रेलवे सेवा के नाम पर रहे एक मात्र जनकपुर–जयनगर रेलवे की स्थापना से लेकर संचालन तक संपूर्ण कार्य भारत की सहभागिता और सहयोग से ही संभव हो पा रहा है। नेपाल के भौतिक पूर्वाधारों के निर्माण एवं संचालन में शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र हो, जिसमें भारतीय सहभागिता और सहायता न रही हो। इसीलिए इस छोटे से आलेख में उन सारी बातों का उल्लेख करना संभव नहीं हैं। अगर ऐसा करने की कोशिश की गयी तो इसकी एक लंबी फेहरिस्त बनानी पड़ेगी।

किसी भी क्षेत्र के विकास में शिक्षा का योगदान सर्वाधिक होता है। और इस मामले में हम नेपाली अपने आप को सौभाग्यशाली मान सकते हैं कि हमारे पड़ोस में भारत जैसा नेपाल का एक शुभचिंतक और सहयोगी राष्ट्र है। अगर ऐसा नहीं होता तो शायद हम आज भी पाषाण युग में जी रहे होते। वर्तमान अवस्था में भले ही नेपाल में भारतीय शैक्षिक प्रमाणपत्रधारियों को हेय की दृष्टि से देखने की नादान प्रवृत्ति विकसित होती जा रही है, किंतु यह सत्य है कि हम नेपालियों ने पढ़ाई के मामले में क,ख,ग भारत से ही सीखी है। ऐसा कहने वालों यह बात भी नहीं भूलनी चाहिए कि चंद दशक पहले तक नेपाल में होने वाली पढ़ाई का इम्तहान भी भारत के पटना में जाकर देना पड़ता था।

शिक्षा को दान के रूप में लेने के भारतीय संस्कार के कारण ही भारत के कई शिक्षित व्यक्तियों ने नेपाल के अनकटार स्थानों पर जाकर शिक्षादान का पुण्य कमाया। भारत में ही जाकर शिक्षा प्राप्त कर न कर सकने वालों के लिए यह बहुत बड़े अवसर के रूप में सामने आया। और इसी प्रकार नेपाल में शिक्षा के संस्कार का विकास हुआ। नेपाल में शैक्षिक प्रतिष्ठानों की स्थापना, उसके सुदृढ़िकरण, पाठ्यपुस्तकों की व्यवस्था आदि के संदर्भ में भारत का सहयोग पग–पग पर देखा जा सकता है। आज भी तकनिकी क्षेत्रों में कई तरह की छात्रवृत्तियों के तहत नेपाली विद्यार्थी भारत के सहयोग का लाभ उठाते हुए नेपाल के विकास में योगदान देते आ रहे हैं।

जनसंख्या के मामले में भारत के मुकाबले नेपाल की जनसंख्या सीमित होने के बावजूद बेरोजगारी यहां भी कए बड़ी समस्या के रूप में रही हैं। भारत ने नेपालियों को अपनी फौज में शामिल कर नेपाल की बेरोजगारी को कम करने में भी कुछ हद तक सहयोग किया है। इसके अलावा कई ऐसे नेपाली है जो भारत के विभिन्न स्थानों पर जा कर रोजी–रोटी कमाने के कामों में जुटे हुए हैं। इस से श्री 5 की सरकार (नेपाल सरकार) पर बेरोजगारी के कारण पड़ने वाला बोझ काफी हद रक हल्का हो गया है।

पर्यटन नेपाल के विकास का प्रमुख आधार है। धार्मिक पर्यटन की यहां असीमित संभावनाएं हैं। प्राकृतिक सौंदर्य के मामले में तो वैसे भी नेपाल विश्व में प्रसिद्ध है। नेपाल के पर्यटन की संभावनाओं को मूर्त रूप देने वालों में सर्वाधिक संख्या में भारतीय पर्यटक है। खासकर समान सामाजिक तथा सांस्कृतिक अवस्था एवं समान धार्मिक मान्यताओं के कारण धार्मिक सहित अन्य पर्यटन में भी भारत से नेपाल को पर्याप्त सहयोग मिलता आ रहा है।

इन सब पक्षों का विवरण देने की कोशिश करना बिल्कुल सूर्य के आगे दीपक जलाने जैसा है। क्योंकि नेपाल के विकास में भारतीय सहयोगों का क्षेत्र ढूंढ़ने से आसान यह होगा कि नेपाल के विकास के किन–किन क्षेत्रों में भारत की सहभागिता नहीं हैं, इसका विवरण निकाला जाय। भारतीय सहभागिता एवं सहयोग के विना नेपाल के विकास की बातें ठीक उसी तरह है जैसे कि विना साज की आवाज।

और यह सब आपसी प्रगाढ़ मित्रता के कारण ही संभव है। भलेही लोग मज़ाक उड़ाने के अंदाज में किसी नेता को या नेपाल के विकास में भारतीय सहयोग की प्रशंसा करने वालों को भारत में बारिश होने पर नेपाल में छाता तानने वाला कहें, लेकिन यह अभिव्यक्ति उनकी आत्मा की होती है। भई, जब नेपाल के पैर में कांटें चुभने पर उसकी दर्दभरी टीस भारत में उठती हैं तो भारत में पानी पड़ने पर नेपाल में छाता तानने में बुराई ही क्या है? यह दोनों देशों की एक–दूसरे के सुख–दुख में सहभागिता एवं एक–दूसरे के प्रति सदाशयता का ही प्रतिफल है। इसीलिए अगर एक वाक्य में कहें तो हम यही कह सकते हैं कि नेपाल के विकास में भारतीय सहयोग की अत्यंत ही महत्वपूर्ण भूमिका है।

 
1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।