पिछले
सप्ताह
हास्य
व्यंग्य में
महेश चंद्र द्विवेदी का व्यंग्य
जिसे
मुर्दा
पीटे
उसे
कौन
बचाए
°
रचना
प्रसंग में
आर पी शर्मा 'महर्षि' के धारावाहिक 'ग़ज़ल लिखते समय' का
अंतिम भाग
मराठी
ग़ज़लों में छंद2
°
प्रकृति
और पर्यावरण में
आशीष गर्ग बता रहे हैं
अब
बनेंगी जूट की सड़कें
°
प्रौद्योगिकी
में
रविशंकर श्रीवास्तव की सलाह
ब्लागिंग
छोड़ें
पॉडकास्टिंग करें
°
कहानियों में
भारत से कमलेश भट्ट कमल की
कहानी
चिठ्ठी
आई है
प्लेटफ़ार्म
पर मैंने ही मक्खन को देखा था। यानी मेरी चिठ्ठी
मक्खन को मिल गई थी। मक्खन अपनी सरकारी गाड़ी ले
आया था
अर्दली भी साथ था। अर्दली ने लपक कर मेरा सामान
ले लिया था। मुझसे हाथ मिलातेमिलाते मक्खन
ने कुछ इस तरह से गले लगाकर बांहों में कस लिया
कि कुछ क्षण के लिए मैं कसमसाकर रह गया। दोहरी काठी
के मक्खन की इस 'परपीड़' में उसकी
आत्मीयता
रचीबसी थी। "पी .के .मैं यह नहीं पूछूंगा कि
तुम्हारी यात्रा कैसी रही।" गाड़ी की सीट पर बैठते
हुए उसने एक खास अंदाज़ में यह बात कही। "लगता है
गांव का असर अभी बाकी है। पी .के .नहीं प्रवीण कुमार
कहो।" हम दोनाें का समवेत ठहाका एक साथ
गूंजा।
1
|
|
इस
सप्ताह
कहानियों में
यू के से तेजेन्द्र शर्मा की
कहानी
अपराधबोध
का प्रेत
सुरभि बच्चों को मिलना चाहती है। अंतरा की दसवीं
की परीक्षा चल रही है। अपूर्व तो छोटा है अभी
पांचवीं में ही है। सुरभि की बेचैन निगाहें दीवार
पर जैसे कुछ ढूंढ रही हैं। नरेन के माथे पर पसीना
छलकने लगा है। कहीं सुरभि के जाने से पहले उसका
ही दम ना निकल जाए। नर्स को बुलाता है नरेन,
सुरभि का दर्द बढ़ता जा रहा है। नरेन का प्रेत और
बड़ा होता जा रहा है। अरूण को फ़ोन करना है।
बच्चों को हस्पताल ले आए। मां से मिल लेंगे। अरूण
के स्वर में झल्लाहट है "भाभी को अकेला क्यों
छोड़ा? जल्दी वापिस उनके पास जा . . .सारी उमर
साहित्यिक गोष्ठियों के चक्कर में रहा और भाभी को
कभी वक्त नहीं दिया और अब उनके आख़री वक्त में भी
उनके पास नहीं बैठ रहा।"
°
हास्य
व्यंग्य में
नरेन्द्र कोहली का व्यंग्य
आज्ञा
न मानने वाले
°
संस्मरण
में
कृष्णा सोबती की कलम से धारावाहिक
फ़ोन
बजता रहा
°
दृष्टिकोण
में
अनूप शुक्ला का आलेख
हैरी
बनाम हामिद
°
फुलवारी
में
आविष्कारों
की नयी कहानियां
और शिल्पकोना में बनाएं
काग़ज़
का याक
°
सप्ताह का विचार
विश्वविद्यालय
महापुरूषों के निर्माण के कारख़ाने हैं और अध्यापक उन्हें
बनाने वाले कारीगर हैं।
रवींद्र
|
|
|
अनुभूति
में
|
|
वर्षा महोत्सव
जारी हैं हर रोज नयी कविताएं
साथ ही संकलन में
75 से अधिक
वर्षा कविताएं
|
° पिछले अंकों
से °
कहानियों में
शौर्यगाथाराम गुप्ता
प्रश्ननीलम
जैन
सुहागनविजय
शर्मा
चीजू
का पातालप्रमोद कुमार तिवारी
गुनहगारसुषम बेदी
फर्कसूरज
प्रकाश
°
हास्य
व्यंग्य में
देश
का विकास जारी हैगोपाल चतुर्वेदी
कुतुबमीनारडा नरेन्द्र कोहली
कुताअरूण राजर्षि
प्रवासी
से प्रेमडा प्रेम जनमेजय
हे निंदनीय व्यक्तित्वअशोक
स्वतंत्र
°
साहित्यिक
निबंध में
मिथिलेश श्रीवास्तव का आलेख
कला
में आज़ादी के सपने
°
रचना
प्रसंग में
आर पी शर्मा 'महर्षि' के धारावाहिक 'ग़ज़ल लिखते समय' का
सत्रहवां भाग
मराठी
ग़ज़लों में छंद1
°
उपहार
में
जन्मदिन की शुभकामनाएं
जन्मदिवस
मंगलमय होवे
°
मंच
मचान में
अशोक चक्रधर के शब्दों में
अंतिम
विदाई हो तो ऐसी
°
बड़ी
सड़क की तेज़ गली में
अतुल अरोरा के साथ
एन
आर आई होने का अहसास
°
|
|